दूर दूर तक भीड़ ही भीड़ है ,
पर कोई कुछ बोल नही रहा .
भीड़ को चीर कर बस बरबस दौड़ रहा सन्नाटा ...
खामोशी भी उसका हाथ थामे है चल रही,
सुनी आँखों में कितने ही सवाल लिए ...
कोई कुछ बोलता नही ...
हजारों सवालों का समुन्दर लहरा रहा है ,
पर न कोई शोर न आवाज ,
भीड़ में खड़ी एक औरतकी कोख से एक आवाज सुनाई दी इस सन्नाटे में ,
माँ , मैं तेरी कोखसे बोल रही हूँ ,
पहले मैं तरस रही थी इस दुनिया में आने को , उसे देखने को , उसे प्यार करने को....
पर मुझे नही आना अब ,
खौफनाक दरिंदगी की दास्तानों से
डरा हुआ तेरा दिल मैं महसूस कर रही हुँ..
छोटी सी जान भी सलामत न रही
दरिंदगी और वहशत से अब ,
नहीं आना इस दुनिया मे अब इंसान के लिबास में मुझे अब ,
में जा रही हूं तुमसे दूर कहीं ,
कल तेरे गुलाब के पौधे में खिलूँगी
एक गुलाब की कली के रूपमे ,
तेरे आंगन को महकाने को ...
भीड़ से एक धक्का आया ,
वो औरत गिर गयी ,
थोड़े मानुष उस पर से गुजर भी गए ,
जब आँख खुली उसकी ,
उसकी बेटी ने बिदाई ले ली थी ,
एक गुलाब बनने के लिए ,
या शायद एक गोरैया बन चहकेगी ???!!!!! .....
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २३ अप्रैल २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
निमंत्रण
विशेष : 'सोमवार' २३ अप्रैल २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक में दो अतिथि रचनाकारों आदरणीय सुशील कुमार शर्मा एवं आदरणीया अनीता लागुरी 'अनु' का हार्दिक स्वागत करता है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २३ अप्रैल २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
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