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21 जनवरी 2012

राहबर ...

रेखा खूब मायूस होकर बैठी थी अपनी खिड़की पर ....सिर्फ एक गुण के लिए उसकी मनपसंद मेडिकल लाइनमें उसका दाखिला नहीं हो पाया ..बेहतर तो ये होगा की जिस संस्थामें वो दाखिला लेना चाहती थी उस संस्थामें नहीं हो पाया ....उसे घरमे सभीने समजाया पर वो गुमसुम खिड़कीके बहार सड़कको तकती बैठी रही ..ऐसे दो दिन बीत गए ....
तब उसके सामने के फ्लेट वाली एक नन्ही सी लड़की बगीचेमें खेलती हुई दिखी ...वो देख रही थी एक टूटे हुए फूलको वो फिरसे टहनी पर लगानेकी कोशिश में है ...वो भी गुलाबके फूल को गैंदेके पौधे पर ..उसे पहली बार हंसी आई ...वो उन लम्होमे भूल गयी की वो ग़मोंसे घिरी हुई है ...वो नीचे गयी ...उसने उस बच्चीको पूछा की वो ऐसा क्यों कर रही है ???? तब उसने बहुत मासूमियतसे कहा ...ये फूल टूट गया है ..तो फेविकोलसे उसे चिपकाना है तो फिर उसे डालीसे चिपका दूंगी तो ये जिन्दा हो पायेगा ..उसे खाद और पानी मिलेगा ....तब रेखाने उसे सब समजाया की ऐसा नहीं हो सकता .....उस बच्ची का नाम राही था ..वो उसे जबरदस्ती अपने घर ले गयी ...रेखा की माँ इन सब पर नज़र रखे थी ...उसे थोडा अच्छा लगा की रेखा बहार निकली ...
बच्ची ने अपनी चित्रकी किताब निकाली....उसने अपने सारे चित्र उसे दिखाए ......उसकी माँ को कहा राही बहुत ही प्रतिभाशाली है ..उसे आप कोई अच्छी संस्थामें क्यों नहीं चित्र सिखने भेजते ?????
राही की माँ बहुत ही समजदार थी ...उसने जवाब दिया : बेटे, मुझे पता है ..पर ये कला तो इंसानके भीतर होती है ...उसे कोई व्यक्ति या संस्थाके जरिए बहार नहीं ला जा सकता ..सिर्फ उसको परखने और प्रेरणा की जरुरत होती है ....और ये प्रकृतिसे अच्छा शिक्षक कौन हो सकता है ...मैं अक्सर राही को लेकर कोई सड़क के किनारे या कोई बगीचे या कोई जगह पर लेकर जाती हूँ ..वो जो भी कुछ देखती है घर आकर उसे केनवास पर उतारती है ....मैं उसे कोई नापतोल पर बांधना ही नहीं चाहती ....
रेखा ने कहा : ये भी ठीक है ....फिर तो उसने राही से दोस्ती कर ली ....
रेखा घर पर आई ...उसने फिर से सोचा ...राही की माँ सच तो कह रही थी ..जो होता है वो जज्बा इंसान के भीतर होता है और उसे कहीं भी जाकर बहार ला सकते है ...उसके लिए कोई संस्था की जरुरत कहाँ होती है ???? 
इस छोटीसी घटनासे उसकी दृष्टिमें आमूल परिवर्तन आ गया ..उसने मेडिकल के पास के शहरमे एडमिशन फॉर्म भर दिया ...रेखा के माँ बाप को ये पूरी बात समज तो नहीं आई पर वो रेखा के निर्णय से खुश हो गये ........
=कहते है खुदा खुद तो नहीं आ सकता हमारी तक़दीर बनकर   ,
तब वो भेज देता है किसी फ़रिश्ते को हमारा राहबर बनाकर .......

16 जुलाई 2011

और मैं .........

कल एक ख़त आया ...एक पुराना दोस्त था ....कई सालसे गुमशुदा था ...ना ना आप गलत सोच रहे थे ...मेरी फ्रेंड लिस्टमें गुमसा था ...मैंने उसे कोई दुःख नहीं पहुँचाया था पर उसे मेरी कोई बात बुरी लग गयी इस लिए वो खुद ही मुझसे दूर चला गया होगा ...आई थिंक सो .......क्या करूँ मेरी मुफलिसीके दिन थे तब वो मेरा गहरा दोस्त था ...पर मेरी किस्मतसे ज्यादा मेरी मेहनतने मेरा साथ दिया और मैं मेरा सपना सच होता देख पाया ....हाँ मैं एक रंगमंच का कलाकार हूँ .....बेहद कामियाब ....अब मेरे नाम के चर्चे नाट्यमंच पर टॉप ब्रेकेटमें होने लगे है ....मैं लोगोसे घिरा रहता हूँ .....मुझे अपने परिवारके लिए वक्त नहीं मिलता पर मैं एक दिन निकाल ही लेता हूँ ....हा मैंने एक दिन एक काम किया ...मेरे लिए जो गैर जरुरी लोग थे उनको खुद से दूर कर दिया ...उन्हें इतनी बुरी तरह से इग्नोर किया की वो लोग खुद इस अपमानसे दुखी होकर खुद ब खुद दूर चले गए ....

ये लोगमें कुछ ऐसे मुफलिस भी थे जो शायद मेरे नजदीक रहे तो मेरी इमेज पर असर होता था .....अब तो मेरा जन्मदिन मेरे घर के लोगोसे ज्यादा मेरे प्रशंसक लोग अति उत्साहसे मनाते थे .....कितने महेंगे तोहफे , कितने सारे गुलदस्ते ...अब तो शहर के बड़े होटल मुझे बतौर मेहमान बुलाने के लिए कतार लगाते थे ....एक बहुत ही आला लाइफ स्टाइल हो चुकी थी ...जीने का मजा आता था ...अब तो मैं फिल्मोके लिए भी बुलाया जाने लगा हूँ ...वो दिन दूर नहीं की हिंदुस्तान के हर छोटे बड़े शहरमें मेरे बड़े बड़े पोस्टर लगे होंगे .....

लेकिन ये ख़त ...ये दोस्त ...लगता है उसे मेरा कोई काम होगा .....इसी लिए लिखा होगा ...चलो एक चेक साइन करके रख दिया ...उसे जितनी जरुरत होगी उतनी रकम भर देंगे सोच कर तैयार कर दिया .........अब लिफाफा खोला ......कैसे हो ??? मैं सिर्फ पॉँच मिनट के लिए तुमसे ...ना नहीं आपसे मिलना चाहता हूँ .....9926247596 इस मोबाइल नंबर पर फोन करके जगह बता देना ...मैं सिर्फ ये शाम के पॉँच बजे तक ही शहरमें हूँ ..............

मैंने नंबर डायल किया ....हेलो ...श्याम ...कैसे हो ???

अच्छा हूँ ...सामने से जवाब आया .....

बोलो क्या काम है ??? मैं तुम्हे शाम रोयल बेंक्वेट होटलके रेस्तोरांमें मिलूँगा ....हाँ फिकर मत करना बिल मैं चूका दूंगा ...आज की शाम का आधा घंटा तुम्हारे नाम .........

शाम पॉँच बजे ...

रोयल बेंक्वेट के बाहर एक मर्सिडीज़ आकर खड़ी हो गयी ....

उसमेसे एक सूट बूटमें सज्ज सज्जन ....साथ में सात साल का बच्चा था .......

थोड़ी देर में एक टोयोटा गाड़ी आई जिसमे से अभिनेता उतरे ....

उसने इधर उधर देखा ...कोई नज़र नहीं आया ...तब होटल का दरवान उसे बुलाने आया ...आप जिसका इंतजार कर रहे है वो अन्दर है ....अपने कपडे और बाल ठीक करके ये जनाब अन्दर गए .....

सामने खड़े श्याम को देखकर ये हक्के बक्के हो गए ...थोडा सा बौखलाकर हाथ मिलाया .....श्यामने उसके हाथ में एक लिफाफा दिया ...और कहा :

यार , मुझे आगे पढना था पर मेरा वक्त बुरा था ...तब तुमने मुझे दस हजार रूपये दिये थे ...उसीकी मददसे मैं आगे पढ़ पाया ...स्पेस रिसर्च के लिए स्कोलरशिप मिली ...अमेरिका के सबसे अच्छे शैक्षणिक sansनासामें काम कर रहा हूँ ......इस साल मुझे अवकाश क्षेत्रमें विशिष्ट संशोधनके लिए नोबेल पुरस्कारसे सम्मानित किया गया ...ये उसका निमंत्रण पत्र है ...और ये लिफाफा है ...उसमे एक ब्लेंक चेक है ....उसमे एक रकम भरकर तुम पहले की तरह उसे मदद करना जो मेरी तरह वक्त का मारा हो ...तुम्हारे हाथमें मिडास टच है ...जिसे छू लेगा वो आस्मां छू लेगा ....


बाय कहकर वो थोडा आगे गया ... बेटे को गाडी में बिठाया ...पर फिर कुछ याद आया हो वैसे श्याम फिर इस जनाब के पास लौट कर आये और एक तस्वीर उसे दिखाकर बोले और हां ये मेरी धर्म पत्नी है ......आत्महत्या करने जा रही थी ...क्योंकि ये बिनब्याही माँ बननेवाली थी ...उसने तुम्हारा नाम बताया ...उसे ये नहीं पता था की तुम मेरे दोस्त हो ....पर मैंने उससे शादी कर ली ...ये बेटा तेरा ही ही जिसे मैंने अपना नाम दिया ......

बाय कहकर वो श्याम चला गया ........

और मैं .........

14 मई 2011

जीना इसीका नाम है ....

दीप हॉस्पिटलसे बाहर आया ...
उसने पास के कचरेके बड़े डब्बेमें सारे रिपोर्ट फेंक दिए । बस जो याद रखना था वो सिर्फ एक ही बात थी । उसके पास सिर्फ छ महीने की जिंदगी मुश्किलसे बची है ...और कोई है नहीं जिंदगीमें जिसे उसकी कोई फ़िक्र हो या उसकी जिंदगीमें दीप के होने ना होने से फर्क पड़े ...पापा नहीं थे ..भाई भाभी अमेरिकामें गए तो सात साल में कभी वतन का रुख नहीं किया ...माँके लिए बड़ा भाई सब कुछ था .....
इस रिपोर्ट को रख कर क्या करे ???? हां एक बुआके घर पर रहता था यहाँ बेंगलुरुमें ...अब उसने कुछ और नहीं सोचा ....बुआ जी से कहा कंपनी मुझे छ महीनेकी ट्रेनिंग के लिए जर्मनी भेज रही है ...थोडा पेकिंग करके निकल गया ...सीधा कोलकाता .....
कंपनीसे तबादला भी पहले ही मांग लिया था जो इसी वक्त हुआ ...बुआ को कह दिया की अब जर्मनी से पहले कोलकाता शिफ्ट हो रहा है ....बस एक कड़ी भी टूट गयी .....वहां मेट्रो में जाते वक्त उसकी मुलाकात मितालीसे हुई .एक बेहद हंसमुख लड़की ....एक नर्सरी स्कुलकी टीचर थी ...और शनिवार को एक विकलांग बच्चोकी स्कुलमें जाती थी ....उसने उस स्कुल का पता लिया ..एक शनिवार दीप भी वहां गया ...उधर दर्दसे कराहती जिंदगी थी पर उसमे आंसू नहीं थे ...उन छोटे बच्चोने कमजोरी को स्वीकार करते हुए जीना सिख लिया था ...वो लोग बड़े खुश थे ...बस फिर क्या था !!! दीप ऑफिससे सीधे इधर आकर इन बच्चोके साथ दो घंटे बिताकर ही जाता था ...वहांके ट्रस्टीने भी उसे इजाजत दी ...वो सुबहमें जल्दी उठता था ...उसने एक वृध्धाश्रममें जाना शुरू किया ...जरुरतमंद वृध्धलोग को वो चिठ्ठी लिख देता , उनके लिए चीजें लेकर जाता ...उनकी दवाई ,डॉक्टर के पास ले जाना ये सब उसे बहुत भा गया ...उसकी जिंदगी दौड़ने लगी ...उसे अपनी बीमारी भी याद नहीं आती थी ....
पर वहां के एक स्कुलके ट्रस्टी से ये बात नहीं छिपी की एक इंसानियत का उम्दा काम ये छब्बीस साल का लड़का कितनी लगनसे करता है ...मितालीका एक अच्छा दोस्त बन गया ..रविवार शाम दोनों मिलते और बहुतसे बातें भी करते .....
पता नहीं पर मौतकी कगार पर खड़े दीपको जिंदगीकी जरुरत महसूस होने लगी ...ये चार महीने में पूरी तरह बदली जिंदगीसे वो प्यार करने लगा ....उसके कितने सारे अपने थे जिनको उसकी जरुरत थी ????? वो जिंदगी उनके लिए चाहने लगा ...पर अब बीमारी रंग दिखाने लगी .......वो ट्रस्टी श्री जमनादास एक दिन उसके घर आये और बताया उसे कोलकाताकी महानगर पालिकाने निस्वार्थ नगरसेवक के ख़िताब के लिए चुना है ....
बस बुझते हुए दिएमें और तेल बाकी ना था ...एक सुबह वो उठा ही नहीं ....ना कोई दुःख ना पीड़ा ...बस सुबह दूधवाला आया ...उसने दरवाजा न खोला तो पास पडोसीको जगाया ...और पता चला पंछी तो दूर दूर उड़ गया ...एक चिठ्ठी पड़ी थी पास में ...लिखा था मेरी आँखें और देह मेडिकल कोलेज को दान कर देना ......

उस दिन उस स्कुलका हर बच्चा रो पड़ा ....उस वृध्धाश्रमके हर वृध्ध को जीतना गम उनके अपने संतानका घर छोड़ने का नहीं हुआ था उससे कई ज्यादा आंसू ये दीप दे गया ......उसकी जमापूंजी सारी उसने अनाथाश्रम और वृध्धाश्रमको आधी आधी बाँट दी थी ......
बस मिताली उसकी तस्वीर ले गयी ...उसके मुंहसे ये स्वर निकले जीना इसीका नाम है ....

7 अप्रैल 2011

एक माँकी मुक्ति

रन्नाका मोबाइल बजा ...
बेटी झील का फोन था इंडियासे ....
झील ने कहा : माँ जल्दी वापस आ जाओ ..पापा की तबियत बहुत ही ख़राब हो चुकी है ...डॉक्टरने भी कह दिया है अब दवा नहीं दुआ काम करेगी ...
रन्नाने लौटने को हामी भरी ...
उसने एक फॉर्म पर दस्तखत कर दिए और अर्जंटमें फ्लाईटकी टिकट बुक करा दी ...
रात को वह फिर इंडियामें सूरतमें अपने घर लौट गयी ... सारे रिश्तेदार जमा हो चुके थे ...उसने रोहन यानि की उसके पति की और देखा ....आँखें तो गहरी हो चुकी थी ..साँसे नाम की चल रही थी ...जाने उनको भी रन्ना के लौटनेका इंतज़ार था ..उसने जबरदस्ती दो हाथ उठाये और उसके आगे जोड़े ....उसने धीरे से उसे पकड़ कर नीचे रख दिए ....रोहनकी साँसे रूक गयी ....कमरा सिसकियोंसे भरने लगा ....अंतिम यात्रा की तैयारीमें सब जुट गए ....
रन्ना धीरेसे बालकनीके झूले पर जाकर बैठ गयी ...उसमे कोई विचार ठहरा नहीं था ...बस एक स्थितप्रग्य की तरह बैठी रही .... बारह दिन सारे संस्कार पुरे हो गए ...रन्ना बेग भरने लगी ...
बेटी झील चौंक गयी ... उसने कहा : माँ ये कहाँ की तैयारी हो रही है ???
रन्नाने कहा : मैं वापस अमेरिका जा रही हूँ ...मुझे हमेशा के लिए उस यूनिवर्सिटीमें पढ़ानेके लिए ऑफर मिली है ...और मैंने उस ऑफरके स्वीकृतिपत्र पर यहाँ लौटने से पहले ही दस्तखत कर दिए है ...मुझे अगले सोमवार उधर हाजिर होना है ....
बेटे अमरने कहा : माँ आप मेरे साथ लन्दन चलोगी ...आपकी बहु अलका को भी डिलीवरी आने वाली है ...अब आप मेरे साथ ही रहोगी ...आप अगर अलग रहोगी तो हमें आपकी चिंता रहेगी ...
बेटी झीलने कहा : माँ यहाँ की सारी प्रोपर्टी का क्या करना है ...आपको अभी कितने काम करने है .........उसने रन्नाको खूब खरी खोटी सुनाई ...उसने वहां तक कहा की जो बीवी के फ़र्ज़ थे रन्ना उसे चुक गयी ...उसने पापाकी मौत के लिए रन्ना को जिम्मेदार ठहराया ....
रन्नाने के पावर ऑफ़ एटोर्नी का लेटर पर्ससे निकाल कर उसके हाथमें रख दिया ...जिसमे झीलके नाम सारे पावर लिख दिए थे ... तब चित्रा जो रन्ना की दोस्त थी वो कमरेमें दाखिल हुई ....
झीलने उसे माँ को समजानेके लिए कहा ....
चित्राके होठ पर एक फीकी हँसी आ गयी ....
झीलके तेवर देखकर उसे अंदाजा हो चूका था की यहाँ क्या हुआ होगा ....
चित्राने हाथमें पानी का गिलास लिया और कहा : क्या तुमने तुम्हारी माँ के झख्म को कभी महसूस किया है जो तुम्हारे पिताजीने उसे दिए है .....उसके शरीर पर जो मार के दाग होते थे उसका दर्द महसूस किया था ...तुम्हारे पिताजी की जब ज्यादतियां हद पार हो गयी तब उसने तुम दोनों को हॉस्टल भेज दिया ...ये जो प्रोपर्टी है ना उसे तो तुम्हारे पिताजी कबके गिरवी रख चुके थे ...तुम्हारी माँ ने पुरे व्यापार को अपने हाथमें लिया और आज इस मक़ाम तक पहुँचाया ...अकेले ही ...तुम्हारे पिताजी तो हफ्ते में एक बार जाते थे अपनी ऐयाशी के लिए पैसे लेने ...जिसे तुम्हारी माँ ने दिए भी .... एक सांसके लिए चित्रा रुकी ...
फिर कहा : उसने हर जुर्म सहे तुम दोनों के खातिर ...तुम्हारा संसार भी बसाया ...तुम्हारी माँ एक बड़ी ही अच्छी चित्रकार थी ...आज अमेरिका की यूनिवर्सिटीमें वो भारतीय चित्रकला की प्रोफ़ेसर है जो उसका पेशन रहा है हमेशा से .... तुम दोनों के शादी के बाद उसने चुपचाप अपने जुल्मके खिलाफ आवाज उठाई ...उसने सारा कारोबार बेच दिया ...और सारे पैसे एक ट्रस्ट के सुपुर्द करके खुद अपनी कला की आराधना के लिए चली गयी .....तुम्हारे पिताजीने पिछले सात सालसे उसकी कोई खबर नहीं ली ....सारी प्रोपर्टी एक ट्रस्ट के पास है ...वो तुम्हारे पिताजी को पहले की तरह पैसे देते रहे ...और जब वो बीमार हो गए तब उन्होंने तुम्हारी माँ को बुलाया ...पर वो नहीं लौटी ...आज तक उसने तुम्हारे खातिर सारे जुर्म सहे ..अब उसे तुम दोनों मुक्ति दो ...अपने फ़र्ज़से ...... रन्ना चली गयी ....दोनों संतानके आंसू भी उसे रोक नहीं पाए .....क्योंकि वो जानती थी की इतने साल उसके संतानोंने भी उसकी कोई फ़िक्र नहीं की थी ..अब उन्हें उसकी गरज थी इस लिए वो उसे रोक रहे थे ..... सिर्फ चित्रा ही उसके साथ थी ......

9 जनवरी 2011

तेरी उम्मीद ....

निर्या दीपा की दोस्त है ,थी और रहेगी .....
बचपनमें साथ बढे और पले स्कुल कोलेज साथ साथ रहा ...दोस्ताना वो जिसमे हर अदा शामिल ...प्यार झगडा ,रूठना मनाना ....दोनों बीस साल की हुई तब दीपा अमेरिका चली गयी ....शादी के वक्त एक ख़त मिला था ....फिर कोई सुराग नहीं ...बस जहनमें बहुत सारे खुबसूरत लम्हे रख छोड़े थे ....
निर्या रोज फेसबुक पर उसे ढूंढती थी ...पर वो नहीं मिल रही थी .....ऑरकुट भी छान लिया ...कोई मतलब नहीं ...उसके शहर भी जाकर आई क्योंकि निर्या शादी के बाद दिल्ही में सेटल हुई थी ....पुराने शहरमें बहुत सारी यादें उसकी दीवार दरिचो में कैद थी बिलकुल अनछुई सी ...उस पर कोई धुल या जंग नहीं लगी थी ...शायद ये प्रमाण था की उसकी यादें भी इसी शिद्दत से ताज़ा थी ...ये दिल की गवाही थी .....वो कोलेज गयी ...वहां पर एक अध्यापक मिले श्री समीर श्रीवास्तव ....उनके साथ पढ़ते थे और चार साल पहले अमेरिका से लौटे थे ....
अनायास इतने सालों के बाद एक उम्मीद जागी ...समीरने कहा की दीपा अब जर्मनी में है ...और उसके तलाक हो चुके है ...उसकी बेटी के साथ सेट है ....समीर के पास उसका जर्मनी का पता मिला ....
दिल्ही लौटकर निर्या ने पहला काम उसे ख़त लिखने का किया ....लेकिन एहसास जम गए थे ...सिर्फ आंसू बह रहे थे ...उसने रोते हुए इल्तजा की दीपा ये ख़त मिले तो कमसे कम उसे जवाब जरूर दे ........
एक महीने तक उसने पोस्टमन की राह देखी ...एक दिन बहुप्रतीक्षित ख़त आया ...दीपा का ही था ....
ख़तकी लिफाफा फाड़कर खोलते हुए तक तो निर्या के हाथ पाँव कांप रहे थे ........आंसू को कई बार पोछना पड़ा क्योंकि की अक्षर धुंधला रहे थे ...अंत में एक ईमेल एड्रेस भी लिखा था और फोन नंबर भी ....
निर्या की तलाश पूरी हुई थी ....अब हफ्ते में एक फोन और दो दिनोमे चेट का सिलसिला शुरू हुआ ...पुरानी यादें ताज़ा होती रही ....और एक दिन सुबह में निर्या की डोर बेल बजी और सामने दीपा थी .......
दो बिछड़े गले लगकर कुछ भी बिना कहे कई मिनटों तक बहुत कुछ कह गए जब तक निर्याके पति देव ने उन्हें फिर जागरूक नहीं किया ......बहुत सारी बातों का ढेर ...खूब सारा घूमना ...शोपिंग के बाद दोनों ने तय किया की वापस अपने पुराने शहर अहमदाबाद जाय ...एकेले दोनों ही ....
एक एक जगह खुद को जाकर ढूँढा ....वही पुरानी मानिक चोक की पानी पूरी और एच एल कोलेज का कम्पाउंड में जाकर भी एक घंटा बैठे ...वो कांकरिया तालाब ....सब कुछ बदला था फिर भी इस शहर के इतिहास के अनजाने सफे पर उनकी दोस्ती की दास्तान भी बरक़रार थी ....
निर्या ने कहा दीपा से अब तुम भी कोई सोशिअल नेटवर्क साईट पर आ जाओ ....दिल का हाल बयां करेंगे .....
उस पर दीपा का जवाब था ::: वो बेकरारी कहाँ जो दोस्ती को इतनी गहरी बनाये ????हाले दिल जो रोजमर्रा बयां किये जाए तो उनमे वो कसक नहीं बच पाती जो हम दोनों के बीच आज भी बरक़रार है ....अरे मेरा हाले दिल मुझे गर तुमसे बयां किया है वो पूरी दुनिया से कहने की मैं कोई जरूरत नहीं समजती ....क्योंकि तुम्हारे ख़त मिलना वो पल ...उसके लिए तो शब्द अधूरे होते है ...फोन पर तुम्हारी आवाज ...जैसे लगता था तुम मेरे से कभी दूर नहीं हो ...वो विडिओ चेट ......दूरी नहीं रही ...पर आज जब हम इतने सालों के बाद मिले है वो शिद्दत शायद कोई जरिये में नहीं होगी .....मैं तुम्हे ऐसा ही पाना चाहती हूँ .....
किसी की फुरकत को महसूस कर
प्यार और बढेगा गर दिलमें कशिश है ....
जो कल पुर्जों से बयां किया जाए ....
उस प्यार पर कैसे यकीं कर ले ???????
बस अगले मिलन के वादे पर दोनों देखते रहे एक दुसरे को ....दीपा प्लेन की खिड़की से और निर्या विजिटर लोंज के अहाते से .....
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शायद दीपा सच कह रही थी ....जिस तक पहुँच ना पाए ऐसी दोस्ती एक अनजान से
वो उस कशिश को हासिल नहीं कर सकती जो गुजारे साथ पलों की यादों में समायी है ...
एक तस्वीरमें तेरी हथेली की गरमाहट कैसे महसूस कर पाएंगे ?
जो तुझे गले मिलने पर तेरा हाथ मेरे हाथमे लेते वक्त एहसास बन गयी थी ???????

24 नवंबर 2010

तुम पुरे दिन घर में क्या करती हो माँ ???

केयूर :माँ नीली शर्ट नहीं मिली .....
नीला : माँ मेरी कल आर्ट कम्पीटीशन है मैं देर से आउंगी .....
निलेश : ऋतू ,आज शाम मेरी डिनर मीटिंग है देर से लौटूंगा ...
ऋतू ...
एक गृहिणी है ..बेटा केयूर कोलेज में है और नीला बेटी ग्यारहवी कक्षामें है ...उस शाम को ऋतू कुछ नहीं कर पाती है ....सब उससे खफा है बहुत ...
सब के मुंह पर एक ही लाइन आती है ...घर में रहती हो तो पुरे दिन तुमने किया क्या ?????
किसीने उसके सर पर हाथ रखकर देखा होता तो पता चालता अंगारेकी तरह बदन तप रहा था ...कुकर से जब मुंग दाल की खिचड़ी और कढ़ी निकले तो सब उस पर बरस पड़े ...बेडरूममें ऋतू सिसक रही थी ....फोन पर पिज़ा ऑर्डर किया गया ....ऋतू भूखी ही सो गयी ...रात निलेश घर पर आया तब उसका हाथ ऋतू के हाथ को लगा ...जैसे अंगारा छू लिया है ऐसा लगा .....ऋतू बेसुध सी थी ...थर्मोमीटरसे नापा ...एक सौ तीन बुखार .....फ़ौरन डॉक्टर को बुलाया गया ....हालात बिगड़ थे ...अस्पतालमें भर्ती किया गया ....केयूर और नीला घर पर थे ...निलेशने छुट्टी ली .... दो दिन के बाद ऋतू ने उसे ऑफिस जाने को कहा ....
चार दिन के बाद ऋतू घर लौटी ....तो जैसे लगा ये घर नहीं जंगल है ....सारा तितर बितर ....सरन ताई को रसोई के लिए रखा गया था .....शाम को जब सब लौटे तो पूरा घर ऋतू के लौट आने की गवाही दे रहा था ....शाम खाना खाकर निलेशने दोनों बच्चो को बुलाया ....पहली बार सबकी जबां खामोश थी ....शुरुआत नीलाने की ...
माँ ,सॉरी आपको हम गलत समजे ...माँ तुम्हारी गैर हाजिरीमें हमने आपकी अहमियत समजी है ...माँ तुमने हमें स्कूली शिक्षा दी है अब घर की भी शिक्षा दो .....अब हम घर काम सीखना चाहेंगे ....
केयुरने कहा : माँ अब मैं अपनी चीजें संभालना सिख गया हूँ ....
निलेशके चेहरे पर मुस्कराहट थी ......जिसने बच्चो को इन चार दिनोंमें घर की लक्ष्मी की कदर करना सिखाया था ...ऋतूको बहाने से अस्पताल का नाम देकर थोड़े दिन उसकी सहेली के घर भेज दिया था ...ताकि बच्चे उसे ये ना कहे ..की माँ तुम पुरे दिन घर में क्या करती हो ???????

31 अक्टूबर 2010

दीवाली का तोहफा ....

रेक्स यानी राही सुबह से देख रहा था .....खुशबू कलसे अलमारी की सफाई कर रही है ...कुछ किताबें कुछ फोटो बार बार देख रही है ..फिर कहीं खो जाती है ....दस बजे खुशबू रोज की तरह टाइम स्क्वेर के ऑफिस में जाने को निकल गयी ....रेक्स घर पर रहा ...शाम की शिफ्ट रिक्वेस्ट करके ले ली ...वो अलमारी टटोली ...वो किताबें ख़त फोटो सभी देखा ...........
फिर निकल गया अपनी कार में ......
दो टिकेट्स ......जयपुर .....
शाम को रेक्स तो ड्यूटी पर चला गया ...कुरिअर आया ...खुशबूने एन्वेलेप खोला ...दो टिकट इंडिया जयपुर ....अपनी और रेहानकी .........सपना सा लगा और खुश भी हुई ....शाम को पॉँच बजे रेक्स का फोन आया ...उसे आज रात को ही ड्यूटी परसे सीधे ही एक कोंफरंस के लिए पेरिस रवाना होना पड़ेगा .....उसने बैग पेक करके ड्राइवर के साथ ऑफिस भिजवा दी...खुद के पेकिंग भी शुरू की ...इंडिया जाने में सिर्फ दो दिन बचे थे ...रेक्स तो पॉँच दिन बाद आने वाला था ....उसने ही टिकट बुक करवाई थी ...इस लिए उसे तो सब पता था .....खुशबू अपने बेटे रेहान को लेकर रवाना हो गयी ....
पुरे दस साल के बाद वो भारत लौटी थी ...रेक्ससे शादी मा बाप को पसंद नहीं थी ...रिश्ता तोड़ लिया था ....ना फोन ना ख़त ...पता नहीं अब बुलाएँगे या नहीं ...पर एक बार देख लुंगी तो तसल्ली हो जाएगी ....रेक्स एक अनाथ था बस उसका यही कसूर था .....प्यार के लिए उसने सब कुछ छोड़ दिया था ...सब विमान यात्रा के दौरान ताज़ा हो गया ......जयपुर वो अपने घर में पहुंची ....वहां पर अब कोई और रह रहा था ...उसे ठेस लगी ...उसने गली में दुसरे पहचानवाले से पूछा अपने फेमिली के बारे में ...तो एक बुजुर्ग ने कहा वो लोग अब पुराने शहर की एक छोटी सी गलीमें रहते है ...सारी दौलत चली गयी ...उसके बापू रिक्शा चलाते है और मा दूसरोके बर्तन साफ़ करती है ...भाई तो आवारा होकर कबका जा चूका ....खुशबू रो पड़ी ...उसने पता लिया और चल दी .......
उस गली उस नुक्कड़ पर ...आज रिक्शा घर पर थी ...सामने टूटी चार पाई पर उसके पिताजी सोए हुए थे ...बीमार थे ...उसने दस्तक दी .....मा बाहर आई ....पुराने खुमार और खूबसूरती अब गरीबी के चोले में दफन हो चुकी थी ...बालों की सफेदी कुछ जल्द ही आ गयी थी ....
मा ...खुशबूने आवाज लगाईं ......
पिताजी खटिया से उठ खड़े हुए ......मेरी तिब्बो ( उसका प्यार का नाम )
मा दौड़कर लिपट गयी ......
मा , बेटी पराया धन है पर आपने मुझे इतना पराया कर दिया ....??????
रेहान सब देख रहा था दरवाजे पर खड़ा खड़ा ...उसे खुशबू ने अन्दर बुलाया ...अपने पिताजी के हाथ में उसका हाथ दिया ...पिताजी ये आपका नाती ...रेहान .....ये तो सूद था ...मूल से भी प्यारा ........तीसरे दिन दीवाली थी ....ये दीवाली इन तीन रिश्तो की असली दीवाली हो चुकी थी ......दीवाली की सुबहमें एक टेक्सी रुकी वहां ....खुशबू ने देखा उसमे से रेक्स उतरा .....बड़ा ही खुश ........उसने सबको पहने कपडे में ही उधर से उठाया ....
जयपुरमें उनकी पुरानी हवेलीके पास गाडी रोकी ....उसकी चाबी अपने ससुर समशेरसिंह को दे दी .....और कागजात भी .....समशेरसिंह क्या कहते ??????कुछ बाकी नहीं रखा था इस दामादने जो बेटेसे भी बढ़कर साबित हुआ .......
खुशबू रेक्सको जानती थी ....उसके चेहरे पर गम का साया ना आने देगा कभी ये शादी के वक्त किया हुआ वादा उसने आज पूरी तरह निभाया था .......
रेक्सने हँसते हुए ससुरसे कहा ...देखो पिताजी आपको मेरे क़र्ज़ तो चुकाना ही पड़ेगा ...दामाद हूँ छोडूंगा नहीं ...आपका तो मैंने शादी का खर्च और दहेज़ भी बचाया है ...वो अब वसूल करने आया हूँ ....बस मेरे मा बाप नहीं है ....उन्हें देखा भी नहीं ...आज आपकी जिंदगी में मुझे दामाद नहीं पर बेटा बना लीजिये ....मुझे दीवाली का तोहफा दे दीजिये .....
समशेरसिंह ने उसे गले लगा लिया ....

28 अगस्त 2010

हेलो हेलो ....अ फोन कोल ...

-सर ,क्या मैं अन्दर आ सकती हूँ ?
- हाँ ,बोलो आज कहाँ जाना है ? =हंसकर आलोकने पूछा ।
-सर ,आज मेरे आंटी अस्पतालमें है ,उन्हें टिफिन पहुँचाना है ।
- ओ .के । यु मे गो ....
थोड़ी देर मे रीटाने सारा काम निपटाया और आलोक की केबिन मे रखकर चली गयी ...उत्सुक वहां पर ही था .उसने आलोक से पूछा - तुम इतनी आसानी से छुट्टी कैसे दे देते हो ?
आलोक ने हंसकर कहा - जो काम उसे कल करना था वो भी आज उसने कर दिया और देखना कल वो जल्दी भी आएगी और डबल उत्साहसे काम करेगी ...एच आर डी पालिसी को नहीं इंसानियत को फोलो करता हूँ ...
थोड़ी देर मे एक बोर क्लायंट को भी बड़ी ही नरमी से बात करके फोन रखा ...
अब उत्सुकने पूछा : यार तुम ऐसे लोग को कैसे सह लेते हो ?
आलोकने कहा : कल रविवार है .इसका जवाब अगर चाहिए तो कल सुबहमे आठ बजे तुम तैयार रहना मैं तुम्हे पिक करूँगा ।
उत्सुक तैयार था .ठीक आठ बजे आलोक उसे लेने आया .आलोकने कार एक ख्रिस्ती कब्रस्तान के सामने पार्क की .एक बेहद खुबसूरत बुके ख़रीदा .और अन्दर एक कब्र पर जाकर मोमबत्ती जलाई और बुके रख दिया .कब्र पर लिखा था जेनी दीसोज़ा .उत्सुक शांत खड़ा रहा .आलोकने मन ही मन प्रार्थना भी की .लगभग पंद्रह मिनट वहां पर बैठने के बाद दोनों बरिस्ता कोफ़ी शॉप मे गए .आलोक ने अब कहना शुरू किया ।
ये जेनी की कब्र थी .एक फ्री लांसर आर्टिस्ट थी .अपना गुजारा हो जाए उतने दिन एड एजेंसीमे काम करती रहती थी .अगर फिक्स अमाउंट मिल गयी तो महीने के बाकी के दिन छुट्टी मनाती थी .बड़ी बिंदास । खुद से बहुत प्यार करती थी .हमेशा खुश .मेरे ऑफिस के लिए भी काफी काम किया है .उसकी टेलेंट जबरदस्त थी ।
एक दिन उसने मुझे कहा : आलू ,वो मुझे आलू कचालू ही कहती थी .आलू ,तुम पेरिस जाओ और फेशन कोरियोग्राफर बन जाओ और फोटो जर्नलिजम भी करो क्योंकि उसमे तुम आसमां छू सकते हो । उसकी बात मे दम था ..शायद मेरा सपना उसने कहा था .पर मेरे पास पैसे नहीं थे .एक दिन उसने मुझे एक एन्वेलाप थमा दिया .पेरिस के सबसे बड़े फेशन स्कुल मे एडमिशन करा दिया था उसने .थोड़े दिन पहले उसने मेरे पास पच्चीस हज़ार रूपये मांगे थे .और छ महीने के बाद वापस करने का वादा किया था । लेकिन ये खर्चा तो पूरा ढाई लाख होता है ।
मैंने पूछा तो बोली : देखो मैंने अपना फ्लेट किराये पर दे दिया मैं एक रूम किचन के स्टूडियो अपार्टमेन्ट मे रहने चली गयी .उससे महीने दस हजार रूपये मिल रहे थे वो बचत और मेरी मा के नेकलेस को मैंने गिरवी रखा तो उस पर साथ हज़ार मिल गए .तुम वापस करोगे तब छुड़ा लुंगी ।
और उसने मुझे पेरिस भेज दिया ...तुम सोच रहे होगे वो मेरी तरह यंग होगी ,पर नहीं वो मुझसे उम्र मे बीस साल बड़ी थी । उसके पति फ़ौज मे शहीद हो गए थे और संतान नहीं थी उसकी .फिर भी जिंदगी उसके लिए खुबसूरत थी .पेरिससे मैं लौटा तब मेरी जिंदगी बदल गयी .दिन रात बिजी रहने लगा ॥
वो मुझे फोन करती तो कहता : आई विल कोल बेक लेटर ओन ...और फोन करता ही नहीं .वो मुझे इ मेल करती तो जवाब नहीं देता ...जब फोन आता तो मैं कोंफरंसमे बीजी होता था .मैंने उसका सारा कर्जा सिर्फ एक महीने मे चूका दिया । अब मेरी लोकप्रियतामे सफलता मे मैं चकनाचूर होने लगा ...मुझसे शायद जेनी दूर होने लगी ...
एक दिन मैं कोंफरंसमे था .उसका कोल आया .मैंने उसकी आवाज सुनकर ही कह दिया .मैं बहुत बीजी हूँ जेन .आई विल कोल यु लेटर ओन ....
दो दिन बीत गए ना उसका कोल आया ना मेल .मुझे लन्दन जाना था ..वहां पर एक सप्ताह रहा और लौटा .मेल चेक किये पर जेनी का नहीं था .आंसरिंग मशीन पर भी उसका कोई मेसेज नहीं ...मैंने कोल किया ...तो कोई रिस्पोंस नहीं .मुझे बेचेनी हो गयी .शाम मैं उसके घर गया तो ताला था दरवाजे पर ।
पडौसीसे पूछा तो उन्होंने कहा : जेनी की दस ग्यारह दिन पहले मौत हो गयी ।
मैं वहां पर बुत सा खड़ा रहा .मुझे आघात लगा .जेनी का आखरी कोल अस्पतालसे था जहाँ वो एक कार एक्सिडेंट की शिकार हो कर जिन्दगी और मौत से लड़ रही थी और उसके ठीक एक घंटे के बाद उसकी मौत हो गयी थी ।

तबसे हर रविवार उसकी कब्र पर आता हूँ .इसी तरह .....ये रीटा पहले जूठ बोलकर छुट्टी मांगती थी .एक दिन मैंने उसे पिटर के साथ एक रेस्टोरंटमे बैठकर नाश्ता करते देखा .दुसरे दिन केबिन मे बुलाया और समजाया .प्यार करना गुनाह नहीं पर जूठ बोलना गुनाह है ..तुम जब भी उसे मिलना चाहो ऑफिस का काम ख़त्म करके जा सकती हो ...और वो ही बात मैंने सबके साथ आजमाई ...मैं अब हर फोन कोल एतेंद करता हूँ ...क्योंकि शायद उसी से जेनी की आत्मा को सुकून मिले ...
उत्साह की आँख से पानी बह चला ........

10 अगस्त 2010

सच ये है ...

शीना और सारंग दो अजनबी अचानक एक ट्रेन के डिब्बेमें साथ बैठे थे ...आमने सामने की खिड़की पर ....बारह घंटे के सफ़र के बाद दोनों में एक जान पहचान हो गई जितनी दो हमसफ़रकी होती है ....सारंग उस शहरमें ही रहता था .और शीना उस शहरमें नौकरीके लिए आई थी .उसे कंपनी का एक फ्लेट मिला है .पुरे फर्नीचरके साथ .एक कार मिली है शोफर ड्रिवन ....एक जाने माने अख़बारकी चीफ एडिटर बनकर ...
सारंग जर्नलिस्ट है .फ्री लांस करता है .एक सिलसिले में उसकी मुलाकात शीनासे दोबारा हो गई .दोनों खुश हो गए .दोनों बड़े ही होशियार थे .अपने प्रोफेशनल और पर्सनल जीवनको अलग ही रखते थे .कभी कभी लंच या डिनर साथ होने लगा .धीरे धीरे दोस्ती कुछ और गहराईकी और बढ़ रही थी .तब अचानक एक दिन सारंग को बीना बताये शीना अपने शहर चली गई .लौटी तो कहा उसकी देल्हीमें श्री के साथ एंगेजमेंट हो गयी है ...प्यार तक आगे बढ़ रहा एक रिश्ता वहीँ ठहर गया .....दोनों की दोस्तीमें कोई बदलाव नहीं आया ....
शहर में दंगे हो गए .उस वक्त शीना को चौबीस घंटे अखबारके ऑफिस में रहना पड़ा काम के सिलसिले में .उस वक्त सारंग भी उसके साथ ही रहा .शीना ने महसूस किया की सारंग उसका कितना ख्याल रखता है .उसे कुछ भी कहना नहीं पड़ता .वो उसको खुद शीना से भी ज्यादा जानता है ।
उसे श्री याद आया .एक साडी खरीदते वक्त उसे ऐसी साडी लेनी पड़ी जो सिर्फ श्री को पसंद थी और उसे कतई पसंद ना थी .उतना ही नहीं श्री ने उसे वो साडी पहनकर उसे एक पार्टी में साथ जाने को मजबूर भी किया .......
अचानक श्री ऑफिसमें आ गया .दंगो की खबर उसे यहाँ खिंच लाइ ...उसे सारंग का उधर होना गंवारा ना हुआ .उसका शीना के साथ झगडा हो गया । जाते वक्त शीनाने सगाई की अंगूठी उसे वापस कर दी ........
सारंग हक्का बक्का रह गया .शीनाने सिर्फ इतना ही कहा की एक जबरदस्तीसे खींचा हुआ रिश्ता क्या कामका ???
दुसरे महीने शीनाने अपना तबादला अपने शहर करा लिया .....जाते वक्त सारंगने पूछा ,"शीना क्या तुम मेरे साथ जिंदगी गुजारना पसंद करोगी ??"
शीनाने कहा ," सारंग तुम कल्याणी को चाहते हो ना ? जब मेरी सगाई हो गई तब तुम्हारे जीवनमें वो आ गयी थी मैं जानती हूँ ...मेरी तक़दीर मेरी है ...मैं उसके कारण कल्याणीकी ख़ुशी नहीं छीन सकती ......."
ट्रेन छूटने लगी और शीना देर तक सारंग की और हाथ हिलाती रही ...

4 जून 2010

बदलते रिश्ते ...

कभी कभी मेरी तरह आपने भी ये महसूस किया होगा की हमारी जिंदगीमें कोई ऐसा रिश्ता होता है जो हमारा कोई खुनके रिश्ते में नहीं होता बस एक खुबसूरत हादसेसे हमें वो मिल जाता है और गहरा भी हो जाता है । बस एक ऐसे ही रिश्ते की छोटी सी कहानी है ये .....

रिध्धिमा एक स्कुल टीचर है ...उसकी स्कुल में उसकी ही दोस्त अनुष्का एक महीने के बाद प्रसूति की छुट्टी पर जा रही है ..स्कुल ने एक टेम्पररी टीचर का बंदोबस्त करना है ....

पर वक्तने करवट ले ली ...अब अनुष्का अपने पति के साथ ऑस्ट्रेलिया स्थायी होने जा रही है तो उसने नौकरी छोड़नेकी नौबत आ गयी ....अब वो हमेशा के लिए अलविदा कर रही थी ...

वो सिर्फ रिध्धिमा की ही नहीं पर उस स्कुल के सारे बच्चों की फेवरिट थी ...उसके जाने की खबर सुनते ही प्रिंसिपल से लेकर चपरासी तक के लोग रो रहे थे ...अनुष्का जैसे लोग बहुत ही कम होते है जिसे इतना प्यार मिलता है ...आखिर स्कुलके हर इंसानके आंसू में बह रहे प्यार को समेटकर वो चली गयी .....

अब उसके जगह स्थायी शिक्षककी भर्ती हो गयी ...आलोक ....वैसा ही उम्दा ...बहुत जल्दी ही वो स्कुलमें सबसे घुलमिल गया ...बच्चोको इतना प्यार दिया की अनुष्काकी कमी भी अब कम खलती थी ....रिध्धिमाको उसने एक खास एहसास दिलाया की वो कितनी इज्जत करता है उसकी ...उसके घर भी आना जाना हुआ करता था ...दस साल की उम्र का फर्क वहां घुल जाता था ...

धीरे धीरे वक्त गुजरता गया ...स्कुलको आलोक और आलोक को स्कुल रास आ गयी ...

पर एक दिन अनुष्का वापस आ गई ...उसके पतिके साथ उसका तलाक हो गया था ...उसे वहां जाकर पता चला की वो पहले से शादी शुदा था ...वो वापस आ गई ...

अब शहरमें उसी स्कुल में वापस आने का उसने फैसला किया ...उसकी महारत और लोकप्रियताको देखते हुए शायद स्कुलके मेनेजमेंटको उसको वापस लेनेमें कोई हर्ज नहीं था ...पर अब आलोक का क्या किया जाय??? ...वो भी एक उम्दा इंसान था हाँ विषय की महारत में उससे अनुष्का कहीं आगे थी उसमे भी शक नहीं था .....

स्कुल मेनेजमेंटने आलोक के हाथमें स्थानांतरण का हुकुम ख़त थमा दिया ....एक बिजली गिर पड़ी उस पर और सब पर .....अनुष्कासे सबको प्यार था पर उसके वापस आने की सजा आलोक को क्यों दी जा रही है ????सिर्फ इस लिए की उसकी नौकरी सिर्फ तीन महीने पुरानी है ???? फिर भी आलोकको रिध्धिमाने समजाया भारी मनसे की देखो आज नौकरी आसानी से नहीं मिलती ...तुम्हारे पास एक अच्छी मनपसंद नौकरी तो है ....एक छोटी सी सही एक पहचान तो है ....और सबसे ज्यादा तो किस्मतके आगे किसीकी नहीं चलती ........

जहाँ पर अनुष्का पर हमेशा फूल बरसते थे वहां अब अनदेखासा अंतर सब कर रहे थे ...उसका आना किसीको नहीं भा रहा था ..सिर्फ उसके विद्यार्थियों को छोड़कर !!!!!

रिश्तोके बदलते रूपसे अनुष्का परेशां थी ...पर अब क्या ....जो उसपर जान देते थे अब उसे आते देख रास्ता बदलते थे ....तीन महीनेने उसकी जिंदगी हर तरहसे बदल दी थी ...आलोक तो चला गया पर अनुष्का इन बदलते रिश्तोके रंग के बीच अकेली ही रह गयी .....

बस उसके साथ सिर्फ रिध्धिमा रह गई ...क्योंकि वह मानती थी की कुछ रिश्ते हमारे प्रोफेशनके कारण बनते है ..पर वो आगे जाकर गहरी दोस्ती में तब्दील हो जाते है ....और हर इंसान को अपने प्रोफेशनल रिश्तों को दोस्ती से अलग रह कर जीना होता है ...जो भी हुआ उसमे तक़दीर की चाल थी ...इन तीन महीने में एक नया रिश्ता मिला था आलोकका भी ...पर उसकी सजा मैं अनुष्का को हरगीज़ नहीं दे सकती ...कभी नहीं ....

अनुष्का मेरी कल भी दोस्त थी ...आज भी है ...और कल भी रहेगी ..........

6 मई 2010

सपने ....

आतिश और उर्जा !!!!

बचपनसे आज तक खेले ,पले और पढ़े साथ साथ ...

बहुत अच्छे दोस्त थे दोनों ...बस कल शाम आतिश के पापा का तबादला दिल्ही हो गया ...बस एक हफ्तेमें वो लोग जानेवाले है ...वो शाम आतिश और उर्जा के लिए बहुत ज्यादा भारीपनसे गुजरी ...दोनोंने मुश्किलसे ही कुछ बात की होगी ...अभी दो दिन पहले ही आतिश और उर्जाने अपने सपने को एक दुसरेसे बांटा था ...आतिश एम् बी ए करके एक अच्छी नौकरी करना चाहता था ...और उर्जा एयर फ़ोर्समें पायलोट बनकर आकाश छूना चाहती थी ...

आज की शाम उन्हें महसूस हुआ पहली बार की दोनोने एक दुसरेके बगैर जीना पड़ेगा ये कभी सोचा ही नहीं था ...हाँ ,दोनों प्यार में तो बिलकुल नहीं थे बस अच्छे दोस्त थे पर आज पहली बार लगा की ये दोस्ती कुछ एक कदम आगे पहुँच रही थी ....

खैर वक्त ने वक्त का काम कर ही दिया ...आतिश दिल्ही चला गया ..और उर्जा मुंबईमें अकेली रह गयी .......

आतिशके मम्मी पापा उसे शादी के लिए जोर दे रहे है पर वो मान ही नहीं रहा है ...पता नहीं क्यों पर जिसकी कोई खैर खबर नहीं उस दोस्त की याद उसे खूब सता रही है ...उर्जा और आतिश दोनोने अपनी दोस्ती के सारे पल अलग होकर भी खूब जी लिए है ....और यही बात आतिशके दिल में एक अरमान जगा रही थी की एक बार सिर्फ एक बात उर्जा की खबर मिल जाए ....

मा बाप के जोर देने पर एक दिन आतिश हैदराबाद जाकर उनके दोस्तके बेटी के साथ रिश्ते के लिए तैयार हुआ ..पहले देखने के लिए वे तीनो गए ...सब कुछ पसंद आ गया ....अगले महीने सगाई और दीवाली के बाद शादी तय हो गयी ...शाम हैदराबाद एयरपोर्ट पर एक लड़की को देख आतिश चौंका ..हाँ आपका अंदाज़ ठीक है वो उर्जा ही थी ...एक एक्जेक्युटिवके गेट अपमें बिलकुल अलग ,बहुत स्मार्ट लग रही थी ...आतिश उसके सामने जाकर खड़ा हो गया ...एक मेगेजिन पढ़ रही उर्जा ने नज़र उठाकर ऊपर देखा ...बचपन का दोस्त था पर डील डौल काफी बदल गया था ...क्लीन शेव चेहरा ,एक रूआबदार युवक आतिश को दो पल तो वो पहचान ही नहीं पाई .....

फिर खड़े होकर बड़ी शिद्दतसे गले मिले ....आतिश उसे अपने मम्मी पापा के पास ले गया ....सब खुश हो गए ...उर्जा ने आतिश को बधाई दी ....

पर दोनोंने जब अपने कारोबारके बारेमें बताया तो दोनों ही चौंके ...उर्जा एम् बी ए करके आज एक बड़ी इंटरनेशनल कंपनी में सी इ ओ है ...और आतिश एयरफ़ोर्समें फ्लाईट इन्जिनेअर है ...दोनोने सपने बदल दिए थे एक आशा में की दोनों शायद इस राहसे मिल जायेंगे ....

उर्जा के घर का फोन नंबर और पता आतिश ने लिख लिया ...उर्जा की फ्लाईट अनाउंस हो गई और वो चली गई ....पंद्रह मिनट के बाद एनाउंस हुआ ..की मुंबई जाने वाली फ्लाईट उड़ान के तुरंत बाद क्रेश हो गयी है ...आतिश और उसके मा बापने तुरंत अपने टिकट केंसल करवा कर उर्जा को ढूँढने पहुंचे ...उसको हॉस्पिटलमें भर्ती करवाया ...उसे हाथमें फ्रेक्चर हुआ था और पैरमे मोच आ गयी थी ...चेहरे पर चार पॉँच स्टिच थे ...पर एक महीने में वो बिलकुल ठीक हो जायेगी ऐसे डॉक्टरने बताया ...अब आतिशने उर्जा के मा बाप को मुंबई फोन किया और अगले पॉँच घंटेमें वो भी उधर पहुँच गए ...

उर्जा को अभी तक होश नहीं आया था ...डॉक्टर का कहना था की बारह घंटे तक होश आ जायेगा ॥

जब उर्जा को होश आया तो आतिशको सामने पाकर उसे ताज्जुब हुआ ...आतिशने बड़े प्यार से उसका हाथ थाम लिया ...उस स्पर्शमें दोनोंके मा बापने प्यार का इकरार पढ़ लिया और इशारों इशारोंमें कुछ तय भी कर लिया ...दोनोके सपने पले थे ...बढे थे ....और एक दुसरे की तलाशमें एक दुसरेमे जाकर पुरे भी हुए थे ...उर्जामें एक आतिश था और आतिशमें एक उर्जा थी .....

11 दिसंबर 2009

निष्कर्ष ...

थोड़े दिन पहले मुझे मेल पर एक सुंदर कहानी मिली थी ...उसे आज आपको कह रही हूँ ...आशा है आप सबको भी पसंद आएगी ....

पच्चीस सालका एक लड़का अपने पिताजी के साथ ट्रेनमें सफर कर रहा था ..खिड़की वाली सीट पर बैठा था ।

"पापा ,देखो ये सारे पेड़ ट्रेनसे उलटी दिशामें जा रहे है ...और कितनी स्पीडसे दौड़ते दिखाई दे रहे है !!!"

अचानक बारिश शुरू हो गई ...लड़केने हाथ बहार निकाला और बुन्दोंको हाथ पर लेकर चिल्लाने लगा ," पापा ,कितनी सुंदर अनुभूति है !!!ये बुँदे कितनी सुंदर दिखती है बारिश बनकर !!!"

फ़िर पहाडी इलाके से गुजरते वक्त तो उसका बोलना रुक ही नहीं रहा था ...खुश था वह ...उस युवक का पिता ये सब मुस्कुराकर देख रहा था ...

लेकिन उस लड़केकी हरकतसे वहां पास बैठा हुआ युवा युगल बहुत ही परेशां हो गया था ...उसे उसकी बचकाना हरकतों से अब तो गुस्सा ही आ रहा था ...

अंत में उनसे रहा नहीं गया तो उस युवक के पिता को उन्होंने कहा ," आपको इसे किसी अच्छे हॉस्पिटलमें ले जाना चाहिए और उसका इलाज कराना चाहिए ....."

पिताने उत्तर दिया ," हाँ ,आपने ठीक ही कहा है ...मैं उसे आज ही हॉस्पिटलसे लेकर घर ले कर जा रहा हूँ ...वो आज उसके जन्म के बाद पहली बार इस दुनिया को अपनी आंखोंसे देख रहा है ...."

====सार : किसी भी बात पार निष्कर्ष पर पंहुचते हुए एक बार जरूर सोचो ....कभी सत्य ऐसा भी हो सकता है ...

29 जुलाई 2009

एक कश्ती ..एक साहिल ...!!!

याति !!
आज वह तैयार हो रही थी ।एक काला जींस पेंट और लाल कढाईवाली कुर्ती ...उसका मासूम रूप और निखर रहा था ।होठो पर लिपस्टिक लगाकर उसने बड़े गौर से आयनेमें अपने आप को देखा .दो नोट बुक्स एक फेशनेबल झोले में डालकर ऊँची एडी के सेंडल पहन लिए .....
आज शायद अपनी जिंदगी के एक नए अनजान मोड़ पर पहला कदम रखने जा रही थी वह !स्कूल के युनिफोर्म को अलविदा कह चुके है । काले जूते और सफ़ेद जुराब अलविदा ...लम्बी चोटियों में काले रिबन तौबा आजसे!!! अब तो स्टेप कम लेयर कट हेयर स्टाइल बहुत फब रही थी उस पर ....बारहवी कक्षा में ८०% मार्क्स लेन के बाद याति ने हिन्दी साहित्य के विषय के साथ जब बी ।ऐ . करने की सोची तो सबको बड़ा ही आश्चर्य हुआ लेकिन ये तो याति थी दुनिया से अलग हमेशा अपनी डगर चुनने वाली और चुनौतियों का सामना करने वाली .....
मेहता आर्ट्स कॉलेज !!फर्स्ट यर बी ऐ ॥रंग बिरंगी कपडों का मेला लगा हुआ था ।कॉलेज के पहले दिन को लेकर सभी के चेहरे पर उत्साह छलक रहा था .
डॉ।प्रतिमा देसाई पहला लेक्चर लेने आई उसी वक्त हडबडाकर अखिलेश जल्दी जल्दी आकर पहली बेंच पर आकर बैठ गया जहाँ पर याति बैठी हुई थी .
एक हलकी सी मुस्कान के साथ दोनों ने एक दूसरे को हेल्लो कहा ।
तीन लेक्चर के बाद कॉलेज के बाद याति पार्किंग में स्कूटी लेने के लिए आई तब अखिलेश दौड़ता हुआ आया ," अय !हेलो !! आपका मोबाइल छोड़ आई थी।"
" धन्यवाद !!" याति ने कहा ।
"क्या मैं आपका नाम जान सकता हूँ ?" अखिलेश ने पूछा ।
" ये हेलो अच्छा है ॥ जब अपना नाम बताना मुनासिब लगेगा तब बता दूंगी ।"किक लगाकर याति हवा से बातें करती हुई चली गई .
पहले टर्मिनल टेस्ट में याति और अखिलेश दोनों क्लास में प्रथम आए ।और अब उनके बीच शुरुआत हुई दोस्ती की जो आगे चल कर प्यार में बदल गई .पढाई में जबरदस्त प्रतिस्पर्धा लेकिन उतनी ही गहरी दोस्ती .
तीसरे साल की शुरुआत में अखिलेश को रोड एक्सीडेंट हुआ ।हाई-वे पर उसकी मोटर साइकिल एक ट्रक से टकरा गई .अखिलेश का बहुत ही ज्यादा खून बह गया . बोत्तले चढानी पड़ी . तीन माह के बाद वह स्वस्थ हो गया .याति ने पढ़ाई में उसकी भरपूर मदद की .तीसरे साल इम्तिहान में सुवर्ण चंद्रक दोनों को संयुक्त रूप से दिया गया .याति आई .ऐ .एस .अफसर बनना चाहती थी .अखिलेश हिन्दी साहित्य में डॉक्टरेट करके प्राध्यापक बनना चाहता था .
दोनों के परिवार के बीच भी दोनों की वजह से गहरा रिश्ता बन चुका था ।और सभी उन दोनों की शादी के लिए भी सहमत हो गए थे .
याति आई ।ऐ.एस .के इम्तिहान में पास हो कर उदयपुर में नायब कलेक्टर बनकर चली गई .यहाँ पर अखिलेश भी डॉक्टरेट पुरी करने पर था .इंटरनेट और टेलीफोन के जरिये दोनों एक दूसरे के निरंतर सम्पर्क में थे .रोज रात १० से ११ बजे तक फोन पर बातें करना उनका क्रम था .
याति एक महीने की छुट्टी पर सूरत अपने घर पर आई ।अखिलेश को मिलकर वह दूसरे दिन साहित्य सभा में मिलने कह कर चली गई .दूसरे दिन उसने पारले पॉइंट पर अखिलेश का इन्तजार किया पर वह नहीं आया तो वह उसके घर पहुँच गई .वहां पर उसे पता चला की अखिलेश को बुखार था अतः वह अभी डॉक्टर के पास गया हुआ है .याति वहां पर पहुँची . पांच दिन तक दवाईयां लेने पर बुखार कम नहीं हो रहा था .इस वक्त याति उसके साथ ही पुरा दिन गुजारती थी . डॉक्टर ने कुछ एडवांस टेस्ट करने के लिए सलाह दी .ब्लड टेस्ट की रिपोर्ट ने सबको चौंका दिया .HIV positive ...
उस वक्त याति उसके साथ ही थी । अखिलेश और याति के सामने उनके सपनों का महल ढह कर खंडहर हो रहा था .दोनों घर जाने की जगह तापी नदी के के पूल के किनारे खड़े होकर बहती हुई नदी को निहारने लगे .अखिलेश को उसके घर छोड़कर याति अपनी कारमें घर गई .अखिलेश की रिपोर्ट की बात सभी को बताई . पूरे घर को मायूसी ने घेर लिया . दो महीने बाद जहाँ पर शादी की शहनाई बजनी थी वहां पर मातम छ गया .रात भर कोई सो नही पाया .खामोशी की चादर ने पूरे परिवार को अपने पहलू में लपेट लिया .
लेकिन ये याति गहरी नींद सोयी हुई थी !!!!
सुबह नाश्ता करने सभी खाने की मेज पर बैठे थे ।मौन !! याति बोली ,"पापा मम्मी , हालात चाहे बदल गए हो मैं अपने फेसले पर अटल ही हूँ .मेरी शादी तय किए गए दिन पर अखिलेश के साथ ही होगी ."
फटाफट नाश्ता करके वह तो चली गई और पीछे छोड़ गई सबके जहन में एक सवाल !!!एक बात तो साफ थी याति की समजदारी पर सब को पुरा विश्वास था ।पर उसके इस निर्णय में शामिल होना सभी के लिए मुश्किल था .
याति सीधी पहुँची अखिलेश के घर !!!
वहां पर अखिलेश और उसके माता पिता के आगे उसने वही बात दोहरा दी ।उसकी आवाज में निर्णय की मजबूती साफ ज़लकती थी .
अखिलेश ने कुछ कहने के लिए मुंह खोलना चाहा तो याति ने अपनी हथेली उस पर धर दिया और कहा ,"अखिलेश , मुझे तुम्हारा एक्सीडेंट याद है ।और ये चढाई गई खून की बोत्तले का परिणाम ही हो सकता है .अगर शादी के बाद ये बात सामने आती तो ? तो सब क्या करते ?"
"अखिलेश मैंने तुम्हारे सम्पूर्ण अस्तित्व को अपनाया है ...हर खुशी हर गम को .....इसी लिए मैं तुमसे तय हुए दिन पर ही शादी करके तुम्हारी दुल्हन बन कर आ रही हूँ ।यार !! और अभी जरूरी दवाई लेकर स्वस्थ जिया जा सकता है तो डर कैसा ?? अब तो A R T की चिकित्सा उपलब्ध है .संयम बनेगा हमारे प्यार का साक्षी .नामुमकिन कुछ भी नहीं ...."
दो महीने बाद याति दुल्हन बनकर उस घर में आ गई ।
दो साल के बाद दोनोंने मीरा नाम की एक साल की लड़की को अनाथालय से गोद लिए जिस के साथ उनकी जीवन बगिया में बहार आ गई ....
( एड्स एक खतरनाक बीमारी है पर उसके हजारो मरीजों को समर्पित है ये कहानी ...... उनको अपनाओ ...)

9 जून 2009

जिंदगी जिंदगी .......

"मिस्टर पाटिल ,आप अपने बेटे अंकुर को अन्दर बुलाइए ।"डॉक्टर चावला ने कहा .

"सर , अंकुर बहुत ही नर्म दिल का है । ये सदमा वह बर्दाश्त नहीं कर पायेगा ."वत्सल पाटिल जो अंकुर के पिता थे उन्होंने इस बात पर ऐतराज जताया .

"देखिये ,ये कोई छोटा बच्चा नहीं है जिसे पटाया जा सके ।और हकीकत का बहादुरी से सामना कर सके इस लिए हमें ही उसे हौसला देना होगा ."डॉक्टर चावला ने वत्सल को सांत्वना दी .

वत्सल और माया पहले ही अपने बेटे की रिपोर्ट देख कर टूट चुके थे ।डॉक्टर ख़ुद जाकर अंकुर को अपने साथ लेकर आए .फीके से चहरे पर एक बुझी ही मुस्कान आई और ओज़ल हो गई .

"देखो अंकुर ,तुम्हारी सभी जांच की रिपोर्ट आ चुकी है ।हम उसका निरीक्षण कर चुके है .अब तुम्हे हिम्मत जुटाकर पुरी बात ध्यान से सुननी होगी .तुम्हारे दिमाग में केंसर का ट्यूमर यानि की गांठ है . बायोप्सी के अनुसार ये अभी सिर्फ़ २५% ही है ,लेकिन हम इसका ऑपरेशन नहीं कर सकते . पर कोई फिक्र नहीं .सिर्फ़ दवाईयों से भी ये गांठ पिघल सकती है . इसका इलाज हो सकता है . लेकिन दवाईयां अच्छी तरह से असर करेगी जब तुम मानसिक तौर पर जीने की ख्वाहिश लिए positive attitude के साथ जीना चाहोगे ." डॉक्टर चावला रुक कर अंकुर के चेहरे पर आए हावभाव पढने लगे जो अभी तक निर्लेप ही था .

"हिम्मत मत हरो अंकुर , एक नई रौशनी तुम्हारी राह देख रही है । be brave my boy .तुम्हे तुम्हारे माँ बाप का हौसला बनना है ." इतना कहकर डॉक्टर बाहर निकल गए .

"मम्मी पापा ,जिंदगी के हर पल को अब हमें भरपूर जीना है पहले की तरह ही ।ये आपकी मायूसी मुझे ये अहसास दिलाएगी की मुझे कुछ हो गया है . अब मैं तो खुश ही रहूंगा पर आप वादा करो की आप भी मेरी तरह खुश ही रहोगे ...!!" अंकुर की इस बहादुरी पर माँ बाप भी कायल हो गए .

स्वस्थ होने पर अपने रोजाना काम पर जुट गया ।नौकरी जोयिन कर ली .लेकिन अब धीरे धीरे उसके मन पर अपनी बीमारी का ख्याल हावी होने लगा .वह बाहर से स्वस्थ दिखने की कोशिश कर रहा था पर जाते हुए वक्त के साथ ये कोशिशें नकामियाब होती दिखाई देती थी . उसके परिवार में एक सन्नाटा छाया था .कोई किसीसे कुछ भी नहीं कहता था . मौन की वाणी बलवान हो रही थी .

उसी वक्त ........

एक ठंडी हवाओं का जोका अधखुली खिड़की से अन्दर आ गया .....

"हेलो .......

मेरे आवाज की दुनिया के दोस्तो !! मैं खुशी फ़िर आपके साथ ,आपके पास आ चुकी हूँ ...."लोकल एफ एम् रेडियो पर एक खूबसूरत एहसासों से भरी आवाजने रेडियो के जरिये पूरे कमरे पर अपना साम्राज्य फैला दिया ।उस आवाज के जरिये संगीत की सुरीली दुनिया में अंकुर पहुँच गया .खुशी लोकल ऍफ़ एम् रेडियो "आवाज" की आर जे (रेडियो जोकी) थी .उसका सुबह का "नई सुबह " प्रोग्राम पूरे शहर में बेहद मशहूर था .जिंदगी और उसकी खुशियों से जुड़ी बाते सुनना उसके श्रोताओं के लिए एक नशा सा बन चुका था .जिंदगी की छोटी छोटी खुशियों को बटोरने के उसके क्वोटेशन तो लोग अपनी डायरी मैं लिख लेते थे .अब अंकुर भी इस प्रोग्राम का चाहक बन चुका था .

एक दिन अंकुर ने निचे का क्वोटेशन खुशी की खूबसूरत आवाज में सुना ,"हम ये सोचते रहते है की कल हम क्या करेंगे ...कलको हम कैसे और भी बेहतर बना सकते है ?लेकिन उस वक्त हम आज के खुशी की सौगात लिए आने वाले हर लम्हे को जीना भूल जाते है ।अब आप ही सोच लो हम क्या खो देंगे और क्या पाएंगे ?"

यह वाकया अंकुर की जिन्दगी के लिए जैसे टर्निंग पॉइंट बन गया उसका ख़ुद अंकुर को भी पता नहीं चला ।वो आज के हर पल में छिपी खुशियों को बटोरने लगा .उसका उसकी सेहत पर एक चमत्कार सा असर होने लगा .दवाओं का सहारा तो था ही और जीवन के प्रति उसके इस सकारात्मक रवैये ने जैसे जादू का काम कर दिया . वक्त के साथ उसकी दिमाग की गांठ याने की ट्यूमर सम्पूर्ण पिघल गई और वह पूर्णतया स्वस्थ हो गया .अंकुर वत्सल माया की जिन्दगी में खुशियाँ फ़िर से लौट आई .

अब अंकुर ने खुशी से एक बार मिलाने का और उसका शुक्रिया करने का फ़ैसला कर लिया । वह हाथों में फूलों का गुलदस्ता लेकर "आवाज" रेडियो स्टेशन पर पहुँच गया .साथ में उसके माता पिता भी थे .वे स्टेशनके मुख्य अधिकारी से मिले .उन्होंने जिजकते हुए कहा ," सोरी ,अंकुर जी हम आपके जजबात समज सकते है पर खुशी किसीसे भी नहीं मिलती. और हम उसे जबरदस्ती ये कह भी नहीं सकते ."

"पर क्यों ?" अंकुर ने पूछा ,"उसके ख्याल सुनकर ही मैं आज मौत के मुंह से बाहर आ गया हूँ , तब क्या मैं उसका शुक्रिया भी नहीं कर सकता ? आप उसे एक बार पुरी बात बताएं ।मैं आपके जवाब का यहीं पर इन्तजार कर रहा हूँ ..."

शो ख़त्म करके जब खुशी बाहर आई तो साहब ने उसे पुरी बात बताई तो पहली बार किसीसे मिलने खुशी राजी हुई ।साहब उसके साथ बाहर आए तो अंकुर अचंभित ही रह गया . सौंदर्य की साक्षात् मूर्ति खुशी नेत्रहीन थी . वह अपना पुरा शो ब्रेल की स्क्रिप्ट पर ही करती थी .

अंकुर ने उसका शुक्रिया किया और अपना हाथ उसकी और दोस्ती के लिए बढाया । खुशीने खुशी से ये प्रस्ताव का स्वीकार किया . उनकी दोस्ती दिन ब दिन निखरती गई .

थोड़े महीने के बाद एक दिन अचानक अंकुर ने खुशी के आगे शादी का प्रस्ताव रखा ।

"देखिये अंकुरजी दोस्ती तक तो थी है पर मैं आपका ये प्रस्ताव नहीं स्वीकार सकती ।क्योंकि मैं नहीं चाहती की मेरी जिन्दगी किसीकी सहानुभूति और दया की मोहताज रहे .शायद इसी लिए मैं किसीसे मिलना पसंद नहीं करती थी ." खुशी ने अंकुर के प्रस्ताव को ठुकराते हुए कहा .

"लेकिन क्यों ? मुझे नई जिन्दगी बख्शनेवाली का जीवन मैं क्यों नहीं संवार सकता ?" अंकुर हार मानने वालों में से नहीं था ।

" देखिये अंकुर ,जब कोई रिश्ता बाँध लिया जाता है तो इस रिश्ते के साथ स्वामित्व की भावना भी अपने आप ही आ जाती है ।और रिश्तों के साथ जुड़ी हुई जिम्मेदारियां भी .शायद उस वक्त आपको मेरा ये काम और आवाज के द्वारा जुड़ी हुई सभी के साथ ये आत्मीयता बर्दाश्त न भी हो तो ? मेरी इस दुनिया से मैं बेहद खुश हूँ और शायद आपकी खुशी भी मेरी खुशी ही जुड़ी हुई है न ?" खुद्दार खुशी ने फ़िर रिश्ते से इनकार कर दिया .

"हम दोस्त थे और हमेशा रहेंगे ...मंजूर ?" खुशी ने दोस्ती का हाथ अंकुर की और बढाया जिसे अंकुर ने उष्मा के साथ थाम लिया ।

शायद खुशी सही कह रही थी ।दुःख और दर्द की और कई दास्तानों को इस प्रेरणा पीयूष की जरूरत थी .......अंकुर ये सोचने लगा .

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खुशी सेवानिवृत हो रही थी ।शाम को फेरवेल समारोह के बाद सबके साथ वह बाहर आई .बाहर अपनी गाड़ी लेकर अंकुर खड़ा था .

"खुशी , अब तो तुम मेरे साथ चलकर मेरी हमकदम बन सकती हो न ?" अंकुर उसका हाथ पकड़ कर उसे कार तक लेकर गया ।

"हम कहाँ जा रहें है ?" खुशी ने पूछा ।

" मेरी ऑफिस जहाँ पर मैंने नेत्रहिन् विद्यार्थियों के लिए संगीत सिखाने की एक पाठशाला खोली है । अब आज से तुम वहां की इन चार्ज रहोगी .ये मेरा तुमको तोहफा है .कुबूल है ?" अंकुर ने पूछा .

"हाँ , कुबूल है ..." खुशीने हंसते हुए इस तोहफे को कुबूल कर लिया ।

" खुशी , मुझे और मेरे घर को आज भी तुम्हारे आने का इन्तजार है ॥ अब तो तुम्हे कोई ऐतराज नहीं है ?" अंकुरने फ़िर वो ही सवाल दोहराया जो उसने २८ साल पहले खुशी से पूछा था ।

खुशीमें अब इस बे इन्तहा प्यार को नकारने की हिम्मत नहीं थी ...

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24 मई 2009

एक दिन अचानक ........

देव खुराना !!

ये महज एक नाम नहीं है ...

इस नाम के साथ जुड़ी हुई है एक बहुत बड़ी शोहरत ।ये शोहरत मिली है उसके विशालतम औद्योगिक साम्राज्य के कारण!! वह कभी सफलता के पीछे नहीं भागा,बल्कि सफलता ख़ुद उसे ढूँढती हुई चली आती है .

देव खुराना समाजके निम्न तपके से था ।एक गरीब परिवार में उसका जन्म हुआ था .शिष्य वृत्ति पाकर उसने स्नातक की पदवी हासिल की थी .कोलेज के प्रिंसिपल की मेहरबानी से लाइब्रेरी के कोने में वह सो जाता था . पास में थे सिर्फ़ तीन जोड़ी कपडे . पर पढ़ाई में अव्वल . स्नातक होने के बाद एक राष्ट्रीयकृत बैंक में क्लर्क बन गया ...एक दिन किस्मत का चरखा कुछ ऐसा घुमा कि देव एक बैंक के क्लर्कमें से आज पूरे देश के प्रथम पंक्ति के सफलतम औधोगिक संस्थान का मालिक था. जुहू में अपना विशाल बंगला था .पत्नी कुसुम भी कंपनी में सक्रीय थी .माँ बाप गाँव में अब बहुत ही सुखी थे . दो बहनों का ब्याह अच्छे घरों में हो गया था .उसकी ख़ुद की दो संताने थी .बड़ा बेटा सौरभ और छोटी बेटी पुनीता. दिन पानी की तरह बहे जा रहे थे . दोनों पति-पत्नी दिन भर अपने व्यापार के विकास में व्यस्त होने के कारण बचपनसे दोनों बच्चे बोर्डिंग स्कूल में भरती थे .बेटा पंचगिनीमें और बेटी मसूरी में ....

एक दिन उनकी ऑफिसके अरुण शर्मा को देव ने अपने केबिन मैं बुलाया ।

"शर्माजी ।आपको कल दिल्ही जाना पड़ेगा .मंत्रालय से ये नया निर्यात का परवाना लेने के सन्दर्भ में सारे काम निपटा कर ही वापस आना है ." देव ने हुक्म दिया .कभी न सुनने की उसकी आदत न थी .

" सर ,मुझे माफ़ कर दीजियेगा । मेरी जगह आप मिश्राजी को भेज दीजिये .मैं कल तो नहीं जा पाउँगा ." शर्माजी ने पहली बार इंकार कर दिया .

"शर्माजी, किसे भेजना है और किसे नहीं ये मुझे तय करना है ।आपको नहीं .और आपको ही इस काम के लिए जाना पड़ेगा ." देव की आवाज में सख्ती थी .

"सर , अगर आप मुझे ही भेजना चाहते है तो मैं कल नहीं परसों ही जा सकता हूँ । कल किसी भी तरह नहीं ." शर्माजी ने पलटकर जवाब दिया .

"पर क्यों ?" अब देव के स्वर में गुस्सा साफ नजर आया ।

"सर ,कल मेरे बेटे का जन्मदिन है ।मैंने उसे वादा किया है कि मैं पुरा दिन उसके साथ ही गुजारुंगा. सर ,मेरी जगह कोई और दिल्ही जा सकता है पर मेरे बेटे की इच्छा तो बाप होने के नाते सिर्फ़ मुझे ही पुरी करनी है ."ये कहते हुए शर्माजी कोई भी प्रतिक्रिया देखे बगैर केबिन छोड़कर चले गए .

आज पहली बार देव खुराना बुत बनकर कुर्सी पर लंबे समय तक बैठ कर कुछ सोचता रहा । उसने चुप्पी साध ली .देव सोचने लगा की आज उसका बेटा कितने साल का हो गया है ?आखरी बार उसे शायद ६ महीने पहले दीवाली पर ही देखा था .फोन पर उसकी आवाज सुने २ महीने हो चुके थे .उसकी संतान के बोर्डिंग के कमरा नंबर भी उसे मालूम न थे . उनकी सार जिम्मेदारी कुसुम ही निभाती थी . और बहुत अच्छी तरह निभाती थी .पुनीता जब चार साल की हुई थी तब शायद उन्होंने उसका बर्थ डे मनाया था . घर पर माँ बाबूजी से भी दो महीने से वह बात नहीं कर पाया था .

आज शर्माजी की बात सुनकर वह बेचैन हो चुका था ।खेर उसने मिश्राजी को ही दिल्ही भेज दिया .आज शाम लौटते वक्त अपनी बी.एम्.डबल्यु.में उसे गर्मी लग रही थी .नजर बाहर थी पर दिमाग कहीं और ....

रात आठ बजे ही खाना खाकर वह जल्दी ही अपनी स्टडी में चला गया ।कुसुम को ये कुछ अजीब लगा .दरवाजा अन्दर से बंद करके उसने पहले मसूरी फोन लगाया . हॉस्टलकी अधिकारी ने बताया सारे बच्चे सो चुके है आप सुबह फोन करें .

अब पंचगिनी फोन जोडा।थोडी देर में ही सौरभ सामने के छोर पर आया .

"हेल्लो ।कौन है ?" सौरभ ने पूछा .

"बेटे ,मैं तुम्हारा पापा ..."देव ने जब ये कहा तो सौरभ खुशी से उछल पड़ा ।

"पापा ,सचमुच आप बोल रहे है ?" अभी भी सौरभ को यकीं नहीं हो रहा था ।

फिर तो बातों की लम्बी बौछार हुई । दोनों उसमे भीगते रहे .

जब फोन रखा तो शायद देव के दिल में वह खुशी थी जो उसने पहले कभी महसूस नहीं की थी ...

उसे एक बार शर्माजी फ़िर याद आ गए ।

दूसरी सुबह देव जल्दी उठकर नहा धोकर कहीं चल दिया ।टेबल पर चिठ्ठी छोड़ दी की वह किसी काम से टैक्सी से पूना जा रहा है .कुसुम के लिए ये कोई नई बात नहीं थी .

आज वह एक मामूली दुकान पर गया ।सीधे सादे कपड़े और चप्पल ख़रीदे .बदल कर जब आयने में देखा तो ख़ुद अपने आप को पहचान नहीं पाया .मरीन ड्राइव पर आधे घंटे चना जोर गरम खाता बैठा रहा .

बड़े आदमी का चोला उतार कर वह अपने आपको बहुत ही हल्का फुल्का महसूस कर रहा था ।ट्रैफिक सिग्नल पर उसके दोस्त मंजीत ने भी उसे नहीं पहचाना तो वह बहुत खुश हो गया . एक इरानी रेस्तोरां में बैठ कर उसने चाय के साथ वडा पाऊं खाया .बड़े ही लिज्जत से यार !!!

उसे अपोइंटमेंट ।सेल फोन ,सेल्यूट , ऐ सी केबिन के बगैर की इस खुली हवा में साँस लेना अच्छा लगा .

तीन बजे वह पास के सिनेमा होल में पिक्चर देखने गया ।स्टाल का टिकट लिया . उसका तो घर में ही अपना थियेटर था .कभी कभार मल्टी-प्लेक्स में पत्नी के साथ गया था .वहां की कान में फुसफुसाती हुई बातें ,मादक खुशबू से महकते लोग ,मेक अप से लिपटे चेहरे ,मंहगे बेव्रेजिस और नाश्ते सर्व करते काउंटर सब यहाँ नादारद था .अपने पास के सबसे नए कपड़े पहनकर एक आम इंसान के परिवार खुशी खुशी फ़िल्म देखने आए थे .इंटरवल में जब पापा समोसे और क्रीम रोल लेकर आए तब उनके चेहरे पर छलकती खुशी अपने बच्चों के चेहरे पर देखना शायद देव की किस्मत में नहीं था .

यहाँ की आवाज में जिन्दगी का नर्तन था ।जिन्दगी जैसे खुशियों के जाम छलकाती थी .अच्छे गानों पर लोग सिटी बजाते थे . देव के पास ये खुशी खरीदने का कोई डेबिट या क्रेडिट कार्ड नहीं था . हाँ कई और बैंक के क्रेडिट कार्ड जरुर थे .

शाम को एक अच्छा सा तोहफा लेकर देव शर्माजी के घर गया ।उनकी खुशी में शामिल हुआ . उसने ये बात कुसुम को न बताने की हिदायत उन्हें दी .

रात की विमान की उड़ान से वह दिल्ही होते हुए मसूरी पहुँच गया । कंप्यूटर पर इंटरनेट के जरिये उसने पुनीता का तबादला मुम्बई की स्कूल में करवाया .पुनीता अपने पापा से प्यार से लिपट गई .

सब समान बांधकर दोनों वहां से पंचगिनी पहुंचे ।सौरभ को साथ लिया . चौथे दिन की सुबह में जब कुसुम ने घर का द्वार खोला तब वह देखती ही रह गई की ये कोई सपना तो नहीं था ?!!!

वह ये सपना था जो कुसुम ने हमेशा देखा था पर वह जुबान पर कभी ला नहीं पाई थी और आज उसके पति ने सच कर दिया था ।

अब तो देव और कुसुम माँ बाबूजी को भी मुम्बई लेकर आ गए है ।

सुबह दोनों बच्चों को देव स्कूल छोड़ कर ऑफिस जाता है और शाम को ख़ुद ही लेकर लौट जाता है ।

रात को डाईनिंग टेबल पर सभी एक साथ बैठ कर खाना खाते है .जिंदगी तब चहकती है ,महकती है ,रूठती भी है और मनाती भी है ...पर हर खुशियों का वह आशियाना बन जाती है ....

5 मई 2009

मिस्ड कॉल .........

जयति एक चालीस वर्षीय महिला है ।अपने छोटे से परिवार के साथ एक छोटे से फ्लैटमें रहती है .बेटा बड़ा हो गया है. जिम्मेदारियां कुछ कम भी हो गई है .उसके फ्लैट के सामने वाले फ्लैट में एक दिन चार लड़कीयां रहने आती है .चारों बाहरसे शहरमें मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए आई हुई है .पॉँच साल के लिए .जयति के घर की बालकनी के सामने उनकी रसोई पड़ती थी .हल्लो हाय के साथ एक नया रिश्ता जुड़ गया जो उन पांचोंको पता भी नहीं चला ....

निशा ,अरजनी ,पायल और पियूष !! सिर्फ़ नाम से वास्ता रहा उनका ।शाम को जब वह लड़कियां कोलेज से वापस आती तब सब मिलके पन्द्रह बीस मिनट तक बातें करते रहते .जयति के जिंदगी की तन्हाई में उन लड़कियोंने एक नया रंग भर दिया .हर रोज शाम का उसे इन्तजार रहने लगा .जयति खिल गई इन नई पीढी की संगतमें !!! हर विषय पर नई नई बातें : फ़िल्म ,पढ़ाई , अपने गुजरे ज़माने की और ना जाने क्या क्या ????

जयतिका स्वभाव ही कुछ अलग था ।उसे आम औरतों की तरह चुगली वाली बातें जरा भी नहीं भाती थी .नई जनरेशन उसे ज्यादा अच्छी लगती थी .उनकी विचारधारा को भी वह सही तरीके से समज पाती थी .उन लड़कियों को भी जयति में एक आंटी नहीं पर एक बेहतर दोस्त नजर आती थी ...

अपने परिवारसे दूर रहने वाली इन लड़कियों को जयति में अपनी माँ या बड़ी बहन नजर आती थी ।

पायल बड़ी शरारती थी । वह कोलेज से आते ही एक मिस कॉल करके जयति को किचन से बालकनी में बुलाती थी .फ़िर कहती ," आपका चेहरा कल देखा था तो सिर्फ़ आपको देखने के लिए ही बुलाया !!!"

जयति जूठा गुस्सा दिखाते कहती," तुम्हारी वजह से मेरी रोटी जल गई !!!"

कितना प्यारा और निर्दोष रिश्ता जुड़ गया था उन सबके बीच !!!वे सभी जानते थे उन सबको एक दिन हमेशा के लिए जुदा भी होना है !!! फ़िर भी इस रिश्तों को जीनेमें उन्होंने कोई कसर नहीं रखी । भरपूर जिया !!!जब अपना जन्मदिन होता वह लड़कियां जरूर जयति का आशीर्वाद लेने आ जाती .वेकेशनमें जब सब अपने शहर जाती तो भी जयति को जरुर याद करती .ईमेल करती ,फोन करती ...

उन सबके बीच एक communication का एक खूबसूरत तरीका था ।missed call करने का .ये missed call का मतलब था -हमने आपको दिलसे याद किया है !!!सिलसिला यूँ ही चल पड़ा ....

आखिर वह दिन पास आने लगा । लड़कियोंने डाक्टर बन गई .इन्टर्न शिप का आखरी साल गुजरने लगा .अब थोड़े महीनों में सब अपने शहर लौटनेवाली थी . फ़िर कब जाने मुलाकात होगी ??

अब बातों में हलकी मायूसीकी झलक भी कभी दिख जाती थी । सब कभी इतवार को जयति को घर भी जाती .जयति उन्हें प्यारसे समजाती,"बेटे ! आप सब तो लड़कियां हो न !कुछ साल के बाद आपको माँ बाप का आँगन छोड़कर पंछी की तरह उड़ जाना है .आप सबका एक अलग संसार होगा , खुशियाँ होगी , अपनी उलझने होंगी ."

पायल भावुक हो जाती ।," आंटी हम सब आपको बहुत मिस करेंगे !!"

जयति कहती," बेटे ,जब आप सब मेरी उम्रके हो जाओगे तब आप सबको ये दिन बहुत याद आयेंगे । तब तुम्हे कोलेज के ये दिन सबसे खुबसूरत लगेंगे .और तब आपकी यादों में जरूर मुझे पाओगे . हम जुदा नहीं होंगे . हम तो एक दुसरे के दिलों में हमेशा के लिए बसे रहेंगे ..."

साल पुरा हो ही गया ॥

वह दिन भी आख़िरकार आ ही गया ...

सामान लेकर सब लड़कियां जाने से पहले आखरी बार मिलने जयति के घर उसे मिलने आई । सबने कल की शाम जयति के घर डिनर करके भरपूर गुजारी थी . सबके होठ हंस रहे थे . आख़िर घर वापस जाना था ! आँखे रो रही थी ॥

अब जयति पीछे वाली बालकनी में नहीं जाती । ये सब missed call करके ये अभी जताते है की हाँ हमने आपको दिलसे याद किया है .

एक दिन जयति को रोड एक्सीडेंट हो गया ।बचने की कोई उम्मीद नहीं थी .उसी वक्त हॉस्पिटल में हर वक्त की तरह पायल का miss call आया . जयतिने अपने बेटे को मोबाइल दिया .और कहा,"बेटे ! मेरी एक ख्वाहिश है की ये सिलसिला कभी न टूटे . तुम इनको मत बताना मेरे बारेमें ." पर जयति की जीवन की डोर टूट गई !!!उसके सेल फोन से अभी जवाबी miss call जरुर जाता था .

एक दिन पायल अपनी शादी का कार्ड लेकर जयति के घर आती है ।

दिल टूट गया ॥रो दिया ..

और एक missed call का खुबसूरत रिश्ता उसी लम्हेके साथ टूट गया ......

11 अप्रैल 2009

ममताकी छाँवमें ...!!!


चंदन शान्तिसे बैठा हुआ था ।वह अपने आजुबाजु के नए माहौल को गौरसे देख रहा था .आज उसके घर में काफी चहलपहल थी .दादीने उसे पास बुलाकर नए कपड़े पहनाये. चंदन बहुत खुश हो गया .सभी तैयार हो रहे थे .एक बड़ी सी सजिधजी गाड़ी में बैठकर उन्हें कहीं जाना था .आज तो चंदन अपने पिताजी को गौर से देख रहा था .सबने उन्हें खूब सजधज कर तैयार किया था . पर पिताजी बहुत खुश नहीं दिखाई दे रहे थे !

चंदन एक पांच साल का बच्चा था । तकरीबन दो साल पहले उसकी माँ पीलिया की बीमारी के कारण इस दुनिया को छोड़ चुकी थी . उसी साल चंदन को बहुत तेज बुखार आया . उसकी कुछ दवाओं की साइड इफेक्ट के कारण चंदनके गलेमें कुछ खराबी आ गई और वह बोलने के लिए असमर्थ हो गया . उसकी मासूम निगाहें हरदम उसकी माँ को ही ढूँढती रहती थी .कई बार चंदन माँ की माला लगी हुई तस्वीर के सामने खड़े रहकर उसे एक टक निहारता रहता था .उसकी इस उदासी घरमें किसीसे छिपी हुई नहीं थी

"चलो बेटा चंदन !! आओ हमारे पास गाड़ी में बैठ जाओ ." दादाजी ने पुकारा ।चंदन जल्दी से उनकी गोद में जाकर बैठ गया .दादी ने भी प्यार से उसे पुचकारा .वे सब सेठ विनोद रायके घर जा पहुंचे . उनकी इकलौती बेटी बरखाके साथ चंदन के पिताजी सुजीत का ब्याह हो रहा था .कुछ गिने चुने लोगों के साथ रस्म संपन्न हो रही थी . विधि सादगीपूर्ण ढंग से समाप्त हो गई . प्रीति-भोज के बाद सब घर वापस लौट आए ॥

दूसरे दिन चंदन के दादा सुबोधचंदने इस उपलक्ष्य में एक बड़ी पूजा का आयोजन किया था ।सभी रिश्तेदारों को बुलाया गया . चंदन को फ़िर नए कपडे पहनाये गए .कल से चंदन की आँखे विस्मय से भरी थी .एक सजी संवरी औरत को लेकर सब घर आए थे . बड़ी सुंदर थी वह . उसके पिताजी उस औरत के साथ बात करते थे . पर वो औरत बड़ी शरमा रही थी .चंदन को उसके पिताजी ने अपने पास बुलाया .उसे अपनी गोद में बिठाया ....

फ़िर बताया कि,"चंदन बेटे ,इनसे मिलो !! ये तुम्हारी माँ !!"मासूम आँखे उनपर ठहरा कर वो विस्मित होकर देखता रहा ....

"नहीं ये मेरी माँ नहीं हो सकती !!! तस्वीरमें तो किसी और की फोटो लगी हुई है .!!" चंदन यही सोचता हुआ वहां से चला गया .सब मुझे कहते थे मेरी माँ तो भगवानके घर चली गई है .वो कैसे वापस आ सकती है ? चंदन फ़िर गहरी सोचमें डूब गया ।चंदनके मासूम मनमें चल रही इस उथल पुथल की बरखा ने एक ही नजरमें परख लिया . उस वक्त तो वह कुछ भी नहीं बोली .रात को जब सब महमान लौट चुके थे तब सुजीत की माँ बरखा को लेकर सुजीत के कमरे में ले गई ...

हर रोज की तरह चंदन पहले से ही उधर जा कर सो चुका था । थका होने के कारण वह गहरी नींद में था .सुजीत की माँ उसे गोदी में उठाकर बाहर जाने लगी ...

उस वक्त बरखा ने उन्हें जाते हुए रोक लिया ."मैं इधर सिर्फ़ आपके बेटे की पत्नी नहीं इस मासूम की माँ भी बनकर आई हूँ .चंदन हमारे साथ ही रहेगा ." बड़े प्यार भरे स्वर से चंदन को अपनी गोद में उठाते हुए वह बोली । संतोष की एक दीर्घ साँस लेकर सुजीत की माँ वापस चली गई ....

नींद में चंदन उससे लिपटते हुए धीरी आवाज से बोल उठा ,"माँ !!!!"

सुजीत और बरखा की आँखों में खुशी की आंसू छलक आए .आयाम और बरखा की तीन साल पहले शादी हुई थी .शादी के ठीक एक साल बाद दोनों कारमें नैनीताल जा रहे थे . वहां पर ड्राईवर की गलती के कारण एक दुर्घटना हो गई जिसमे बरखा ने आयाम और अपने आनेवाले बच्चे दोनों को खो दिया था . डॉक्टर ने बड़ी मुश्किल से बरखा की जान बचा ली पर उस दुर्घटना के कारण बरखा अपनी मातृत्व धारण करने की क्षमता को हमेशा के लिए खो चुकी थी . आज चंदन को गोद में लेते वक्त उसे जैसे ये अहसास हुआ की अपना खोया हुआ बच्चा फ़िर खुशी बनकर उसके पास लौट चुका है .....!!!!!!

26 मार्च 2009

मैं गोपा देसाई....

मेरा नाम गोपा देसाई है ॥

मैं अभी ललितकला अकादमी की ओर से मुझे मिले प्रथम पुरस्कार को ग्रहण करने के लिए एक खास समारोह में जा रही हूँ ।दिवार पर लगे हुए इस चित्र को आप गौर से देखिये .जी हाँ ,इसी चित्र के सामने मैं आज से ठीक दो साल पहले अनिल से मिले थी .दरअसल ये चित्र अनिलने ही खरीद लिया था . मुझे ये बहूत पसंद आया . एक औरत जिसे अपने किसी की प्रतीक्षा है ......

अपने दोनों हाथों को व्हील चेर पर टीकाते हुए मैं एकटक उसी चित्र को निहार रही थी और अनिल मुझे ।ढाई साल पहले की बात है .महाबलेश्वरसे लौटते वक्त हमारी कारकी दुर्घटना हो गई जिसमे मेरे माता, पिता एवं इकलौते भाई को ईश्वर ने अपने पास बुला लिया .इस भरी दुनिया में मैं तनहा रह गई . मेरे दोनों पैर दुर्घटनामें में खो चुकी थी और तबसे ये व्हील चेर ही मेरे पैर बन गई है ....

उस वक्त अचानक ही अनिलने मेरे पास आकर मेरे हाथ में ब्रश,रंग और केनवास थमा दिए और मेरी जिन्दगी में एक सुनहरा पृष्ठ खोल दिया ।वह मेरे जीवनपथ पर रौशनी बिखेरता चला गया और मैं चित्रकला में दिन ब दिन नई ऊंचाई पार करने लगी . मुझे अनिल ने जीने की एक ठोस वजह दे दी थी .उसने मेरी प्रेरणा बनकर मेरी जिन्दगी को एक नया अर्थ दिया. और हमारा यह साथ न जाने कब केनवास पर से उतरकर हमारी जिन्दगीमें भी रंग भरने लगा ये बात से हम दोनों ही बेखबर थे ...

अब मेरे दिलमें एक उलझन एक कश्मकश पैदा हुई ।मैं तो अपाहिज हूँ और मुझे ये हक़ नहीं की मैं अनिल की जिन्दगी में प्रवेश करूँ .कई दिनों तक ये बात सोचने के बाद एक दिन अचानक ही मैं बिना किसीको कुछ कहे ही मुम्बई छोड़कर एक गुमनामी की चादर ओढे कहीं दूर ओज़ल हो गई ....

अनिलने मेरी बहुत खोज की। वह मुझे बेतहाशा ढूंढता ही चला गया . किंतु मैं भले छिप गई पर मेरी कला ने मेरे अस्तित्व का पता ठिकाना बता ही दिया . इस चित्रकारी के प्रदर्शन के आयोजकों से मेरा पता लेकर अनिल ने आखिरकार मुझे दोबारा ढूंढ ही लिया . अब वह हमेशा के लिए मेरी जिन्दगी में वापस आ चुका है ....

कल मेरी शादी है , अनिल के साथ , मुझे आशीर्वाद दोगे ना ?

( मेरी मूलत: गुजराती में लिखी इस कहानी को गुजराती दैनिक दिव्यभास्कर के साप्ताहिक लघुकथा प्रतियोगिता में श्रेष्ठ लघुकथा के रूप में चुना गया था जिसका मैंने ख़ुद ही अनुवाद करके आप के लिए यहाँ प्रस्तुत किया है )

22 मार्च 2009

ये जिंदगी के रास्ते ......कहाँ से कहाँ तक !!!!!

"सभी हालातको मद्दे नजर रखते हुए और दोनों पक्षों की दलीलें सुनते हुए अदालत इस नतीजे पर पहुँची है की श्रीमती नीला कामदार जो एक हालात का शिकार हो चुकी थी और एक हादसे में उनके हाथों उनके पति का ही कत्ल हो गया है । लिहाजा ये अदालत श्रीमती नीला कामदार को बा इज्जत बरी करती है ."॥
नीला पथराई हुई आँखों से उस कठघरे में ही खड़ी रह गई ।लेडी कोंस्तेम्बल ने आकर उसकी हथ कड़ी खोल दी .नीला के जहन में बस एक ही सवाल गूंज रहा था ...उसके लिए तो सजा तय हो ही चुकी है चाहे वो जेल की चार दीवारों में हो या बाहर की इस दुनिया में ....वह धीरे धीरे कदम बढाती हुई पैदल ही अपने घर पहुँची .घर !!!!?? अब ये घर कहाँ रह गया था ?मासुमी उसकी तेरह साल की बेटी तो इस दुनिया में ही नहीं रही थी . और सुजीत -उसका पति -जिसे वह अपने ही हाथों से मौत के घाट उतार चुकी थी .उखड कर गिरे हुए रंगों की परतें उसके जीवन की परत भी एक के बाद एक खोल रही थी .दरवाजे को खाली ही टिका कर वह पलंग पर घंटो तक गुमसुम सी बैठी ही रही ...
सुजीत के साथ भागकर शादी करने के बाद दोनों बनारस से मुम्बई आ गए थे ।भाग्य से नीला को जल्द ही एक राष्ट्रिय कृत बैंक में नौकरी मिल गई .जोगेश्वरी में घर के बिल्कुल नजदीक . सुजीत कोम्प्यूटर इंजिनियर था . थोड़े संघर्ष के बाद उसे भी नई मुम्बई में अच्छी नौकरी मिल ही गई .शादी के तीसरे साल उनकी जिन्दगी में पहला फूल खिला मासुमी नाम का ॥मासुमी जब दस साल की हुई तब सुजीत की कम्पनी बंद हो गई और उसकी नौकरी छुट गई .बहुत कोशिश के बावजूद उसे दूसरी नौकरी नही मिल पाई .बेरोजगार सुजीत को हताशा , शराब और जुए की आदत ने घेर लिया .नीला की सारी तनख्वाह उससे छिनी जाने लगी और उसे शराब और जुए की भेंट किया जाने लगा . अब तो माँ बेटी को भी पिटने का सिलसिला शुरू हो चुका था ....
नीला नए ज़माने की औरत थी । उसने नारी निकेतन का सम्पर्क करके पुलिस में अपने पति के खिलाफ रपट लिखवा दी . पति को अपने घर से बाहर निकाल दिया .पुलिस के डर से सुजीत अब उनको परेशान नहीं कर पाता था .दोनों माँ बेटी अब उनके अपने फ्लैट में रहते थे .एक बरसात की रात थी .....बिजली गुल हो चुकी थी .अंधेरे में नीला रसोईघर में पानी पीने के लिए गई . उसी वक्त खिड़की के रस्ते शराब के नशे में धुत्त कोई उनके घर में घुस गया . अचानक नीला ने मासुमी की चीख सुनी .अंधेरेमें मासुमी को उस ने अपने हाथों में जकड लिया था . नीला अंधेरे में ही किचन से बड़ा सा चाकू लेकर आई और उस अजनबी को पीठ पर लगातार दस बारह वार कर दिए .थोड़ा छटपटने के बाद वह शांत हो गया .पर उसके हाथ में मासुमी की गर्दन आ गई थी .जिस पर अत्यधिक दबाव आने पर मासुमी की जीवन लीला भी समाप्त हो चुकी थी .तकरीबन एक घंटे के बाद जब बिजली आई तो नीला की जिन्दगी में हमेशा के लिए अँधेरा हो चुका था .मासुमी इस दुनिया को छोड़ कर जा चुकी थी और खिड़की के रस्ते घुसने वाला शराबी और कोई नही पर उसका पति सुजीत ही था .जिसे वह मौत के घाट उतार चुकी थी ....
प्रायः नीला ख़ुद ही पुलिस थाने में हाजिर हो गई । नीला को दूसरे दिन हालात के बलबूते पर जमानत भी मिल गई .केस चला . बैंक से उसे सस्पेंड कर दिया गया .नीला के सारे पहचान वालों ने उसीके पक्ष में गवाही दी थी .और वह बा इज्जत बरी हो भी गई .बैंक ने पूर्ण सहानुभूति के साथ उसे पुनः नौकरी पर रख लिया.लेकिन अब क्या ????!!!ये सवाल उसको परेशान कर रहा था .....
नीला ने मेनेजमेंट को कोई दूर दराज के इलाके में ख़ुद का तबादला करने की गुजारिश की । उसका तबादला उसीकी मर्जी से दार्जिलिंग में हो गया .नई जगह नए लोग और प्रकृति का अद्भुत सौंदर्य !!! दिल के घाव जरा जल्द ही भरने लगे .नीला के घर पर रोज सुबह जमुना घर का सारा काम करने के लिए आती थी .उसकी आठ नौ साल की बेटी भी उसके साथ आती थी .उसके साथ बात करते पता चला की उसके दो बच्चे थे .बेटा स्कूल में पढ़ता था .पर आमदनी कम होने के कारन बेटी का दखिलाल नहीं हुआ था .एक सुबह नीला अपने छोटे से बागीचे में नए पौधे लगा रही थी .छोटी सी श्रीना -जमुना की बेटी साथ में आकर अपनी छोटी छोटी आँखों से सब गतिविधियाँ देखने लगी .नीला ने उसे पानी देना सिखाया .नीला के साथ श्रीना थोड़ा थोड़ा खुलने लगी . अपनी प्यारी सी आवाज में जब वह नीला के साथ बातें करती तो नीला को अपनी मासुमी की याद बरबस सताने लगती.नीला ने एक बात पर गौर किया की श्रीना अपनी उम्र के बच्चो के मुकाबले बहुत ज्यादा होशियार थी . नीला ने जमुना से कहकर उसे सुबह में जल्दी उसे अपने पास बुला कर पढाने का शुरू किया ....
एक साल में तो उसने तीसरी कक्षा के समकक्ष बच्चे की पढ़ाई पुरी कर ली । वहां के स्कूल में प्रधानाचार्य से मिलकर दूसरे साल नीला ने उसका स्कूल में दाखिला करवा दिया . जमुना और उसके पति को समजा कर उसके सारे खर्च की जिम्मेदारी नीला ने अपने सिर ले ली .नीला को अपने जीवन का जैसे मकसद ही मिल गया !!!!स्कूल की हर प्रवृत्ति में श्रीना ही अव्वल आती थी . पढ़ाई में भी उसका कोई मुकाबला नहीं कर पाता था .श्रीना तमांग अपने स्कूल का ही नहीं दार्जिलिंग शहर का सितारा बन चुकी थी .खेलकूद में उसने अपने राज्य पश्चिम बंगाल का राष्ट्रिय स्तर पर कई बार प्रतिनिधित्व किया और कई मैडल भी जीते . बड़ी होकर वह एक होनहार डॉक्टर बन गई .....
उसने देश की सेवा का प्रण लिया । वह सेना में भरती हो गई . उसने बाकायदा सैनिक प्रशिक्षण भी ले लिया .सियाचिन की सरहद पर एक बार उसने अकेले ही दुश्मनों का मुकाबला करते हुए बंदूक उठाकर उन्हें मौत के घाट उतार दिया . उस बहादुरी के लिए उसे "वीर चक्र " से नवाजा गया .....
टेलीविजन पर यह दृश्य देखते हुए आंसू पोंछ रही नीला से उसकी पड़ोसी श्रीमती शर्मा कहने लगी ," नीला ,अगर तुमने श्रीना को बचपन में गोद ले लिया होता तो आज वह तुम्हारी ही बेटी कहलाती ।और तुम्हारा सर फक्र से ऊँचा हो जाता न ?!"नीला ने कुछ देर बाद बड़ी ही शान्ति से जवाब दिया ," किसीभी पौधे को उसकी जड़ से उखाड़कर अपने बगीचे में लगाना मुजे उचित नहीं लगा .बस मैं तो उसे ठीक से सिचना ही चाहती थी और वही मैंने किया . मैं तो उसकी किस्मत का एक निमित्त मात्र ही हूँ .उसके माँ बाप की खुशी तो मुझसे कई गुनी अधिक है .और श्रीना ये सब कर पाई क्योंकि वह अपनी जड़ों से जुड़ी रही थी ......
"दूसरी सुबह नीला के घर के आँगन में एक जीप आकर खड़ी हुई .आर्मी के युनिफोर्म में दो फौजी उसके घर के दरवाजे पर खड़े होकर नीला को सलाम कर रहे थे . एक थी डॉक्टर श्रीना तमांग और दूसरे थे डॉक्टर शिवम् जोशी ..एक सजीला नौजवान जो श्रीना का होने वाला मंगेतर था ....दो घंटे के बाद रुखसत लेते वक्त शिवम् वहां पर दो पल अकेला ही रुक गया .उसने नीला का हाथ चूमकर कहा ,"माँ ,मैंने बचपन में अपने माँ बाप को खो दिया था .शादी के बाद आप हमारे साथ ही रहोगी. लेकिन श्रीना की नहीं मेरी माँ बनकर ....वादा ??!!!"एक खिलाती हुई हँसी की गूंज एक सुनहरे वादे के साथ फिजा में बिखर गई ....

15 फ़रवरी 2009

अनदेखी अनजानी सी : शमा

मैं संजय सूरी....
मेरे शहर श्यामपुरके दैनिक अखबार " जागरण्" का एक पत्रकार...
उम्र है सिर्फ ३२ साल, पर मेरी कलमकी तेजी और जादूने मुझे जल्द ही एक ऊंचे मकाम पर पहूंचा दिया है. इस सालका श्रेष्ठ नवोदित पत्रकारका पारितोषक मुझे इस बार मिलने जा रहा है, किन्तु इस बातका मुझे जरा भी उत्साह नहीं है.....क्यों???
इसके पीछे एक कहानी है......
आजसे आठ साल पहलेकी बात है. नया नया आया था इस शहरमें अपने वतन बिहारसे..अब इस श्यामपुरके पोश इलाके के.के.रोड पर पिनाज सोसायटीमें किराये पर मकान ले रखा है. सोसायटीके सबसे पीछेकी कतारमें कोमन प्लोटके पास... मेरे कामके हिसाबसे यहां सिर्फ शान्तिका माहौल होता है. यहांसे मेरा दफ्तर भी पास पडता है.
रातको कोमन प्लोटमें सोसायटी के सभी उम्रके लोग यहां इकठ्ठा होकर गपशप करते है. सभी अपने रस और रुचिके अनुसार टोली जमाकर बैठकर वहां हरे भरे लॉन पर बैठ जाते है. मेरे हमउम्र आठ दस युवकभी है. शोएब उसमेंसे एक है. वह रोज वहां आता है. और उसके साथ मुझे शायद सबसे ज्यादा मजा आता है. रीपोर्टींगके अलावा मैंने एक अपना एक कोलम भी लिखना शुरू किया. यहांके विविध लोगोंकी जिन्दगीसे जुडे कई किस्से यहां सुनता तो था ही . उस पर से प्रेरणा लेकर एक संदेशके साथ लिखा गया कॉलम पहले ही हफ्तेसे काफी लोकप्रिय हो रहा था. इसे लेकर मेरे अखबारके वाचकोंकी संख्याका भी काफी इजाफा हुआ . इससे खुश होकर मेरे तंत्री एवम मालिकने मेरे वेतनमें भी काफी इजाफा कर दिया. बडा ही खुश था इन दिनों मैं................

एक दिन एक अजीबसा सिलसिला शुरू हुआ मेरे साथ. रोज एक गुलाबी लिफाफेमें मेरे लिये एक खत आता था. मेरी कोलम जिसका नाम था " जीना इसीका नाम है" उसकी तारीफ सिर्फ आठ दस पंक्तिमें लिखी हुई होती थी. उस पर न किसीका नाम होता था ना पता...
आठ दस दिनके बाद मैंने डाक विभागके मिश्राजीसे इस बारे में पूछताछ की. उन्होंने बताया कि ये डाक तो सुबहमें लेटरबोक्ससे ही उन्हें मिलती है. कौन डाल जाता है कुछ पता नहीं....
खैर ये खत आने का सिलसिला यूंही चालु ही रहा.
अब इन खतोंमे तरह तरह की जिन्दगीसे जुडी बातें भी लिखी रहती थी. मुझे तो जैसे अपनी कॉलमका सारा मसाला बैठे बिठाये मिलने लगा.लेकिन ये खतके रहस्यकी गुत्थी मैं सुलजा नहीं पा रहा था. मैने एक तरकीब निकाली . इस खतकी बातोंकी जमकर आलोचना करनी शुरू कर दी. खूब मजाक भी उडाने लगा. पर ये खतोंका सिलसिला फिर भी न रुका.........
अब मेरे दिमाग पर ये रहस्यमय व्यक्तिका पता लगानेकी धून सवार हो गई. छोटेसे सील परसे मैं उस कुरियर कंपनीके पास जा पहूंचा. उन्होंने भी मिश्राजी वाली बात दोहराई. और पैसे तो कैशमें हर वक्त जो व्यक्ति ही आकर दे जाता है वह बहरा और गूंगा है.

एक दिन ये सिलसिला टूटा...
एक ..दो...तीन.... पंद्रह दिनों तक खत नहीं आया. मेरी बैचेनी दिन ब दिन बढने लगी...
एक महिना बीत गया. आज् मैं सोसायटीकी रात्रिसभामें बिलकुल खामोश सा बैठा हुआ हूं. मेरे जहनसे वह खत नहीं हट पा रहे है. शोएबने मेरी खामोशीकी वजह पूछी. मैने पूरी दास्तां बताई. उसी वक्त शोएबके मोबाइलकी रींग बजी. शोएबने मुझे अपने साथ चलने को कहा. मैं उसके साथ चल दिया.घर पहूंचते ही शोएबने बताया उसके जीजाजी का एक्सिडेंट हुआ है. मैं अम्मीजान को लेकर होस्पिटल पहूंच रहा हूं. और तुझे एक जिम्मेदारी सौंप रहा हूं. मेरी बहन शमा अंदरके कमरेमें सो रही है. मेरी चचेरी बहन नजमा आपा एकाध घंटेके भीतर यहां पहूंच रही है. तुम उसके आतेही घर चले जाना. और शमा कुछ मांगे तो फ्रीजसे निकालकर उसे दे देना.
मैं कमरेमें इधर उधर घूम रहा था.शोएबके राईटींग टेबल पर एक डायरी देखी. उसका एक पन्ना पलटा. एकसे बढकर एक खूबसुरत शेर, शायरी, नजमें और गजलोंका जैसे नायाब खजाना हाथ आ गया. मैं तो बस मदहोश होकर पढने ही लग गया...

अचानक अंदरके कमरे से आवाज आयी. शमाकी आवाज थी," अम्मीजान जरा पानी देना तो..." ऐसा लगा जैसे कोयलकी कूक सुनी हो. मैं जल्दी ही फ्रीजसे पानीका जग लेकर पहुंच गया. एक अजनबीको अपने कमरेमें देखकर वह चौंक पडी. मैने हकीकत बताकर अपना परिचय दिया. जब वह सोने लगी तो मैंने देखा ये तकरीबन अठारह उन्नीस सालकी इस लडकीके दोनों पैर पोलियोग्रस्त थे. पर उसकी आंखे जिन्दगीकी चमक लिये हुए थी. चेहरा एक जीती जागती गजलका शब्द रुप था. वह सोने लगी तो मैं कमरे से निकल गया...
मैने डायरी फिरसे पढनी शुरू की. अब चौंकनेकी बारी मेरी थी. मैने डायरी का नाम पढा. शमा बख्तावर... लिखावट वही जो मेरे पर आये उन अनगिनत खतोंमें हुआ करती थी.
अब मेरी नजर बाजुमें पडी हुई एक डाक्टरी रिपोर्टकी फाईल पर पडी. जिसपर भी शमा बख्तावर लिखा हुआ था. मैने पलटकर पढा. उसके दिलमें जनमसे ही छेद था. उसके जीवनका अंत कभी भी हो सकता था. जो बीते वह दिन ..कब ये डोर टूटे उसे कोई न जानता था. मौतकी आगोशमें सोई इस लडकीने मुझे जीवनकी उंचाई तक पहूंचा दिया था. मैं उसका कर्जदार बन चूका था.
डायरीके अंतमें एक पोस्ट न किया लिफाफा मिला. जो शायद कल ही लिखा था.
" आप मेरी खोज खबर कर रहे होंगे पर अब मैं ऐसे छूप जानेवाली हूं जहांसे मुझे कोई ढूंढ
नहीं पायेगा. मैं तो आपको पहचानती हूं .आप शोएबभैया के दोस्त हो. मैने आपके बारेमें सुना है पर आपको कभी देखा नही है.अल्लातालासे दुआ करुंगी मरनेसे पहले मेरी आरझू पूरी हो जाये आपको एक बार देखने की. डॉक्टरोंने जिस लडकीकी आयु सिर्फ ५ से ७ साल तक बताई थी उस लडकीको आपकी कॉलमने आज तक जिन्दा रखा है..शुक्रिया मेरे दोस्त.......मैं शमा हूं और जल जाना मेरी फितरत..अलविदा...."
कमरा छोडते वक्तकी उसकी हल्की सी मुस्कराहट इस पहचानका सबूत थी....
नजमाआपा आ गई और मैं अपने घर लौट आया हूं पर नींद अब कहां आयेगी????
दो दिन के बाद ही शमाका इन्तेकाल हो गया. शायद मुझे देखने की इच्छा पूरी जो हो चूकी थी. वह दिन मेरी कॉलमका आखरी दिन बन गया....

इनामकी रकम मैने शमाके नाम एक चेरिटेबल ट्रस्टको दानमें दे दी. और शमाकी उस खूबसुरत डायरीको पुस्तकका रुप देकर दुनियाको पहूंचाया उसकी बिक्रीसे मिली पूरी आय गरीब परिवारके दिलके मरीजोंके मुफ्त इलाजके लिये खर्च की जाती है.....

ये मेरी उस अनजानी प्रेरणा बन जानेवाली प्रशंसकको श्रध्धांजलि थी............

ये एक काल्पनिक कहानी है इस कहानी का कोई जीवित या मृत व्यक्ति के साथ लेना देना नहीं है ।

मेरे विचारों में जो सकारात्मकता है वो किसी एक व्यक्ति की प्रेरणा ही है जिसके विचारोंने मुझ पर सबसे बड़ा असर छोड़ा है .

विशिष्ट पोस्ट

मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!

आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...