9 जून 2009

जिंदगी जिंदगी .......

"मिस्टर पाटिल ,आप अपने बेटे अंकुर को अन्दर बुलाइए ।"डॉक्टर चावला ने कहा .

"सर , अंकुर बहुत ही नर्म दिल का है । ये सदमा वह बर्दाश्त नहीं कर पायेगा ."वत्सल पाटिल जो अंकुर के पिता थे उन्होंने इस बात पर ऐतराज जताया .

"देखिये ,ये कोई छोटा बच्चा नहीं है जिसे पटाया जा सके ।और हकीकत का बहादुरी से सामना कर सके इस लिए हमें ही उसे हौसला देना होगा ."डॉक्टर चावला ने वत्सल को सांत्वना दी .

वत्सल और माया पहले ही अपने बेटे की रिपोर्ट देख कर टूट चुके थे ।डॉक्टर ख़ुद जाकर अंकुर को अपने साथ लेकर आए .फीके से चहरे पर एक बुझी ही मुस्कान आई और ओज़ल हो गई .

"देखो अंकुर ,तुम्हारी सभी जांच की रिपोर्ट आ चुकी है ।हम उसका निरीक्षण कर चुके है .अब तुम्हे हिम्मत जुटाकर पुरी बात ध्यान से सुननी होगी .तुम्हारे दिमाग में केंसर का ट्यूमर यानि की गांठ है . बायोप्सी के अनुसार ये अभी सिर्फ़ २५% ही है ,लेकिन हम इसका ऑपरेशन नहीं कर सकते . पर कोई फिक्र नहीं .सिर्फ़ दवाईयों से भी ये गांठ पिघल सकती है . इसका इलाज हो सकता है . लेकिन दवाईयां अच्छी तरह से असर करेगी जब तुम मानसिक तौर पर जीने की ख्वाहिश लिए positive attitude के साथ जीना चाहोगे ." डॉक्टर चावला रुक कर अंकुर के चेहरे पर आए हावभाव पढने लगे जो अभी तक निर्लेप ही था .

"हिम्मत मत हरो अंकुर , एक नई रौशनी तुम्हारी राह देख रही है । be brave my boy .तुम्हे तुम्हारे माँ बाप का हौसला बनना है ." इतना कहकर डॉक्टर बाहर निकल गए .

"मम्मी पापा ,जिंदगी के हर पल को अब हमें भरपूर जीना है पहले की तरह ही ।ये आपकी मायूसी मुझे ये अहसास दिलाएगी की मुझे कुछ हो गया है . अब मैं तो खुश ही रहूंगा पर आप वादा करो की आप भी मेरी तरह खुश ही रहोगे ...!!" अंकुर की इस बहादुरी पर माँ बाप भी कायल हो गए .

स्वस्थ होने पर अपने रोजाना काम पर जुट गया ।नौकरी जोयिन कर ली .लेकिन अब धीरे धीरे उसके मन पर अपनी बीमारी का ख्याल हावी होने लगा .वह बाहर से स्वस्थ दिखने की कोशिश कर रहा था पर जाते हुए वक्त के साथ ये कोशिशें नकामियाब होती दिखाई देती थी . उसके परिवार में एक सन्नाटा छाया था .कोई किसीसे कुछ भी नहीं कहता था . मौन की वाणी बलवान हो रही थी .

उसी वक्त ........

एक ठंडी हवाओं का जोका अधखुली खिड़की से अन्दर आ गया .....

"हेलो .......

मेरे आवाज की दुनिया के दोस्तो !! मैं खुशी फ़िर आपके साथ ,आपके पास आ चुकी हूँ ...."लोकल एफ एम् रेडियो पर एक खूबसूरत एहसासों से भरी आवाजने रेडियो के जरिये पूरे कमरे पर अपना साम्राज्य फैला दिया ।उस आवाज के जरिये संगीत की सुरीली दुनिया में अंकुर पहुँच गया .खुशी लोकल ऍफ़ एम् रेडियो "आवाज" की आर जे (रेडियो जोकी) थी .उसका सुबह का "नई सुबह " प्रोग्राम पूरे शहर में बेहद मशहूर था .जिंदगी और उसकी खुशियों से जुड़ी बाते सुनना उसके श्रोताओं के लिए एक नशा सा बन चुका था .जिंदगी की छोटी छोटी खुशियों को बटोरने के उसके क्वोटेशन तो लोग अपनी डायरी मैं लिख लेते थे .अब अंकुर भी इस प्रोग्राम का चाहक बन चुका था .

एक दिन अंकुर ने निचे का क्वोटेशन खुशी की खूबसूरत आवाज में सुना ,"हम ये सोचते रहते है की कल हम क्या करेंगे ...कलको हम कैसे और भी बेहतर बना सकते है ?लेकिन उस वक्त हम आज के खुशी की सौगात लिए आने वाले हर लम्हे को जीना भूल जाते है ।अब आप ही सोच लो हम क्या खो देंगे और क्या पाएंगे ?"

यह वाकया अंकुर की जिन्दगी के लिए जैसे टर्निंग पॉइंट बन गया उसका ख़ुद अंकुर को भी पता नहीं चला ।वो आज के हर पल में छिपी खुशियों को बटोरने लगा .उसका उसकी सेहत पर एक चमत्कार सा असर होने लगा .दवाओं का सहारा तो था ही और जीवन के प्रति उसके इस सकारात्मक रवैये ने जैसे जादू का काम कर दिया . वक्त के साथ उसकी दिमाग की गांठ याने की ट्यूमर सम्पूर्ण पिघल गई और वह पूर्णतया स्वस्थ हो गया .अंकुर वत्सल माया की जिन्दगी में खुशियाँ फ़िर से लौट आई .

अब अंकुर ने खुशी से एक बार मिलाने का और उसका शुक्रिया करने का फ़ैसला कर लिया । वह हाथों में फूलों का गुलदस्ता लेकर "आवाज" रेडियो स्टेशन पर पहुँच गया .साथ में उसके माता पिता भी थे .वे स्टेशनके मुख्य अधिकारी से मिले .उन्होंने जिजकते हुए कहा ," सोरी ,अंकुर जी हम आपके जजबात समज सकते है पर खुशी किसीसे भी नहीं मिलती. और हम उसे जबरदस्ती ये कह भी नहीं सकते ."

"पर क्यों ?" अंकुर ने पूछा ,"उसके ख्याल सुनकर ही मैं आज मौत के मुंह से बाहर आ गया हूँ , तब क्या मैं उसका शुक्रिया भी नहीं कर सकता ? आप उसे एक बार पुरी बात बताएं ।मैं आपके जवाब का यहीं पर इन्तजार कर रहा हूँ ..."

शो ख़त्म करके जब खुशी बाहर आई तो साहब ने उसे पुरी बात बताई तो पहली बार किसीसे मिलने खुशी राजी हुई ।साहब उसके साथ बाहर आए तो अंकुर अचंभित ही रह गया . सौंदर्य की साक्षात् मूर्ति खुशी नेत्रहीन थी . वह अपना पुरा शो ब्रेल की स्क्रिप्ट पर ही करती थी .

अंकुर ने उसका शुक्रिया किया और अपना हाथ उसकी और दोस्ती के लिए बढाया । खुशीने खुशी से ये प्रस्ताव का स्वीकार किया . उनकी दोस्ती दिन ब दिन निखरती गई .

थोड़े महीने के बाद एक दिन अचानक अंकुर ने खुशी के आगे शादी का प्रस्ताव रखा ।

"देखिये अंकुरजी दोस्ती तक तो थी है पर मैं आपका ये प्रस्ताव नहीं स्वीकार सकती ।क्योंकि मैं नहीं चाहती की मेरी जिन्दगी किसीकी सहानुभूति और दया की मोहताज रहे .शायद इसी लिए मैं किसीसे मिलना पसंद नहीं करती थी ." खुशी ने अंकुर के प्रस्ताव को ठुकराते हुए कहा .

"लेकिन क्यों ? मुझे नई जिन्दगी बख्शनेवाली का जीवन मैं क्यों नहीं संवार सकता ?" अंकुर हार मानने वालों में से नहीं था ।

" देखिये अंकुर ,जब कोई रिश्ता बाँध लिया जाता है तो इस रिश्ते के साथ स्वामित्व की भावना भी अपने आप ही आ जाती है ।और रिश्तों के साथ जुड़ी हुई जिम्मेदारियां भी .शायद उस वक्त आपको मेरा ये काम और आवाज के द्वारा जुड़ी हुई सभी के साथ ये आत्मीयता बर्दाश्त न भी हो तो ? मेरी इस दुनिया से मैं बेहद खुश हूँ और शायद आपकी खुशी भी मेरी खुशी ही जुड़ी हुई है न ?" खुद्दार खुशी ने फ़िर रिश्ते से इनकार कर दिया .

"हम दोस्त थे और हमेशा रहेंगे ...मंजूर ?" खुशी ने दोस्ती का हाथ अंकुर की और बढाया जिसे अंकुर ने उष्मा के साथ थाम लिया ।

शायद खुशी सही कह रही थी ।दुःख और दर्द की और कई दास्तानों को इस प्रेरणा पीयूष की जरूरत थी .......अंकुर ये सोचने लगा .

==========================================================

खुशी सेवानिवृत हो रही थी ।शाम को फेरवेल समारोह के बाद सबके साथ वह बाहर आई .बाहर अपनी गाड़ी लेकर अंकुर खड़ा था .

"खुशी , अब तो तुम मेरे साथ चलकर मेरी हमकदम बन सकती हो न ?" अंकुर उसका हाथ पकड़ कर उसे कार तक लेकर गया ।

"हम कहाँ जा रहें है ?" खुशी ने पूछा ।

" मेरी ऑफिस जहाँ पर मैंने नेत्रहिन् विद्यार्थियों के लिए संगीत सिखाने की एक पाठशाला खोली है । अब आज से तुम वहां की इन चार्ज रहोगी .ये मेरा तुमको तोहफा है .कुबूल है ?" अंकुर ने पूछा .

"हाँ , कुबूल है ..." खुशीने हंसते हुए इस तोहफे को कुबूल कर लिया ।

" खुशी , मुझे और मेरे घर को आज भी तुम्हारे आने का इन्तजार है ॥ अब तो तुम्हे कोई ऐतराज नहीं है ?" अंकुरने फ़िर वो ही सवाल दोहराया जो उसने २८ साल पहले खुशी से पूछा था ।

खुशीमें अब इस बे इन्तहा प्यार को नकारने की हिम्मत नहीं थी ...

========================================================

2 टिप्‍पणियां:

  1. PRITI JEE, JINDGI JINDGI VASTAV ME UNKO NAYI JINDGI DEGI JO HIMMAT HAR CHUKE HOTE HEY. EK SAHI SAKARATMAK SOCH DEE HEY AAPNE KISI KAVI NE SACH HI KAHA HEY TUM BESHARA HO KISI KA SHARA BANO. EK DIN TUMKO BHI SHARA MIL JAYEGA DHANYAVAD

    जवाब देंहटाएं

विशिष्ट पोस्ट

मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!

आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...