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11 जुलाई 2012

...वर्ना तो .....

कभी कभी सोचती हूँ की ये जिंदगी रोज कितनी जल्दी चलती है ?? ये हम तब महसूस करते है की जब हमारे बहुतसे काम निपटाने बाकी रह जाते है ,और जिंदगी उस दिन रेंगते हुए दिखती है जब हमें कोई काम करना नहीं होता ...लेकिन जिंदगीका चलना तो तय है ही इस सच को कोई झुठला नहीं सकता ......
बस एक फेशन चल पड़ा है , वक्त नहीं है कहनेकी ....
कभी ये हिसाब नहीं लगाया हमने की हमारा वक्त कैसे कटता है ?? मतलब हम किस काममें कितना वक्त देते है ...
चलो एक हिसाब लगाकर देख ले ...
सुबह उठकर आलसको बाय कहने के पांच मिनट ... ब्रश, शौचादिमें बीस मिनट , फिर चाय नाश्ते के दस मिनट ,पेपर पढनेमें आधा घंटा लगा लेते है ..फिर नहानेके पंद्रह मिनट ,तैयार होनेके पंद्रह मिनट , ऑफिस पहुँचने के दो से ढाई घंटे ( मेट्रो को मत गिनो और अप डाउन करने वाले भी शुमार नहीं इसमें )....और फिर ऑफिसमें :
हाय हेल्लो पहली चाय 15 मिनट ...फिर सुस्ताते हुए फ़ाइल देखते काम शुरू करते वक्त पौना घंटा समाप्त हो चूका होता है ..और फिर रफ़्तार पकड़ती है गाडी लंच तक ...लंच ओफिसिअल आधे घंटे का और प्लस आधा घंटा अनोफिसिअल ....कुछ खास लोग के लिए ...अगर आप छ बजे छूटते  है तो लगभग पांच  के बाद कोई काम करने का मूड नहीं होता ...हा साहब लोगोंकी मीटिंग इसी वक्त शुरू होती है ...उन्हें इंस्ट्रक्शन देने का अर्जंट काम इसी वक्त याद आता है और फिर रुकना पड़ता है बिना ओवर टाइम के ....और जाते हुए देखोगे की ओह कितना काम अभी शेष रह गया ..चलो कल !!!!! फिर घर पहुँचो ,चाय नाश्ता खाना बच्चोंका होम वर्क ..ढाई घंटे ..या फिर टी वी .....बिलकुल वक्त नहीं ...
पर कुछ वक्त इस तरह गुजरा :
1. बीस मिनट तक नीचे चाय की लारी पर और पान खाने का वक्त ...
2. ऑफिस के टेलीफोन पर अपने रिश्तेदारोंको फोन पर गपशप ..और सामाजिक फ़र्ज़ का निपटारा ....और सगे सम्बन्धी के भी इनकमिंग कोल भी शामिल है .....पत्नीके आते हुए लाने की चीजों की लिस्ट , बच्चों की तूतली जबानमें फरमाइश .....
3.कुछ जलपानके एक्स्ट्रा प्रोग्राम ....कुछ अर्ली गोइंग ....
4.रिसेस टाईममें सगे सम्बन्धीकी खबर देखने हॉस्पिटल जाना ..या शादीकी दावत भी शामिल है .....
5. ये नियम बोस और कर्मचारी दोनों पर लागु होते है .........
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फिर हम बहाने देते है वो किस को देते है ??? जो हमारे लिए कुछ कामके नहीं है ...जिसकी हमें कोई खास जरुरत नहीं है ....
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ये बात उस वक्त की है जब मैं नौकरी करती थी ...
मेरे पियोनने एक दिन पूछा : बहेन , आप शार्प दस बजे ऑफिस टाइमके दस मिनिट पहले आते है , और आते ही काम शुरू कर देते हो ...रिसेसमें भी कुछ अर्जंट न हो तो बहार नहीं जाते ...ऑफिस ख़त्म होते है घर चले जाते हो ....और लोगो को भी देखो ...वो तो आरामसे सब करते है बहाने भी कर लेते है ....और सबसे बड़ी बात हर साहब आपकी इज्जत करते है और आपको तो इजाजत भी मिल जायेगी फिर ऐसे क्यों ??????
मैंने कुछ भी नहीं कहा ...
अकाउंट विभागमें स्टाफ सेलेरी करती थी ...इस लिए दो दिन पहले सेलेरी शीट लेकर वो पियोन मेरे पास आया ...मैंने कहा ठहरो : मैं ये काम किसी बोस को खुश करने नहीं करती ..पर मेरी वफ़ादारी इस पगार के प्रति है जो हर माह मुझे मिलती है ...कोई कुछ देखता नहीं या कहेगा नहीं पर उपरवाला सब कुछ देखता है और हिसाब भी ल रखता है ...मुझे जिस काम के लिए रखा है उसके लिए मैं ऑफिस टाइम में प्रतिबध्ध हूँ ...और ये सच्ची कमाई होगी तो इस कमाई से मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं आयेंगे आयेंगे तो भी भगवन मेरी सहायता करेंगे ही  ...तुम तो सबका देखते हो न !!!!! सबकी तकलीफ भी जानते होंगे !!!...वो मुस्कुरा कर चल दिया .......
अगर हर काम वक्त से निपटाना आएगा तो आपके पास जो भी करना हो उसके लिए जरुर वक्त निकल आएगा ...वर्ना तो .....

30 अगस्त 2010

ख़ामोशी

कल दूर दर्शन पर ब्लेक एंड व्हाईट एरा की एक ख़ूबसूरत फिल्म देखी ...
"ख़ामोशी "......धर्मेन्द्र ,वहीदा रहमान ,राजेश खन्ना ....
गुलज़ार के संवाद और गीत और असितसेन का दिग्दर्शन ...
ख़ामोशीकी जुबाँ शायद सबसे मुश्किल जुबाँ है समजने के लिए ....एक पागलको ठीक करते हुए एक नर्स को मरीज़से प्यार हो जाता है और ठीक होते ही वो मरीज़ अपने पुराने प्यार के पास लौट जाता है ...हाँ वो नर्स के लिए बड़ा ही शुक्रगुजार रहता है ....
दूसरी बार वैसे ही एक मरीज़ का इलाज करने के लिए नर्स मना कर देती है जिस पर डॉक्टर ऐतराज़ करते तो है पर उसकी मर्ज़ी का पालन भी करते है ...बस उस वक्त एक हादसा उसे इलाज करने को मजबूर करता है और फिर वो उस काम के लिए राज़ी हो जाती है ...पर जब मरीज़ ठीक होता है तो वो पागल हो जाती है ॥
उसकी डायरी से पता चलता है की हर कोई ये भूल गया था एक नर्स के साथ वो एक इंसान भी है जिसके खुद के जज्बात होते है ,उसके एहसास होते है .....
बस ये ख़ामोशी कितनी गलत फहमी या खुश फहमी पैदा करती होगी वो तो वही बता सकते है जिससे इस रहगुजर से गुजरना पड़ा हो ..... आज कल सबके जज्बातों का इस्तेमाल करना आम बात हो गयी है ...लोग पुराने कपडे की तरह लोगो को भी अपनी गरज ख़त्म होते ही जिंदगी के बाहर फेंक देते हिचकते नहीं ....
शायद ये फिल्म देखते मैंने जो भी महसूस किया वो मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती ....पर बस ये जज्बातों की अहमियत को भुला कर जी रहे लोग कहाँ जा रहे ये उन्हें शायद नहीं पता ....

7 अगस्त 2010

तह्बंध सपने

आपकी जिंदगीमें कभी कभी सवाल उठते है जो आपको पूछता है की क्या आप उसी मक़ाम पर हो जिसकी आपको चाह थी ???आपका करियर हो या आपकी जिंदगी का हमसफ़र !!!!!!
शायद हममें से कई का सर ना में हिला है ना ???यस !!!!
ये फर्क है हमारी अपेक्षा और हमारे हासिल के बीच में ....सोच हमेशा ऊँची होती है पर प्रयत्न थोड़े कम पड़ जाते है या फिर बहुत मेहनत के बाद भी मंजिल नहीं मिल पाती ......इसका एक कारण ये है की दुनिया जहाँ की बाते जानते है पर अपने आपको नहीं जानते .....मैं देश की एक अच्छी एथलीट बनना चाहती हूँ ...मैं अगर शारीरिक रूपसे कमजोर हूँ तो मैं दो काम कर सकती हूँ : एक तो अपने को स्वस्थ और मजबूत करके मैं ये काम कर सकती हूँ या फिर अपने नसीब को कोस सकती हूँ ...अपनी सारी स्थितियों को कोस सकती हूँ और किसी को इलज़ाम लगा सकती हूँ की इनकी वजह से मैं ये नहीं कर पायी ......
पर सच इन सब से अलग ही है ....हमें दुनिया में वही मक़ाम मिलता है जिसके लिए हम लायक होते है .......हमारा मन अगर हमारी मंजिल के बारे में ही सोचता रहे वह भी बड़ी ही शिद्दत से तो कैसे भी हम उस मक़ाम पर पहुँचते है ......पर वो वक्त अपना नहीं होता ...वो व्यक्ति वो नहीं होता जिससे हमने उम्मीद की थी .......
एक छोटा सा उदहारण देती हूँ ...बचपन में हमेशा में यहाँ के आकाशवाणी के बच्चों के प्रोग्राममें हिस्सा लेने जाती थी ...पर फिर पढ़ाई के कारण छोड़ दिया ...जब ऍफ़ एम् का जमाना आया तब वो लोग अपने श्रोताओ को बुलाने लगे ...मेरा पुराना शौक जागा पर जाने की मंजिल नहीं थी रास्ता नहीं था ....पर एक दिन ये सच हुआ ....यहाँ के एक आर जे ने अपने प्रोग्राम में मुझे श्रोताके सेगमेंट में आमंत्रित किया और मैंने एक घंटे तक हिस्सा लिया स्टूडियो में बैठकर ..........कहाँ कब कौन वो मायने नहीं रखता पर एक सोच जो सपना बनकर किसी भी वक्त आपके पास एक मौका देने आती है उसे पहचानो तो मायूसी नहीं रहती ....
बस सोचो ऐसा कुछ आपके साथ भी हुआ है कभी ????

10 अप्रैल 2010

परिवर्तन

पता नहीं इन दिनों खुद को हम खुली हवाके कैदी की तरह महसूस कर रहे है ...जैसे हमें एक ऊँची जगह पर रखा गया है .दुनियाभर की सहूलियत हमें मुहैया करा दी गयी है ...हम पूरी दुनिया को देख भी रहे है पर दुनिया और हमारे बीच एक कांच की दीवार है ...

ऐसी ही हालत हो जाती है जब घर में ऐसे हालात हो जाते है की सब अपने चरम कार्य में डूबे हो और हम बिलकुल निठ्ठले से बैठे रहे ...हाँ , परीक्षा का मौसम है तो संतान अपनी तैयारीमें मशरूफ है ...पतिदेव अपने कामकाजमें ...हम घर के काम के बाद कहीं आ जा भी नहीं सकते क्योंकि पास पड़ोस की कुछेक सहेली के वहां भी यही हाल ...और फोन पर बात और बक बक करना पसंद नहीं मुझे ...

ऐसे हालात को एक शुन्यवाकाश कह सकते है और मन हो जाता है कोरी पाटीसा ...कुछ सुझाता नहीं क्या नया लिखे ??पर शायद ये मन के मौसम का रिचार्ज होने का बहाना है ...उसे भी आराम चाहिए ..बस उसे खुला छोड़ देना ही बेहतर होगा ......आज कल इतने बेहतर आर्टिकल पढने में आ रहे है जैसे जिंदगी की छोटी और सीधी बातों की संजीवनी हाथ लगी हो ...नए विचारों का आयाम होता है तब ये एहसास भी होता है की हमारी कमियाँ कितनी है ???उसे दूर कैसे की जाय ???

खुदमें एक धीरी करवट लेता हुआ परिवर्तन महसूस होता है ..पहले रोज के पोस्ट देना होता था ...पर वो शायद मन को संतुष्टि दे या ना दे !!पर अब जब तक एक गहराई ना महसूस हो तब तक पोस्ट नहीं लिखती ...कहते है की आपको पॉँच पृष्ठ जितना लिखने के लिए पांचसौ हज़ार पृष्ठ पढना आवश्यक है ...तभी आप अपनी बात सीधे दिल तक उतार सकते है ...आपकी कलममें एक सच्चाई की छबि उभर सकती है ......

हमारे मन की शक्ति का एहसास होता है और उस शक्ति का उपयोग भी करना आ जाता है ...एक कहीं भटकी भटकी सी लगने वाली ये पोस्ट भी एक नए मोड़ का एहसास दिला जाती है .....

25 फ़रवरी 2010

सादगी

पता है दुनिया में सबसे मुश्किल काम क्या है ?

सादगीको समजना सबसे मुश्किल है ...दस डिजिट की गिनती आसान है पर दस बटा दो कितना ये आजकी पीढ़ी के लिए बिना गणकयंत्र बताना मुश्किल है ...ऐसा क्यों ? कहीं ऐसा तो नहीं की ऊपर चोटी की चाहतमें हम जमीं पर रहना भूल रहे है ???

आज कल मेक ओवर का जमाना है ..अपने रंग रूप को बिलकुल बदल सकते हो आप ...थोड़े पैसे होने चाहिए पर मनको बदलने का कोई ब्यूटी पार्लर खुला नहीं अब तक ...तनाव कम करने के नुस्खेके नाम पर वजन कम करने के नाम पर वही सादे जीवन जीने के लिए नए तरीके से लोगो को सिखाया जाता है जो पाश्चात्य जीवनकी असर में हमारी जिंदगीके मुलभुत सिध्धांत भूल रहे है ...

शायद आपको ये जानकार आश्चर्य होगा की पिछले इक्कीस साल से मैंने अपने चेहरे पर पावडर भी नहीं लगाया ...लिपस्टिक दूर की बात है ...घर के बर्तन को छोड़ सारे काम खुद ही करती हूँ ...ना मुझे कोई जिम जाने की जरूरत पड़ी है ना कोई क्रीम की ...मेहनत की लाली चेहरे पर रहती है ...जाड़े के दिनोंमें कच्चे दूध की मलाई का जादू काम करता है .....जरूरत पड़े तो साइकिल चलाते भी शर्म नहीं महसूस होती ....ये सादगी की मजाक भी उडाई जाती है पर मुज पर कोई असर नहीं होता .....

इंसान को तंदुरस्त रहने का एकदम सादा नुस्खा एक ही है ...जिसे पढ़कर शायद सब यही कहेंगे की ये पोसिबल नहीं पर ये सच है :

रोज एक ही टाइम पर सुबहमें जाग जाओ ...खाने पिने का वक्त भी एक ही रखो ...रात को एक ही वक्त पर सो जाओ ..अपनी दिनचर्या के क्रम में छेड़खानी करना छोड़ दो ...पुरे छ घंटे की नींद ले लो ...शायद ही डॉक्टर की जरूरत पड़े ....ये आजमाया हुआ नुस्खा है .....साधारण बुखार हो तो एंटी बायोटिक दवाओं की जगह सादी दवाई लो ...शरीर को भारी दवाओं का आदि मत बनाओ ...जिंदगी ही तो सब कुछ है ...जब जिंदगी ही ना रहे तो सब कुछ पास हो पर इसका मतलब नहीं ....

14 फ़रवरी 2010

हेप्पी वेलेंटाइन डे ...

शायद आज कल एक बदलाव रहा था मेरी कलममें ...

जीवजंतु शेर चित्ते भी आ चुके थे ...पर हम इन्सानको जो आज सबसे ज्यादा मुसीबत नज़र आ रही है वो पर्यावरणके मुद्दे को मद्देनज़र रखकार ही है ...हमारे जीवन के साथ एक तंदुरस्त जिंदगी के लिए ये जीवों का भी जीवित होना जरूरी है और इन जीवोके जीवित होने के लिए जंगलों का जीवित रहना भी जरूरी है ....

आज प्रेम का दिन है वेलेंटाइन दिन ...तो इस दिन को हमारे मानवीय प्यार के साथ उन सबके प्रति अपनी निष्ठां एवं प्रेम जताने की जरूरत है ...तो इन सब जीवोंसे भी अपना प्यार जताए ...

हम हमारे अपनों के साथ ये जीव श्रुष्टि का शुमार भी अपने प्यार की लिस्ट में शामिल करलें और उन्हें भी कह दे

हेप्पी वेलेंटाइन डे

11 फ़रवरी 2010

शय है खुबसूरत शायरी है प्यार एक ...

चलो अब प्यार का मौसम शुरू हो रहा है तो आज थोड़ी सैर मुग़ल युगमें कर के आते है .....

याद होगा आपको अभी तक मुगलेआज़म का गाना प्यार किया तो डरना क्या ...एक कनीज के प्यार के लिए तख्तोताज न्यौछावर करते सलीमके पिता शहेंशाह अकबर इस प्यार की सख्त खिलाफत करते है ...दोनों का प्यार जुदाईमें तब्दील हो जाता है ...एक अनारकली को जिन्दा चुनवा दी जाती है ...

इसी मुग़ल युग में शहेंशाह शाहजहाँ अपनी मुमताज़ बेगमके प्रति प्यार को जताने के लिए एक ताज महल बनवाया जिसका आज दुनिया के अजुबोमें शुमार होता है और जिसे प्यार का प्रतिक माना जाता है ...उसके बेटे औरंगजेब जो इन बातों के सख्त खिलाफ था और शाहजहाँकी जिंदगी के अंतिम दिनोंमें उसे आगरा के लाल किले मैं कैद कर देता है जहाँ के एक झरोखे से वो यमुना नदी के दुसरे किनारे पर बने ताज को देख सके .....

प्यार के ये दो रूप एक मुग़ल युग में .....

आज ये बात इस लिए याद आती है की वेलेंटाइन दिन के आते ही भारतीय संस्कृतिके नाम पर इसका विरोध करने की एक खास मुहीम भी हर साल छेद दी जाती है ...पर हमारे यहाँ पर एक विशेष प्रयोजन इसी ऋतू में किया गया है "वसंत पंचमी " का ...जो प्रेम पर्व है ...जिस दिन शादी के लिए उत्तम लग्न मुहूर्त भी माना गया है ...हमें इस दिन का महत्त्व नहीं पता ...क्या करें अब अंग्रेजी माध्यम के पढ़े लिखे हम इस देसी केलेंडर को क्या जाने ????तो हमें तो वेलेंटाइन दिन ही पता है ....

अब एक बात कहूँ : आपको नहीं लगता की प्यार का एहसास इन नामों से कई उचा है ...हमें प्यार को याद रखना है जो किसी दिन का मोहताज नहीं ...जब जिस वक्त आपका दिल किसीके लिए धड़क जाए ,जिसकी हर ख़ुशीमें ही हमें अपनी ख़ुशी नजर आने लग जाए वही हमारे लिए इजहार का दिन है चाहे उस दिन चौदह फरवरी हो या ना हो !!!

अगर आपके दिल में किसी के लिए भी ये जज्बा पनपता हो तो उसे एक बार कह ही दो ...बहुत बहुत तो येही होगा की वो इनकार करेगा ...शायद हो सकता है की वो भी अपना प्यार छुपा रहा हो ....इस दुनिया में हर चीज़ अब बिकाऊ हो चुकी है पर पहली पहली बार किसीके लिए दिल का धड़क जाना ये अनमोल ही है ...जिसे धर्म ,जात पात किसीका बंधन नहीं .......दुनिया में अगर आप समर्पण की भावना को लेकर जीते हो तो हर लम्हा ,हर दिन ,हर महिना ,हर साल और ये सारी जिंदगी आपके लिए प्यार का मौसम बन सकती है ....ये भावना बिकाऊ नहीं ...पैसो से कोई दुकान पर नहीं मिलती .....

8 फ़रवरी 2010

शुन्यवाकाश ...

आपने कभी खुदमें शुन्यवाकाश महसूस किया है ? किया होगा पर ये जो हमारी दौड़ती भागती जिंदगी है ना वो ये सोचने का वक्त नहीं देती ...या फिर उसे हम डिप्रेसन या फिर मूड ऑफ़ है कह देते है ....

कुछ करने मन ना हो ...सुबह में बिस्तर छोड़ने को मन ना हो ...कुछ काम करने को दिल ना करे ...दिमागमें कुछ ख्याल भी ना आये ...जाने सारे मंज़र थम गए हो ....बैठे तो बैठे रहे ...आसमां को तकते रहे ...नहीं नहीं जानती हूँ की प्यार का मौसम बड़े करीब है और ये निशानियाँ प्यार होने की निशानियों से बहुत मिलती झूलती है ...बट नो वे मैं प्यार की बात नहीं कर रही ......

जैसे काम करना , प्रवृतिमें मगन रहना , जीना -सांस लेना जैसे ही जरूरी है शुन्यवाकाश का होना ...तब जिंदगी रूकती है ...थमती है ... कोई नया ख्याल आता नहीं ...अगर आप कोई सर्जनात्मक क्षेत्रमें है तो आपकी ये शक्ति भी क्षीण होती नज़र आती है ...कोई नयी कहानी या कविता भी नहीं सूझती , अपने आपसे आप संतुष्ट नज़र नहीं आते ...पर कहते है की वक्त ठहरता नहीं है वैसे ये वक्त भी गुजर ही जाता है ...लेकिन ये वक्त हमारे भीतर को खाली कर देता है ..अपने पुराने विचारों को उसमेंसे निकाल के खाली करके साफ़ सफाई करने का ये वक्त है ...फिर नए विचार खुद ब खुद उसमें पनपने लगेंगे ...और एक नयी उर्जा आपमें संचारित हो जायेगी ...फिर नए विचार नए मूड से ये बदलाव से आप भी खुश रहोगे और आपके अपने भी .....

सच कहूँ तो इस ब्लॉग पर आने वाले भी महसूस कर रहे होंगे की अब मैं रोज पोस्ट नहीं लिख रही हूँ ...शायद मैं इसी दौर से गुजर रही हूँ ....कुछ भी लिख देना जिससे खुद को भी संतोष ना हो ..इस से बेहतर येही होगा की इस कलम को थोडा विराम दे दूँ .......खुद को जानने की ये चेष्टा है ..आज कल मैं पढ़ रही हूँ ...अखबारों की रद्दीमें से ज्ञानवर्धक विशिष्ट पूर्ति निकाल कर उसे पढ़ती हूँ ...वैसे आपको जानकार शायद आश्चर्य होगा की मैं वास्तविकतासे जुडी हकीकत पढने की शौक़ीन हूँ ...विज्ञानं की खोज के बारे में पढना अच्छा लगता है ...कल में लेनिन और माओ त्से तुंग के शव उनके देश में किस तरह सहेज के रखे गए है ...उसकी प्रक्रिया उसमे आई अड़चन ..उसके बारे में पढ़ रही थी ...और जब लिखती हूँ तब प्यार इश्क मोहब्बत की कल्पना उभरती है ....मेरी कल्पना जब खुद की जिंदगी की हकीकत में आमने सामने होती है उसका आनंद बयां नहीं हो सकता ...और ये सब मेरे शुन्यवाकाश की ही डेन है ...ऐसा लगता है कभी कभी की नयी दिशा को भी मेरी प्रतीक्षा है ...वहां से बेहतर फूल चुनकर ला सकूँ .....

8 जनवरी 2010

पा ......

एक औरत जुडी रहती है हर इंसानके जीवनमें किसी भी रूप में ...

कल फिर एक फिल्म देखी ...पा ..अमिताभ बच्चन की प्रोजेरिया पर आधारित बहुचर्चित फिल्म ..फिल्म में अमिताभ थे तो एक चीज पर शायद ही किसीने गौर किया होगा ..एक किरदार उसमे और भी था ...विद्या बालन की मा का किरदार ...

औरत क्या है और उसका रुतबा क्या है और ये हासिल करने में एक औरत कितनी अहम् हो सकती है उसकी मैंने कहीं पर चर्चा नहीं पढ़ी या सुनी ...थोडा दुःख हुआ इस बात को लेकर ॥

विद्या बालन बिन ब्याही माँ बनने जा रही होती है ..जब पता चलता है उसके बॉय फ्रेंडको तो चिलाचालू संवाद भी सुनने मिले ..पर जब उसकी माँ के सामने वह रोती है तो माँ एक ही सवाल उसको चार बार पूछती है :

"क्या तुम इस बच्चे को जन्म देना चाहती हो ?" बेटी सब मुश्किलोंको बारी बारी कहती जाती है ,कहती है की इस बच्चेकी वह अकेले ही कैसे परवरिश कर पायेगी जब की उसकी तीन साल की पढ़ाई भी अधूरी है ...और वह सिर्फ येही सवाल दोहराती है ....

उसके बाद का जो उस माँ का जवाब है वह काबिले तारीफ था ....

" बेटी जब तु सिर्फ दो साल की थी तब तेरे पिताजी का देहांत हो गया था और मैंने तुझे अकेले ही पाला था और डॉक्टर भी बनाया ...और तेरे साथ तो मैं हूँ ...ये बच्चे को हम दोनों पालेंगे ..."

और एक औरत एक सशक्त सहारा बनकर बेटी के साथ खड़ी होती है और उसके सपने को पूरा भी कर देती है ...औरो उसे बम कहता था ...माँ से ज्यादा उसे नानी माँ समज सकती थी ...जब किसी औरत का देहांत छोटी उम्र में होता है तो आदमी किसी भी कारण बता कर दूसरी शादी कर ही लेता है चाहे वो बुढापेमें अकेलापन ही क्यों ना हो ...पर अब तक तो देखा गया है की औरतने हर मुसीबत झेल कर ना सिर्फ फिल्म में पर वास्तविक जीवन में अकेले ही जीवन बिताने की क्षमता रखी है ...अब जमाना बदल रहा है ...शादी के बाद रिश्तो को निभाना भी आधुनिक औरत की सहनशीलतासे परे होता जा रहा है ...आधुनिकता ने कई परिमाण बदले है ...तलाक कोई शर्मनाक घटना नहीं गिनी जाती ...लेकिन फिर भी अगर एक औरत औरत के साथ खड़ी हो तो आधी मुश्किलें तो वैसे ही हल हो सकती है ...

आज बलात्कार हो या और किसी समस्या से कोई औरत जूझ रही हो तब सबसे ज्यादा फिटकार उस पर औरत ही बरसाती है ...काश एक माँ खास करके भारतीय माँ , जो अपनी दूसरी बेटी के जनम पर मिठाई बाँटने की पहल कर पायेगी उस दिन सचमुच ये दुनिया का इतिहास बदलने की और ये पहला कदम होगा ...

फिल्म देखी अच्छी मूवी थी ..पुरे हाल में पुरे पचहत्तर लोग भी नहीं थे ...और उसमे लोगोने प्रोजेरिया से पीड़ित अमिताभ के किरदार को ज्यादा सराहा है ..अगर संवेदनशील फिल्म देखनी पसंद हो तो जरूर देखें ...ऐसी फिल्म जब देखते है तब लगता है :

दुनिया में कितना गम है ....

मेरा गम कितना कम है ...

4 जनवरी 2010

थ्री इडियट : एक फिल्म समीक्षा ...

कल एक मूवी देखी जिसकी आज कल सबसे ज्यादा चर्चे है : थ्री इडियट ...

आमिरखान ,शरमन जोशी और माधवन की बेहतर अदाकारीने इस मूवी को इस सफलता एक बड़ी सफलता का स्वाद चखाया है .... हमारे देश की शिक्षण व्यवस्था पर एक करारा तमाचा मारा है इस कहानी ने ... वैसे देखे तो आमिर की फिल्म तारे ज़मीं का एक्सटेंशन ही है ये फिल्म ...जहाँ पर पहले एक बच्चे की कहानी थी तो यहाँ नौजवानों की जिन्हें अपनी पसंद की राह चुनने का हक़ या मौका नहीं दिया जाता है ...

नौजवानोंकी मस्ती भरी हुडदंग तो अच्छी ही है पर शिक्षण के साथ जुडी करुण वास्तविकता आँखों को गीला कर देती है । एक बेहतरीन प्रयोगशील युवक कुछ नया बनानेके चक्कर में आत्महत्या करने को मजबूर हो जाता है ...हाँ इस फिल्म के अंत में शरमन जोशी का केम्पस इंटरव्यू दिखाया है उसे ध्यान से सुनना ...सच ये लड़के का काम भी काबिले तारीफ ही है ...और फोटोग्राफर बनने के सपने संजोने वाला माधवन ..तीनो की बढ़िया केमेस्ट्री है ...और चिलाचालू समाज की तस्वीर जैसे साय्लेंसर और वायरस ...एक अच्छा मेसेज है हम माँ बाप हो या अब नोटों को छापने वाली मशीन बन गयी है वो शिक्षण संस्थाए ....

मैंने कितने सालों के बाद एक ऐसी मूवी देखी जो हाउस फुल थी और उसमे वही पुरानी सिटी बजाने का माहौल हो शोर और तालिया .......

पैसा वसूल फिल्म है .....दिमाग को लेकर जाओ और हंसो ...दोनों एक साथ .....

थ्री इडियट ......

9 अक्टूबर 2009

दीवाली दहलीज पर है ....


दीवाली का महापर्व दहलीज पर खड़ा है और हमारे घरकी किवाड़ पर दस्तक दे रहा है तब ....


तब हम महिलाएं घर की साफ़ सफाईमें झूट गई है ...पता है कितनी ही यादे फ़िरसे उभर रही है ...कोनेमें पड़े सामानको सहेजते वक्त कितनी चीजें निकलती है जिसकी खास याद जुड़ी होती है ...आज बॉक्स पलंग साफ़ करते वक्त कुछ तस्वीरोंके एल्बम निकले ...मेरी बेटी के पुराने कुछ खिलौने टूटे फूटे निकले ...मेरी कुछ कोलेजकी डायरी भी निकली ..जिसके पिछले पन्नो पर लिखे कुछ पुराने फिल्मी गाने थे और कुछ ख़ुद की लिखी बिल्कुल शुरुआती दौर की शायरियाँ निकली ..कुछ निक्कमे कपडे भी ....कितने चाव से ख़रीदे थे उस वक्त ...कितने खुश होकर पहने थे ...कितनी तारीफें बटोरी थी ...उसमें पड़ा वो छेद जो रिक्शासे उतरते वक्त पड़ा था ...उसे रफू करवाया था ...ये खिलौना उसे लेने के लिए बेटी कितनी रूठ गई थी ...अब ये ऐसे ही पड़ा है ...फ़िर भी कुछ चीजें मैं फ़िर से रख देती हूँ जिनसे जुदाई मैं बर्दाश्त नहीं कर पाती ...शादी के वक्त की साड़ीमें बहुत छेद बन गए है ...फ़िर भी ये अनमोल है ...पतिदेव का शादी के वक्त का सूट जो अभी उन्हें बहुत छोटा पड़ने लगा है ...पर बेशकीमती है मेरे लिए ....


जब ये सब नया था तबकी सारी यादों का सैलाब साथ साथ चल रहा था ...शायद ये एक पर्व होता है जब पुराने रिश्तों से पुराने कपड़े ,चीजों तक की यादों से हम सब वाबस्ता होते है ....पुरानी टूटी चीजें कबाडी के हवाले की जाती है ..नई चीजें अपनी जगह बना लेती है ....बस जीवन का ये ही तो चक्कर होता है ....


अगर जीवन को सरलतासे जीना होतो पुरानी चीजोंको जो शायद अब काम ना आएगी उसे दूर करनी पड़ती है ...किसीके लिए कड़वाहट हो उसे भी कचरा पेटी के हवाले कर देते है तो मन भी मकान की तरह साफ़ सुथरा बन जाएगा और दीवाली की रोशनी मन को भी जगमगा देगी ...बस मन और मकानकी सफाई के बाद रौशनी से जगमगा देंगे इस छोटे से मकान को जिसे हम "घर " कहते है .....


चलो सब मिलकर इस महापर्व का इंतज़ार करते है जो कुछ ही कदम पर आने के लिए दस्तक दे रहा है .....

21 सितंबर 2009

नवरात्री का माहात्म्य

देर आए दुरस्त आए ...दो दिन के बाद ही सही ये नवरात्री के नव दिन माँ दुर्गा के किस रूप को समर्पित है ये बात आज बताना चाहूंगी ...अगर श्लोक के लिखावटमें कुछ ग़लत है तो मैं क्षमा प्रार्थी हूँ .........

१...शैलपुत्री :

वन्दे वांछितलाभाय चंद्रर्धकृतशेखराम
वृषारुढं शूलधराम शैलपुत्री यशस्विनीम
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पहले दिन माँ दुर्गा का ये प्रथम स्वरूप को पूजा जाता है । पर्वताधिराज हिमालय के वहां जन्म होने के कारण उनका नाम शैलपुत्री रखा गया । इनका वहां वृषभ है .उनके दायें हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथमें कमल है ।

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२...ब्रह्मचारिणी :

द्द्याना करपद्माभ्यामक्षमालाकमंडलम
देवी प्रसिदतुं मयि ब्रह्मचारिन्यनुत्तमाँ
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माँ दुर्गा के दूसरे दिन इस रूप को पूजा जाता है .ये माँ ध्यान के चारिणी है .इनका स्वरूप ज्योतिर्मय है और अत्यन्त भव्य है । इन के दायें हाथ में जपमाला है और बाएं हाथ में कमंडल है ....

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३...चंद्रघंटा :

पिण्डज प्रवरारूढाह चंडकोपास्त्रकैर्युता
प्रसादं तनुते मह्यं चन्द्रघंटेति विश्रुत
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माँ दुर्गा के ये तीसरे दिन का ये स्वरूप परम शान्ति दायक और कल्याणकारी है । मस्तिष्कमें घंट के आकार का अर्धचंद्र है ....वाहन सिंह है ,दस हाथ ,सुवर्ण रंगी शरीर , दस हाथ में अस्त्र शस्त्र ,घंट जैसे प्रचंड ध्वनी से अत्याचारी दैत्य को सदा के लिए प्रकम्पित रखने वाली ये देवी है ....

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४.... कुष्मांडा:

सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेवच
दधाना हस्तपद्माभं कुष्मांडा शुभदास्तुमे
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माँ दुर्गा के चौथे दिन का ये स्वरूप है ... आठ भुजा है , सिंह का वाहन है ,साथ हाथ में कमंडल ,धनुष ,बाण ,कमलपुष्प , अमृतपूर्ण कलश , चक्र गदा और सर्व सिध्धि निधि देने वाली जपमाला है ...

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५ ... स्कंदमाता :

सिंहासनगता नित्यंपद्माश्रितकरद्धया

शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी

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पाँचवे दिन का ये माँ दुर्गा का स्वरूप है .गोद में भगवान् स्कन्द विराजमान है ,चार भुजा कमल आसन पर विराजित और वाहन सिंह ही है । ये भगवान् स्कन्द कार्तिकेयके नाम से भी पहचाने जाते है ......

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६... कात्यायिनी :

चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना
कात्यायिनी शुभं दद्यादेवी दानवघातिनी
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ब्रह्मा ,विष्णु और महेश को अपने तेज का अंश देकर दानव महिषासुरके विनाश के लिए इनको उत्पन्न किया गया जो माँ दुर्गा का छठे दिन का स्वरूप के रूप में पूजा जाता है ..महर्षि कात्यायन ने इनकी सौप्रथम बार पूजा अर्चना की इस लिए उन्हें कात्यायिनी के नाम से पहचाना गया है । इनका स्वरूप भव्य और दिव्य है ..चारभुजा है .ऊपर के हाथ में अभय मुद्रा ,निचे वरद मुद्रा है ,दायें ऊपर के हाथ में तलवार और निचे के हाथ में कमल सुशोभित है ....

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७...काळरात्री :
लम्बोष्ठी कर्णिकाकरणी तैलभ्यकिशारिरिणी

वामपादोल्लसल्लोहलताकंटकभूषणा

वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रीर्भयकुरी

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सातवा स्वरूप सातवे दिन माँ दुर्गा का इस नामसे पूजा जाता है । उनका देह गहरे अन्धकार जैसा ,गले में बिजली सी चमकती माला ,तीन नेत्र ,नासिका में से श्वास और उच्छ्वास में निकल रही अगनज्वाला ,वाहन गर्दभ है ..स्वरूप भयंकर है पर हमेशा शुभ फलदायी है ...सब को वर प्रदान करती है ....

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8...महागौरी :
श्वेतेवृषे समारूढा श्वेताम्बरधराशुची :
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा
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आठवे दिन का ये रूप माँ दुर्गा का इस नाम से पूजा गया है .. वर्ण सम्पूर्ण रूप से गौर है .उपमा शंख ,चंद्र और मोगरे के फूल की उपमा दी गई है ...इनकी उम्र आठ साल की मानी गई है ...चार भुजा है .समस्त वस्त्र और आभूषण श्वेत है । वाहन वृषभ है ...

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९ ...सिध्धिदात्री :
सिध्धगंधर्वपक्षाधैरसुरैरमरैरपि
सेव्यमाना सदाभूयात सिध्धि दा सिध्धिदायित्री

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माँ दुर्गा का ये नौवा और आखरी रूप है । ये सर्व सिध्धि देने वाला स्वरूप है । मार्कंडेय पुराण के अनुसार अनिमा ,महिमा ,लघिमा ,प्राप्ति ,प्राकाम्य ,ईशित्व ,और वशित्व ये आठ प्रकार की सिध्धि है ...ये सिध्धि दात्री आखरी है । उनकी उपासना करने के बाद साधक की हर लौकिक और परालौकिक हर कामना की पूर्ति होती है .और कोई कामना पूर्ण होने के लिए शेष नहीं रहती ....दुनयवी चीजें उनके लिए मायने नहीं रखती ....

2 अगस्त 2009

ये दोस्ती ....

आज दोस्ती दिवस है ...

हम इतने मशरूफ हो गए है की हम दोस्ती जैसे हर पल साथ रहने वाले एहसास को भी साल के एक दिन सुपुर्द कर चले है ..भौतिकवाद की चरमसीमा ये मनाने वाले दिन की लिस्ट को देखकर ही समजमें आ जाती है ...

कुछ अरसे पहले मैंने इस जगह एक लघुकथा लिखी थी : मिस्ड कोल .....अगर आज मैं आपको ये कहूँ की ये कोई काल्पनिक कथा नहीं थी तो ? हाँ ,ये सच है की ये काल्पनिक कथा नहीं है ..एक अंत को छोड़कर इस की सभी घटनाएँ मेरे जीवनमें सचमें ही घट चुकी है ...नाम बदले है पर वो एक मैंने जिया यथार्थ ही है ..यहाँ तक की उसमें लिखे संवाद भी वही है जो हमने बोले थे ....

दोस्तीको उम्र -रूप -रंग -फासले -करीबी किसीसे वास्ता नहीं होता ...आज भी ये पोस्ट लिखने से पहले मैंने वो सभी मेरी नन्ही दोस्तोको एक और मिस्ड कोल कर दिया ...मेरा सबसे छोटा दोस्त ६ साल का है ...राहील ...मेरे घरके नीचे ही रहता है ...वो मुझे आंटी नहीं अपनी बेस्ट फ्रेंड कहता है ...अपनी नोट बुक में मिला हर स्टार मुझे दिखाकर एक चोकलेट वसूल करता है ...स्कुल में जो इनाम मिलता है अपने पिताजी की गाड़ी से उतरकर सीधा मुझे दिखाने चला आता है ...अपनी छोटी छोटी बातें मुझसे शेर करता है ...

पिछले साल उसका पुरा फेमिली वडोदरा से हमेशा के लिए अहमदाबाद चला गया था ...वहां पर सेटल होने ही गए थे ...उस घड़ी अकेले में मैंने खूब रोया करती थी ...लगता था मुझसे मेरी जिंदगी का एक हिस्सा कट गया ...उसके जनमदिवस पर उसने मुझसे चोकलेट ही मांगी ..फोन पर ...जब एक दिन मिलने आया तो लेकर गया बड़े हक़ से ...

तीन महीने के बाद कुछ ऐसा हुआ की उन्होंने अपना निर्णय बदला और फ़िर एक बार वे लोग वडोदरा लौट कर आ गए ...इसे हम क्या कहेंगे ...हमारी ये मासूम दोस्ती का ये पल भी मैंने खुशी के आंसू बहाकर ही सहला लिया ....

मेरे बचपन की सब सहेली तो दुसरे शहरमें बस गई है ...उनकी याद आज खूब आ रही है ....ये इन्टरनेट की दुनियाने मुझे कितने दोस्तसे मिलवाया है जिन्हें कभी मिली नहीं और शायद मिलूंगी भी नहीं फ़िर भी उनकी मेरे जीवन में एक खास जगह है ....

आप सबको एक गुजारिश है ...अपने दोस्तों को एक पल के लिए जरूर याद कर लो ...उनके गिले शिकवे झगडे भी आज बहुत मीठे लगेंगे ...ये वो रिश्ता है जो हमने ख़ुद चुना है ...रूठों को मना लो , बिछडे दोस्तों को मिला दो ...अपनी दोस्ती का फ़र्ज़ निभा लो ...आज एक रोते हुए को हंसा दो ....एक नया दोस्त बना लो .....

9 जुलाई 2009

प्रकृति के नाम एक सुबह ...

मुझे एक आदत है ..सुबहमें जब छ: बजे के करीब आंखे खुलती है तो मैं सीधी अपने टेरेस पर जाकर बस थोड़ा टहलती हूँ ,रुकती हूँ , थोडी देर झूले पर बैठती हूँ ....

मेरी निगाहें हमेशा आकाश पर ठहरी होती है ...मैंने कभी भी इस आकाश को एक ही रूप में नही देखा ..और ये हाल बरसों से है ...न कभी सूरज एक पैटर्न में निकलता है न चाँद .....पंछियों का उड़ना भी सीज़न के ताल्लुकात रखता है ...जाड़ेमें छोटी छोटी चिडिया एक बड़े हुजूम में निकलती है ..इधर से उधर चक्कर लगाती है लेकिन जैसे ही सूर्योदय का वक्त होता है वे सब एक मकानके टेरेस पर या लंबे कोई केबल के वायर पर बैठ जाती है ...उस वक्त ऐसा लगता है की वो महाराजा सूरज के आगमन पर झुककर सलाम कर रही है ...जैसे ही सूरज महाशय बहार आ जाते है कुछ ही सेकंडमें वहां खाली वायर या टेरेस होता है .....गर्मी में लंबे और धीरी उड़ानवाले पंछी देखने मिलते है ...एक लम्बी कभी तिकोनी कतारमें हमेशा बारी बारीसे आगे पीछे होकर उड़ते है ...सबसे आगे वाला पंछी हवाओं को काटकर पीछे वाले पंछी के लिए रास्ता आसां बनाता है ...और थोडी थोडी देर मैं पोजीशन बदलते चलते है ...ताकि कोई ज्यादा न थके ॥

उनको घड़ी देखनी तो नहीं आती पर उनका अपने स्थान पर जाने का या लौटनेके वक्त में कोई फर्क नहीं पाया जाता है ..और हम !!!!!!!!घड़ी का उपयोग हम कितने देरी से या जल्दी चलते है ये देखने को करते है ...

अब बारिश शुरू हो चुकी होती है तो कोयल की कुक या मोर के गहेंकका भी समय एक सा रहता है ...बस लगता है हम मनुष्य ही प्राकृतिक तरीके से जीना भूल रहे है ....एक चिडिया दूसरी चिडिया को अलग अलग आवाज देकर किसी सुचना देती है ...उनके भी सांकेतिक शब्द होते है ....

हमें स्कुल में पढाया गया है की सूरज कर्क वृत से मकर वृत तक गति करता है ...२२ सितम्बर से २१ जून तक उसकी उत्तर की गति होती है ..हर रोज थोड़ा खिसकता नज़र आता है ...और फ़िर दोबारा दक्षिण की गति करता है ..ये सब मैं ख़ुद इतने सालसे देखती हूँ ...हाँ अब बारिश के दिनोंमें बादल के कारण देख पाना सम्भव नहीं हो सकता ......

सुबह से शाम तक रोज प्रकृति अपना रंग हरदम बदलती है पर हमने इस प्रकृति के साथ इतना खिलवाड़ किया है की अब शाम ढलने के बाद ऊँचे आकाशमें धुएँका होना साफ़ दीखता है ....

यहाँ पर मैंने जो कहा है वह हमारी जिंदगी में कितना उल्टा है ...शायद इसी लिए कोई पंछी या पशु हार्ट एतेक से नहीं मरता होगा या बी पि का या मधुमेह का प्रॉब्लम भी नहीं होता होगा ...

अरे हम मनुष्य है ...इस भ्रमांड का सबसे बुध्धिशाली जिव ....हमें भला इनसे क्या सिखने की जरूरत है ? हमें बीमारी के साथ दवाई बनाना आता है ...हम सर्वोच्च है ......पुरे आलोक और परलोक में छाये हुए ....हम चाँद पर जा सकते है ,मंगल पर आशियाँ भी बना सकते है ...पर हम एक और इंसान के लिए वक्त नहीं निकाल सकते ...बहुत बिजी है .....हाँ हमें फुर्सत नहीं है .....

7 जुलाई 2009

गुरुपूर्णिमा ......

आज गुरु पूर्णिमा है ...

माँ हमारा पहला गुरु है ।

पिता और माता के दिए गए संस्कार हमारे जीवन को सही दिशा देते है ।

विद्यापीठ के गुरु ज्ञान के दरवाजे हमारे लिए खोलते है ।

लेकिन जिंदगी से बड़ी यूनिवर्सिटी कोई नहीं जिसका हर दिन उगने वाला सूरज हमें कुछ न कुछ नया सिखाता है और अपने संस्कार से आधार पर हम अपने जीवनको बना या बिगाड़ सकते है ।

हमारी अंतरात्मा हमारी राहबर है जिसे सही ग़लत की पहचान होती है ........

ज्ञान और गुरु को कोई उमर का बंधन नहीं होता ...एक छोटा सा बच्चा जब चलना सीखता है तो कई बार गिरता है और फ़िर उठकर कोशिश जारी रखता है और जब तक चलना नहीं सिखाता तब तक रुकता नहीं .जिंदगी का पहला सबक तो वही सिखाता है ...किसी भी हालत में वह दिल से हसता है या रोता है ...बनावट कहीं नहीं होती ...

आज एक बात बताती हूँ :

पिछले हफ्ते एक बच्चे ने ये कहा था :

हम कुछ भी कर सकने को सक्षम है ....हम भी कामियाब हो सकते है ...जो कोशिश करते है उनकी कभी हार नहीं होती ....हम जो थान लेते है वह कर सकते है ...

बड़े आम लगने वाली बात है पर ये कही वो अठारह साल का बच्चा है ...उसे सेरेब्रल पालसी हुआ था जन्म के वक्त ही ...ब्रेन की नस दब गई और वह अपाहिज हो गया और मेंटली चेलेंज भी ...उसने तीसरी ट्रायल में दसवी कक्षा का बोर्ड इम्तेहान पास किया ....ठीक से चल नहीं सकता ..पर खेलते वक्त उसके नाम की चिठ्ठी में ५ बार कूदने का आया तो उसने कहा मैंने कूद लगाऊंगा ...मैं ये जरूर कर सकता हूँ ...और उसने ये सफलता से किया ...

इस बच्चे ने एक ऐसा सबक दिया जो किसी पाठशाला में शायद पढाया जाता होगा ...गुरु देवो भव .....!!!

पिछले एक महीने से मैं ये मंद बुध्धि के बच्चों के स्कुल में स्वयंसेवक के तौर पर जाती हूँ ...सोचा था मैं उन्हें कुछ सिखा सकती हूँ ...पर मैं हर रोज उनसे कुछ सीखकर आती हूँ ....

ये दुनिया सबसे बड़ी पाठशाला है और जिंदगी हमारी शिक्षक ...!!!!

21 जून 2009

हैप्पी फाधर'स डे .......

आज जून महीने का तीसरा रविवार ....पाश्चात्य असर के नीचे हम भी आज के दिवस अब फाधर'स डे मनाते है ...

फाधर, पिताजी ,बापू , डेड ,डेडी,पो, पा,पोप्स ,पापा ...हमारी जिंदगी के अभिन्न अंग तो है ही लेकिन ये किरदार से ज्यादा तवज्जो हमने माँ ,और मातृत्व को हमेशा दी है और ये ग़लत भी नहीं ...पर आइये आज हमारे पापा को मिलते है ...

हमारे वजूद में घुले है ...सुबह में काम पर जाने वाले ...टिफिन लेकर ,शाम को घर लौटने वाले हमारे पापा से ज्यादा हमेशा घर में रहने वाली नर्म दिल माँ के पास हम ज्यादा रहे है ..उसने हमें ज्यादा प्यार दिया है ..वह हमें डांटती भी है पुचकारती भी है ...लेकिन कभी बाप की नजर से देखो ...अपने परिवार की हर खुशियों को लाने के लिए वह सुबह से ही इस दुनिया से उलज़ने निकल जाते है ...माँ उनकी कमाई से घर चलाती है ...हमारी हर छोटी बड़ी चीजों के लिए ये पापा पुरे दिन महीने सालों से खून पसीना बहाते है ...हमारी हर सुविधा के पीछे उनका योगदान उतना ही होता है ..लेकिन इन्होने कभी ये जताया नहीं ...हमारे लिए उनके दिल में कितनी चिंता है ये जताना उन्हें कभी आता ही नहीं ...वो जब हम सो जाते है तो हमारे सर में बाल में हाथ घुमाते तो है पर उन्हें लोरी गाना नहीं आती ....पर हमें वो चाहते है उसके सबूत वो दे नहीं पाते .....वो ये सब काम माँ के सुपुर्द करके उसे सब वाह वाही बटोरने देते है ......हमारे माँ बाप के बीच पति और पत्नी के रिश्ते को कभी हम नहीं सोचते ..जब संतान का जन्म होता है तबसे माँ का पुरा ध्यान जाने अनजाने में अपनी संतान के प्रति ही बंट जाता है ...कभी कभी तो वह अपने पतिके प्रति भी बिल्कुल बेपरवाह बन जाती है .....उनके निजी रिश्तों में बारीक दुरी भी आ जाती है पर ये पिताजी इस बात को बिल्कुल खामोशी से जी जाते है ...अपने संतानोंमें घिरी पत्नी के समय पर क्या उन्होंने कभी हक़ जताया है ?......याद है आपको लक्ष्मण जब राम और सीता के साथ वन में गए तो उर्मिला चौदह साल अकेले ही रही थी बिना शिकायत किए ....और हमारे पिताजी हमारी हर खुशी के लिए ऐसे ही रहते है ...सोच कर देखना ऐसे कई पल आपको याद आ ही जायेंगे .....

दुनिया में सिर्फ़ लाड प्यार ही होता तो हमारी गलतियों को सुधारता कौन ? हमें डांटता कौन ? कभी मारता कौन ? हमें अच्छा इंसान बनाता कौन ? ये कठिन कार्यभार हमारे पापा सँभालते है ...हमारी ही भलाई के लिए ये सब उन्हें अपने प्यार को दिल में छुपा कर कठोर बनना पड़ता है ...हमें बचपन में जो छवि कठोर नजर आती है वह क्यों ऐसी थी वह हमें माँ बाप बनकर शायद समज में आती है ....ये नारियल की तरह होते है ...ऊपर से कठोर अन्दर से पानी मलाई की तरह कोमल .....ये वो बरगद का वृक्ष है जिनकी छाँव में हम हमेशा महफूज़ रहते है ...सब परेशानियों से वह हमको दूर रखते है ...ख़ुद उससे झुझते है पर कभी हम तक उनकी भनक तक पड़ने नहीं देते ...ऐसे होते है वज्र से भी कठोर और फूल से भी कोमल हमारे पापा .........

मेरे पापा की बात के बगैर ये पोस्ट अधूरी रहेगी ....

पिताजीकी पुश्तैनी विरासत तो बेटे को दी जाती है ...जायदाद ,मिलकियत सब ...पर मुझे मेरे पापा से मिली है ये कलम विरासत में ...मेरे पापा लिखते बहुत ही अच्छा है ...उनके हस्ताक्षर बिल्कुल मोती के दानों की तरह है ..उन्हें हमेशा मेरे हस्ताक्षर बहुत बिगडे लगे है ...मेरे पापा को मेरा ये लिखना बहुत ही खुशी देता है ...सब उन्हें कहते है आपकी विरासत आपकी बेटीने बखूबी संभाली है ...तब मुझे अपने पापा की बेटी कहलाने में गर्व महसूस होता है ...

एक याद :

मुझे बी कॉम के बाद अनुस्नातक की पदवी पानी थी ..मैं जाकर फॉर्म ले आई ...उस दिन पापा की सबसे ज्यादा दंत खायी थी ...खूब रोई थी ...उन्हें अब मेरी शादी की चिंता थी ...तू इंतना पढेगी तो इतना पढ़ा लिखा लड़का कैसे मिलेगा ??? पर मैं जिद्दी थी ...मैंने दो साल पढ़कर ये पदवी हासिल कर ही ली ....जब एम् कॉम फाइनल का रिजल्ट आया तब मैं अहमदाबाद में थी ...मेरी करियर में पहली बार मेरे पापा ख़ुद कोलेज गए ..मेरा रिजल्ट लिया और स्टेशन पर जाकर आर एम् एस से मुझे पोस्ट कार्ड लिखा ....उसकी ये लाइन मुझे अब भी याद है ...बेटी आँख में आंसू के साथ ये ख़त लिख रहा हूँ ...तू पुरे खानदान में पहली अनुस्नातक बन गई ....ऐसे होते है पापा ...मैं हमेशा फर्स्ट डिविजन में पास हुई थी ...पर मैनेजमेंट जैसे विषय को चुना था जो उस वक्त बिल्कुल नया था ...१९८३ में ..हमारी कोलेज में ....उसमे मेरी दूसरी डिविजन आई ...तो भइया पापा से बोले इस वक्त दूसरी ?...

तब पापा ने कहा बेटे गुजराती माध्यम से पढने के बाद अंग्रेजी माध्यम में पढ़ना और बिना ट्यूशन ,क्लास किए स्कोलर शिप पर अपनी पढ़ाई पुरी करना ....मेरी बेटीने बड़ी महेनत की है ये तुम्हे अंदाज नहीं है ....

पापा सिर्फ़ आज ही नहीं जब तक मेरी आखरी साँस है तब तक आप मुझमे जिन्दा है .......

17 जून 2009

बातें आज संगीतकी ....

आज बात करें कुछ संगीत की !! एक नन्हा सा बच्चा जब इस दुनिया में आता है तो उसके रुदन के साथ ही शुरू होता ही संगीत का पहला सफर ॥

चिडियों का चहचहाना, झरने का कलकल करके बहना,कोयल का कुकना ,बारिश की बूंदों का छमछम करके जमीं पर कूदना, कहीं पर भी देखो संगीत के सुर प्रकृति भी हमेशा से बहाती रही है । दुनिया के किसीभी देश में जाओ वहां की प्रजा का एक संगीत का अपना रूप ही पाते ही .नृत्य भी संगीत के साथ अभिन्न रूप से जुदा हुआ पाया जाता ही .चाहे वह पूरब का देश हो या पश्चिम का !!!

अगर हम बात करते ही हमारे भारत देश की तो कश्मीर से कन्याकुमारी तक हर राज्य की पहचान अपना अलग नृत्य और संगीत ही ।हर राज्य का अपना लोक संगीत ही अपनी भाषा और बोली के अनुसार ...नृत्य भी संगीत के बिना बिल्कुल अधूरा पाया जाता है. पंजाब का भांगडा-गिद्दा नृत्य लीजिये ,या आसाम का बिहू नृत्य ,गुजरात का गरबा लीजिये या केरल का कथकली हरेक की अपनी पहचान है .पश्चिम बंगाल की पहचान है उसका रविन्द्र संगीत !!! भारतीय संगीत के मुख्य दो प्रवाह : शास्त्रीय और सुगम संगीत .सुगम संगीत ज्यादा लोकप्रिय और धारा प्रवाह से जुडा पाया जाता है .उसमे फिल्मी संगीत मुख्य है .उसके रीमिक्स गाने ,नॉन फिल्मी प्राइवेट अल्बम ,गझल ,भांगडा ,और न जाने क्या क्या !!!! शास्त्रीय संगीत जुडा है मुख्यतः वाद्य संगीत और गायकी से .गायकी में अनगिनत दिन के हर प्रहर के अनुरूप राग गए जाते है .बंदिशे है ...सूर है ...ताल है ....त्रिताल है ....गायकी में भी ठुमरी ,दादरा और ना जाने क्या क्या !!!! वाद्य संगीत में भी कई वाद्य देख सकते है :सितार ,तबला ,शहनाई ,सारंगी ,वीणा,संतूर ,सरोद ,वायोलिन ,बांसूरी ,.... सूर होते है सिर्फ़ सात ही :सा ,रे ,ग,म, प, ध ,नि ....पर एक बहुत ही अनोखी और कर्णप्रिय दुनिया का सफर है ये संगीत ...

गिटार ,ड्रम,बोंगो ,कोंगो ,इलैक्ट्रिक गिटार ,सेक्सोफोन,कैसियोसे जुडा है आधुनिक संगीत और अब तो कम्प्यूटर की मदद से आप चाहे वह कर सकते है ।आजकी नई पीढ़ी ने तो इन दोनों को मिला कर फ्यूजन संगीत का आविष्कार किया है . गायकी में देखो तो कितने प्रकार है !! गीत ,गझल ,पद,छंद ,दोहे ,श्लोक ,प्रार्थना ,भजन ,स्तुति ,कीर्तन ,काफ़ी ,!!! गायकों में देखिये : पंडित जसराज ,पंडित ओमकारनाथ ठाकुर ,पंडित शिवकुमार शर्मा ,पंडित हरिप्रसाद चौरसिया ,उस्ताद जाकिर हुसेन ,उस्ताद अमजद अली खान ,पंडित रविशंकर , उस्ताद बिस्मिल्ला खान ,जैसे दिग्गज नाम जुड़े हुए है ... अकबर के दरबार के तानसेन , गुजरात के तानारिरी ,बैजू बावरा ,तुलसीदास ,सूरदास ,भक्त कवि मीरा बाई संगीत से जुड़ी अमर दंतकथा है ......

अब बात करते है कुछ फ़िल्म संगीत की भी ।द्वंद्व रहा है हमेशा पुरानी और नई फिल्मों के संगीत के बीच॥नई पीढ़ी के बाशिंदे भी पुरानी फिल्मों के संगीत की कर्ण प्रियता और लोकप्रियता का सहजता से स्वीकार कर लेते है पर पुरानी पीढ़ी अभी तक प्रवर्तमान संगीत को अपना नहीं पाती है . गायकों की बात करें तो के एल सायगल,नूरजहाँ ,सुरैया ,सुरेन्द्र ,शमशाद बेगम ,बेगम अख्तर ,मोहम्मद रफी ,मुकेश ,किशोरकुमार ,महेंद्र कपूर ,मन्ना डे,से लेकर सोनुनिगम , के .के .,शान ,अदनान सामी ,श्रेया घोषाल ,कविता कृष्णमूर्ति , और अभी तक जो सदा बाहर है उन महान गायिका लता मंगेशकरजी ,और आशा भोसले ...ये लिस्ट में अभी अनेक नाम छुट रहे है जो में महसूस कर रही हूँ .टी. वी पर आने वाले रियालिटी शो के जरिये कितने ही नए उभरते गायकों की संख्या बढ़ रही है .....

संगीतकारोंको लें तो नौशाद ,एस ।डी .बर्मन ,पंचम दा ,लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ,कल्याणजी आनंदजी ,खय्याम ,रविन्द्र जैन ,सी रामचंद्र ,से लेकर आज के ऐ आर रहेमान तक के महान संगीत कर मौजूद है ...

आनंद बक्षी ,योगेश ,कैफी आज़मी से लेकर आज के प्रसून जोशी तक के नमी अनामी शायरों के सुंदर अल्फाजों को बंदिश में बांधा जा चुका है ॥मेरे प्रिय गीतकार तो है गुलज़ार जी ....

बेजोड़ तवारीख रही है ये हिन्दी फ़िल्म और गैर फिल्मी गीतों के सफर की ... लोक संगीत से रीमिक्स तक का फ्यूजन संगीत तक का ये सुरीला सफर है जिसके कई मुकाम तो है पर मंजिल कभी नहीं हो सकती .....इस संगीत ने हमें हमेशा तनावमुक्त रखा है ।

दो पीढियों के बीच के फासले अगर कम करने हो तो संगीत एक अक्सीर इलाज है । थोड़ा थिरक लीजिये आज के इस गाने पर भी : ये इश्क हाय बैठे बिठाये जन्नत दिखाए हो .... अपना पुराना जवानी का युग याद आ जाएगा .

अगर मैं कुछ अपनी बात कहूँ तो ट्रांजिस्टर से हेड फोन तक के उपकरण ने मुझे बचपन से आज तक संगीत से जोड़े रखा है .मैं हर दौर में बजने वाला वर्तमान संगीत ही सुनना पसंद करती हूँ .आज का ही भरपूर मजा लेती हूँ ..कल का संगीत पसंद है तो आज के गाने भी बड़े ही चाव से सुनती हूँ .मोबाइल के हेड फोन और कार के रेडियो तक ऍफ़ एम् संगीत की आज बोल बाला है .रेडियो आज का लेटेस्ट ट्रेंड है . प्राइवेट ऍफ़ एम् रेडियो का आकाशवाणी से जब्बर मुकाबला है .पर जित तो आखिरकार संगीत की ही है ... इतना लिखने के बाद भी ये लेख अधूरा सा ही लगता है क्योंकि अभी इसमें कई बातें छूटी हो सकती है ...
मेरे कुछ पसंदीदा आज के गाने ::

१.तोसे नैना लगे पिया सांवरे ...
२.जुदा होके भी तू मुझमें कहीं बाकी है ...
३.मौला मेरे मौला मेरे ...
४.आंखों में सपने लिए ...
५.गुमसुम हो क्यों ??
६.किसका है ये तुमको इन्तजार मैं हूँ ना ....
७।मैं जहाँ रहूँ मैं कहीं भी हूँ तेरी याद साथ है ....

८रहना तू है जैसा तू थोड़ा सा दर्द तू थोड़ा सुकून ....

सफर ये सुरीला संगीतका कभी ख़त्म न हो पाये ,

ये इश्क सूर का मुझमे मेरी साँस हो....

4 जून 2009

समय ....

समय !!!!!

घड़ी की टिक टिक सुनते ,अलार्म सुनते या मुर्गे की बांग सुनते हो रही है हमारी सुबह अब ...पर आँखें खुल नहीं रही है ..मन में प्यास है अभी एक घंटा सो लेते है ..पर एक मुरझाये चेहरे को लेकर उठाना और वही रोजमर्रा की दिनचर्या में जुट जाना ...सब कुछ है पर शायद समय नहीं ...आजकल ये शायद हर छोटे बड़े की एक समस्या ...बस जिंदगी को जल्दी से जी लो ...आज सब कुछ पा लो और कल आराम करेंगे ..आराम से जी लेंगे ...पर थोड़े से ज्यादा की प्यास किसी की बुझती ही नहीं ..और आख़िर कार एक दिन दिन रात चलते रहने वाली ये घड़ी की सुयिआं रुक जाती है ..थक जाती है ...घड़ी बिगड़ जाती है ....दूसरी नई घड़ी ले लो .......ये क्या है ...

१ =बच्चा ---बिचारे को खेलने को समय नहीं दिया जाता ,पतंग लेकर दोड़ना, रेत के घर बनाना ,कागज़ फाड़ कर थोडी नाव बनाना ...स्कुल के रंग लेकर दीवारों पर बचपन के चित्र बनाना ....मट्टी से पाँव गंदे करने का ....एक बचपन की अठखेलियों के साथ पुरी तरह से जीने का ........

२= युवा = आज उसे फुर्सत नहीं है ...अपने घर में ठहरने की ,नोट्स तैयार करने है ...गर्ल फ्रेंड को मिलने जाना है ..पॉकेट मनी लेकर दोस्तों के साथ जाना है ...घरमें दादाजी के टूटे चश्मे बनवाने है ..सोरी टाइम नहीं अभी ...करियर भी तो बनाना है ..फ़िर मुलती नेशनल कम्पनी में अच्छी जॉब लेनी है ...फ़िर अच्छा दहेज़ भी तो मिलेगा ...और फ़िर विदेश में सेटल होनी की भी सोचनी है ...अभी पढाई के विज़ा पर जाते है फ़िर वहां नौकरी लेकर वहीं रहेंगे ....

३= माँ बाप = दोनों व्यवसायी है ...खूब जल्दी पैसे बनाने है ,बच्चो का करियर भी बनाना है , विदेशी टूर कब करेंगे ? सोसाइटी में खूब ऊँचा नाम हो तो बात बने ...ऊँचे लोग तक पहुँच बढ़नी है , पार्टी अटेंड करनी है ...सोरी डार्लिंग आज हम थक गए है , आज हम आपके साथ शादी में शामिल नहीं हो पाएंगे ...मंत्रीजी से मीटिंग है ...

४= बुजुर्ग = हमारे एक सुज्ञ वाचकश्री ने अच्छा सुझाव दिया ...ये बुझुर्ग लोग क्या करें ? शायद इनके पास ऊपर के सभी स्तर से होकर अब शायद समय ही शेष बचा हुआ होता है ...लेकिन अब इनकी शारीरिक ताकत जवाब देने लगती है ..आँख ,नाक ,कान ,दिल यानी की पुरा शरीर अब उनका साथ नहीं दे रहा ...अब घर के बाकी सदस्यों के लिए ये सिर्फ़ जिम्मेदारी ही समजे जाते है ...आज भी उनके ज्ञान और अनुभव आज की पीढी को काम तो आ सकते है पर इनके पास बैठने की किसीको उनके बेटों ,बहुओं ,बेटियों को या दामाद या पोते नाती को शायद फुर्सद ही नहीं होती ...और ये लोग भूल चुके होते है की जिंदगी की संध्या का सामना उन्हें भी कल करना पड़ेगा ही ...एक फ़िल्म याद आ रही है न !!!बागबान ...!!! जब शरीर काम नहीं करता ,अपने परायों सा दुर्व्यवहार करने लगे तो ये समय के साथ आने वाले मौत की प्रतीक्षा ही करते है ...जिनके नाम जायदाद ,और सम्पदा कर दी हो ऐसे संतानों के पास अब उन्हें देने के लिए वृद्धाश्रम की फीस तो होती है पर प्यार से बात करने का समय नहीं ....

समय रहते हुए ही आप कोई ऐसी प्रवृति अपने निजानंद के लिए ही करो ,थोडी धनराशि को कुछ संस्थाओं के लिए रखो वहां पर जाकर उसे प्यार दो जो प्यार के दो पलों के लिए जिंदगी भर से तड़प रहा हो - अनाथश्रम हो या वो बच्चे जिसे मेंटली चेलेंजेद कहते है ...नि: स्वार्थ भावना के साथ गुजारा हुआ ये समय शायद आपकी असली पूंजी बन सकता है और आपके वक्त का सही इस्तमाल भी ....

या फ़िर ,,बच्चों की फीस ,छोटी की शादी के लिए पैसे , बेटे की पढाई के पैसे , शायद कभी दो जून की रोटी के लिए खून पसीना बहाने में ही पुरा समय निकल जाता है ..दो तार कभी मिल ही नहीं पाते ...यूँही जिंदगी ख़त्म हो जाती है ...दिन साल में और साल एक उम्र में तब्दील होकर समाप्त हो जाता है ...उनकी अंजलि समारोह होते है पर जीते जी उन लोगों के पास बैठने का समय नहीं होता हमें ....

क्या सचमुच ऐसा है या हमने इसे इस तरह का पेचीदा बनाकर रख दिया है ??? समय मिले तो सोचकर जरूर देखें ...फुर्सत में कभी ...

आत्मगौरव

आत्मगौरव !!!!

ये शब्द का सहज अर्थ हम क्या समज पाये है ? आज ये छोटा सा सवाल है मेरा ...ये फिलोसोफिकल लगनेवाला ये शब्द हमारी सामाजिक समस्या का कारण है ।

छोटी थी तब टीवी खूब अच्छा लगता था ..तब तो खाली दूरदर्शन ही था ..जब समाचार आते वो खूब चाव से देखती ..मुझे रशिया के राष्ट्रपति हो या फ्रांस के हो ..एक बात आज तक अच्छी लगती है उनकी ...वे अपनी राष्ट्रभाषा की ही प्रवचन में प्रयोग करते है ..चाहे देशमें हो या विदेशमें ..एक अनुवादक उनके भाषण का अनुवाद करता रहता है ...और हमारे यहाँ ????

जैसी भी आती हो अंग्रेजी बोलना हमें बड़ा ही सम्मोहित करता है ...अंग्रेजी बोलने वालो से हम जल्द प्रभावित हो जाते है ....हिन्दी में बोलने वाला हमें "देसी " लगता है ....हमारे पास एक ही जवाब है ...इंग्लिश इज अ ग्लोबल लेंग्वेज और हमें ये आनी ही चाहिए .....हमारी मातृभाषा जो भी हो बच्चा अंग्रेजी माध्यम से ही पढ़ना चाहिए ...आज का बच्चा अपनी माँ से बेजिजक कहता है ..मम्मी सबकी मम्मी जींस -टी शर्ट पहनकर आती है तब आप बिल्कुल गंवार लगती है साड़ी पहनकर .....ये क्या है ????

सिर्फ़ आत्मगौरव का अभाव जो बचपन से हममें ठूंस ठूंस कर भरा जाता है .....हमें हमारे देश से दुसरे देश ज्यादा अच्छे लगते है ...दुसरे देश के लोग ,उनकी भाषा ,रहनसहन , फिल्में सब कुछ ......जब की अब ये हालत है की पाश्चत्य देश हमारी संस्कृति की और झुक रहे है ...और हम अभी वही राग आलाप रहे है ...कब तक ???

आज हमारा समाज जो जाती ,धर्म ,उंच नीच आदि से तो पहले ही बँटा है वह एक नए सिरे से बंट रहा है , बोली के आधार पर ....वर्नाक्यूलर में पढने वाला और अंग्रेजी जानने ,समजने वाला और बोलने वाला ....आपके पास गहरा ज्ञान न हो पर फर्राटेदार अंग्रेजी बोल दी ...आधा काम हो ही गया समज लो ,...जो भाषा बोलचाल की हो और पढने की अलग हो ...बच्चा बचपन से इस दोराहे में उलझ कर रह जाता है ...ऊपर से अच्छे मार्क्स का और टेंशन बढ़ा दिया है हमने ....

हमारा बच्चा अच्छे नंबर लाये तो अच्छा ...अच्छी चित्रकारी या मूर्ति कार बनने के लिए माँ बाप गौरव नहीं लेते ...एक लड़की ऐक्ट्रेस बनना चाहे तो बस हर तरह की पाबन्दी ...उसे टीचर ही बनना है ..हमारे बच्चो की जो विशेषता है उसके लिए हमें आत्मगौरव नहीं है ...

ख़ुद पर भी नहीं ....बाजु वाले ने मर्सिडीज़ ले ली और हमारे पास सिर्फ़ स्कूटर ही है !!!!!लज्जा आती है ...हम ये नहीं समजते की अपने आत्मा की आवाज के विरुध्ध जाकर कितने काले काम भी हो सकते है ये चमचमाती जिंदगी के पीछे ...ऐ सी कमरेमें उनकी रातें आंखोंमें बिना नींद गुजरती होगी , बिना नींद की गोली नींद भी नहीं आती होगी ...जो हमारे पास सहज उपलब्ध है ...बी पी ,डायबिटीस और न जाने कितने रोग की गोलियां उनके टेबल पर खाने की जगह सजी हुई होगी ....पर फ़िर भी हम लोग लघुता ग्रंथि से पीड़ित ही रहते है ...आत्मगौरव का आभाव .......

जापान ,चीन ,जर्मन ,फ्रांस ,रशिया जैसे कई देश आगे है ,विकसित है क्योंकि उन्हें जैसे भी हो अपने देश पर गौरव है , वे अपने देशके विकास के बारे में सोचते है ,उसके लिए अपने ज्ञान का प्रयोग करते है ,उन्हें अपनी भाषा ,लोग ,देश पर गर्व है और आत्मगौरव भी .......उनके विकास में मातृभाषा कभी बाध्य नहीं बनी होगी ...

अगर इंसान को अपने आप पर ही विश्वास न हो तो फ़िर दुनिया में कोई उस पर विश्वास कैसे कर सकता है ???

अपने आप पर विश्वास करो ..जैसे भी है हम अच्छे है ...एक खराबी है तो शायद कई सारी खुबिया भी है हम में ...

ये सोचना शुरू करें .....

और क्या कहें ???आप जो भी कोई ये पढ़ रहें है खूब समजदार है ही ...

3 जून 2009

शादी एक पवित्र रिश्ता

शादी ......!!!
दो अनजान या फ़िर जाने पहचाने व्यक्तियों के बीचके समाज द्वारा जो स्वीकृति की मोहर लगायी जाती है उस रिश्ते को हमने शादी का नाम दिया है ....
एक स्त्री और एक पुरूष वयस्क होते है तब वे एक अपना स्वतन्त्र घोसला या घरौंदा बनाने का ख्वाब देखते है ...शादी का बंधन उन्हें इस बात के लिए सामाजिक स्वीकृति भी देता है ....दुनिया के किसीभी देश में चाहे वह पछात हो या विकसित हर जगह इसे पुरा सम्मान दिया गया है ...
जैसे हम रोटी कपड़ा और मकान और व्यवसाय को जरुरी मानते है वैसे ही जातीय जीवन को भी एक अभिन्न अंग गिनकर ये रिश्ते को बांधना और पुरी तरह तन मन धन से समर्पित होकर निभाना ये हमारी मूलभूत जरुरत मानी गई है .......
फ़िर भी आधुनिक जीवन में ये रिश्ता खोखला क्यों लगता है ?
आर्थिक स्वतंत्रता : पुरूष और नारी दोनों ही आधुनिक दुनिया में आर्थिक रूप से स्वतन्त्र होने लगे है ...कल तक बात ये थी की नारी कम पढ़ी लिखी और आर्थिक रूप से पुर्णतः पुरूष पर निर्भर थी चाहे वह पिता हो या पति ....
वो ख़ुद को कमजोर नहीं समजती ...उसको ये नए पंख मिले है तो वह दूर तक उड़ना चाहती है ...यह बुरी बात तो नहीं पर इस बात का अंहकार भी उसमे पाया जाने लगता है तब प्यार की नींव पर बने इस रिश्ते की नींव हिलने लगती है ....और ये अहम् छोटी बात से शुरू होकर अलगाव तक पहुँच जाता है ...और ताज्जुब की बात है की इसे अब समाज स्वीकार भी करने लगा है ...कानूनन हक़ है ये मैं भी स्वीकार करती हूँ पर शादी एक प्यार और समर्पण का रिश्ता है जहाँ पर दोनों को ही अपने सभी पहलु को एक दुसरे को समर्पित करना होता है वहां पर वह शादी की वेदी पर अहम् को समर्पित नहीं करते और अपने साथ जुड़ी बाकी जिन्दगी के साथ भी खेल जाते है ....
सामाजिक स्वछंदता :जातीय स्वेच्छाचार को बढ़ते देखकर शादी का जो रोमांच होता था वह ख़त्म होता नजर आता है ...शादी से पहले खुलकर मिलने वाले दो व्यक्ति शादी तक तो अपने अच्छे पहलु को ही उजागर करते है ...पर शादी होने के बाद जब २४ घंटे का साथ बन जाता है तब उनके स्वभाव की त्रुटियां भी खुलकर सामने आ जाती है ...इस हाल पर उन्हें लगता है की उन दोनों का एक दुसरे के प्रति प्यार ख़त्म हो गया है ...पर हकीकत ये नहीं होती ...उन्होंने प्यार को बहुत ही छोटे मापदंड पर नापा होता है ...समर्पण को भूलकर ...फ़िर ये रिश्ता खींचता है और ये लोग जी भर के जी नहीं पाते ...जिंदगी कमजोर कड़ी लगती है ....क्या समय और महत्वकांक्षाओं की वेदी पर प्यार की बलि नहीं दे रहे है आज के सुधरे हुए लोग ........हम दुसरो के बारें में जरा भी नहीं सोचते है ...स्वार्थ ही देखते है तब ये रिश्ता ये शादी बेमानी हो जाती है ......
आज कल की परवरिश और अकेलापन जो रस्ते पर ये लोगों को ले जाता है वहां पर बहकना स्वाभाविक लगता है ...हमें किसीका सलाह मशवरा मानने में निचा लगता है ..यहाँ भी अहम् .......

शायद शादी का ये रिश्ता तो सरहद पर रहने वाले जवान की पत्नी को पूछो जिसकी राहों पर आँखे बिछ जाती है ...दूरियों पर भी नजदीकियां बन जाती है ....जहाँ पर एक ख़त सामने वाले के वजूद का साक्षात्कार कराता है ....



ये जिंदगी हमें सिर्फ़ एक बार मिलती है ....उसे नोटों की बलि मत चढाओं .....कुछ तो प्रकृति से सीखो ...क्यों हम प्यार और शादी को पैसे की बलि चढाते है ....अगर हम समजे तो अकेलेपन को दूर करने की चाबी तो हमारे पास है पर इसका सही इस्तेमाल हम जानते हुए भी करना नहीं चाहते ....

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आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...