रात आकर मरहम लगाती,
फिर भी सुबह धरती जलन से कराहती ,
पानी भी उबलता मटके में
ये धरती क्यों रोती दिनमें ???
मानव रोता , पंछी रोते, रोते प्राणी
ढूंढते छांव धूप के तीरो से बचने को ,
पेडों से घिरी सड़कें अब तो कल की बात है ,
सीमेंट के जंगल मे पेड़ कहाँ मिलते???
वो हमारे ही कर्म थे जो लकड़ी के लिए
पेडों की बलि चढ़ाते रहे हम ,
पैरों से चलने की आदत छोड़ कर,
पेट्रोल के ईंधन के वाहन को अपनाते गए ,
अब फल मिलने लगे है भरपूर,
पारा उष्णता का नहीं उतरता नीचे
करता 40 और 45 सेल्सियस के पार
धरती के वस्त्र स्वरूप वृक्षों को
हम बेरहमी से काटते रहे ..
अब गर्मी से झुलसते हम बेहोश होकर
प्राण खोते रहने की शुरुआत हो रही है ...
वक्त रहे सम्भल जाओ..
पेट्रोल , पानी और पेड़ बचाओ ...
सायकल से सेहत बनाओ ,
सादगी से रहकर धरतीको बचाओ ....
जिंदगी : जियो हर पल
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
27 मई 2018
जलती धरती
2 मई 2018
आशाएं
कहीं धुंधली सी लकीरें सुनहरी
प्रकाश की आशाएं बिखेरती है ,
नन्हे बच्चे की मासूम मुस्कान
खुशी की लहर बिखेरती है ,
प्रकृति का रूप बदलता
अचंभित कर आश्चर्य की सीमाएं बिखेरती है.
कड़कती बिजली का बेखौफ नर्तन
भय का आवर्तन का सृजन कर
कपकपी फैलाती है .…
चाँद की चाँदनी में तकना आकाश को
मन मे सुकूनभरी स्निग्धताका लेपन करती है ....
पर कहाँ देख पाते है इसे हम वक्त के मारे
घंटो तक आभासी रिश्तों में व्यस्त एक डिबिया में भरे ,
ढूंढते रहते है सुकून का एहसास
जलजीवन से भरी गगरिया में भी हमें
कसकती प्यास ....
23 अप्रैल 2018
धूप
पहनकर धूप की पायल ,
अंगारोंकी तपिश में नाचती सड़कें ,
तन्हाई में बात कर रहे है सूरज से ....
तुम सुलगते रहे हो सालों से ,
पर राख न हुए कभी ,
तब हाले दिल बयाँ करते बोला सूरज ,
मेरी तनहाई का आलम कौसे करूँ बयाँ??
जो मेरे करीब आता है ,
सुलग जाता है तड़पकर ,
उन सुलगते साथी पर बरबस रोता रहा हूँ,
मेरे आँसू भी सुख जाते है मेरी तपिशसे ,
तकदीर में राख भी नही
मेरी गर्माहट से तो राख भी जल जाती है ,
मेरी राह तकना तुम ,
बादलों की चुनर में
बूंदोके मोती की गठरिया बांध आऊंगा ,
इंतज़ार करना ...
21 अप्रैल 2018
सन्नाटा
दूर दूर तक भीड़ ही भीड़ है ,
पर कोई कुछ बोल नही रहा .
भीड़ को चीर कर बस बरबस दौड़ रहा सन्नाटा ...
खामोशी भी उसका हाथ थामे है चल रही,
सुनी आँखों में कितने ही सवाल लिए ...
कोई कुछ बोलता नही ...
हजारों सवालों का समुन्दर लहरा रहा है ,
पर न कोई शोर न आवाज ,
भीड़ में खड़ी एक औरतकी कोख से एक आवाज सुनाई दी इस सन्नाटे में ,
माँ , मैं तेरी कोखसे बोल रही हूँ ,
पहले मैं तरस रही थी इस दुनिया में आने को , उसे देखने को , उसे प्यार करने को....
पर मुझे नही आना अब ,
खौफनाक दरिंदगी की दास्तानों से
डरा हुआ तेरा दिल मैं महसूस कर रही हुँ..
छोटी सी जान भी सलामत न रही
दरिंदगी और वहशत से अब ,
नहीं आना इस दुनिया मे अब इंसान के लिबास में मुझे अब ,
में जा रही हूं तुमसे दूर कहीं ,
कल तेरे गुलाब के पौधे में खिलूँगी
एक गुलाब की कली के रूपमे ,
तेरे आंगन को महकाने को ...
भीड़ से एक धक्का आया ,
वो औरत गिर गयी ,
थोड़े मानुष उस पर से गुजर भी गए ,
जब आँख खुली उसकी ,
उसकी बेटी ने बिदाई ले ली थी ,
एक गुलाब बनने के लिए ,
या शायद एक गोरैया बन चहकेगी ???!!!!! .....
18 अप्रैल 2018
लकीरें
हथेली से गुजरती हुई
वो पतली सी पानी की धार
पथ्थर की तरह
एक लकीर बनाकर चली गई .....
सहर में एक अक्स उभरकर निकला
उस लकीर की गहराई से
एक आवाज भी आई ...
वो आवाज में घुला था मेरा नाम ...
दौड़कर खिड़की खोली ,
एक सर्द हवा का झोंका
मेरे चेहरे को छूकर कमरे में आ गया...
मैं खामोश वो झोंके से उभरा वो
गीत सुनता रहा जो तुम गाती थी...
अक्सर मुझे बुलाने का इशारा देते हुए ,
जब उस झरने पर पानी भरने आती थी ...
लोग कहते है ये झरना नही सूखता
कड़ी धूपों में जुलसकर भी !!!!
कैसे सूखे ??
रातों को तन्हाई में झरने के किनारे
रोते है हम दोनों तुम्हारी यादों में भीगते है ....
17 अप्रैल 2018
जिंदगी
कभी खिड़की से झांखती ,
कभी पलकें बिछाएं करती मेरा इंतज़ार ,
मुझे तेरी तलाश थी ,
तेरा दिल भी था मेरे लिए बेकरार ....
पर नही मिलना था मुझे ,
तुझसे जो किये थे
वादे नही कर पाई पूरे ,
तू समझती बिन पूछे मुझे .....
पर मैं खुद से शर्मिंदा नही हो पाती ....
चल आज गले लग जाए ,
न मुझे कोई गिला तुझसे ,
न कोई शिकवा तुझे भी होगा ,
अधूरे अधूरे से हम फिर भी पूरे पूरे से हो जाए....
20 दिसंबर 2017
पतझर
मेरे अल्फाज भी गिरते रहे ....
चमन रो रहा था सिसकियों मे,
अल्फाज अश्क बनकर बहते रहे ....
सुनी डालियों पर सन्नाटे का है घरौंदा,
इन्तजार मे बहार की आहट मे
सरसराहट से टहनी से चिपका रहा वो पत्ता .
11 दिसंबर 2017
हमसफर
10 दिसंबर 2017
हवाओ का रुख
28 मार्च 2017
सूरज से लड़ते हुए .....
गर्मी के गहने पहनकर सड़कों पर ....
आज भाव भी बढ़ गए दरख्तों के
सड़क के किनारे खड़े रहकर जो
तमाशाई दुनिया को देखते है चुपचाप ...
क्या चिड़िया ?? क्या जानवर ?? क्या इंसान ???
उसकी छाँव में आज सब महेमान ....
वैसे तो बारिश के दिनों में अक्सर आते है
थोड़ी देर ठहर तो जाते है ...
पर सुनसान सड़कों को डामर से पिघलते देखा है ,
चप्पल भीतर भी फफोलों को उभरते देखा है ,
तब वो पसीने की बूंदो से मेरी जड़ों को
सींचते हुए रुमाल जटकते है ,
मीठे पानी को थोड़ा नमकीन सा कर देते है .....
रुक कर थोड़ी देर चले बाशिंदों को क्या पता ???!!!
मेरी टहनी का एक एक पत्ता तुम्हारी छाँव के लिए
जलता रहता है दिनभर सूरज से लड़ते हुए .....
1 मार्च 2017
तक़दीर कहकर ....
भूल जाना भी तुम्हें मुमकिन न था ..
जिंदगी के एक मोड़ से तुम मुड़े ,
दूसरे छोरसे मेरा आना वाजिब न था ...
माना जुदा थी तुम्हारी राहें मुझसे ,
माना मेरी मंज़िल के अफ़साने भी अलग ,
बस चार कदम साथ चलने का बहाना था ,
अकेले चलते रहे भले एक कारवां साथ था ...
तुम्हें याद रखु तो किस नाम से ??
तुम्हें पुकारूँ कभी तो किस नाम से ??
बिछड़ते वक्त तक दूर से सिर्फ निगाहें मिली थी ,
और आँखों के फलक पर तुम्हारा नाम लिखा न था ...
चलो अजनबी तुम अजनबी हम ,
दो पल आँखों से लिखा वो तक़दीर का अफसाना था ..
तुम्हें याद रख लूंगा तस्वीर कहकर ,
तुम्हें भुला दूंगा तक़दीर कहकर ....
विशिष्ट पोस्ट
मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!
आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...

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आज के ज़माने में हम जिस रफ्तारसे जिंदगी में भाग रहे है उसमें बस एक ही चीज का अभाव हमें खाए जा रहा है और वह है फुरसत ...!!!!ढूंढो सुबह से शाम ...
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अब हम जा रहे है अपने इस भ्रमणके तीसरे पड़ाव की ओर .... जैसे की आपसे मैंने पहले भी बताया था की मेरी सबसे पसंदीदा जगह है ऋषिकेश हरिद्वारसे तकर...