4 जून 2009

समय ....

समय !!!!!

घड़ी की टिक टिक सुनते ,अलार्म सुनते या मुर्गे की बांग सुनते हो रही है हमारी सुबह अब ...पर आँखें खुल नहीं रही है ..मन में प्यास है अभी एक घंटा सो लेते है ..पर एक मुरझाये चेहरे को लेकर उठाना और वही रोजमर्रा की दिनचर्या में जुट जाना ...सब कुछ है पर शायद समय नहीं ...आजकल ये शायद हर छोटे बड़े की एक समस्या ...बस जिंदगी को जल्दी से जी लो ...आज सब कुछ पा लो और कल आराम करेंगे ..आराम से जी लेंगे ...पर थोड़े से ज्यादा की प्यास किसी की बुझती ही नहीं ..और आख़िर कार एक दिन दिन रात चलते रहने वाली ये घड़ी की सुयिआं रुक जाती है ..थक जाती है ...घड़ी बिगड़ जाती है ....दूसरी नई घड़ी ले लो .......ये क्या है ...

१ =बच्चा ---बिचारे को खेलने को समय नहीं दिया जाता ,पतंग लेकर दोड़ना, रेत के घर बनाना ,कागज़ फाड़ कर थोडी नाव बनाना ...स्कुल के रंग लेकर दीवारों पर बचपन के चित्र बनाना ....मट्टी से पाँव गंदे करने का ....एक बचपन की अठखेलियों के साथ पुरी तरह से जीने का ........

२= युवा = आज उसे फुर्सत नहीं है ...अपने घर में ठहरने की ,नोट्स तैयार करने है ...गर्ल फ्रेंड को मिलने जाना है ..पॉकेट मनी लेकर दोस्तों के साथ जाना है ...घरमें दादाजी के टूटे चश्मे बनवाने है ..सोरी टाइम नहीं अभी ...करियर भी तो बनाना है ..फ़िर मुलती नेशनल कम्पनी में अच्छी जॉब लेनी है ...फ़िर अच्छा दहेज़ भी तो मिलेगा ...और फ़िर विदेश में सेटल होनी की भी सोचनी है ...अभी पढाई के विज़ा पर जाते है फ़िर वहां नौकरी लेकर वहीं रहेंगे ....

३= माँ बाप = दोनों व्यवसायी है ...खूब जल्दी पैसे बनाने है ,बच्चो का करियर भी बनाना है , विदेशी टूर कब करेंगे ? सोसाइटी में खूब ऊँचा नाम हो तो बात बने ...ऊँचे लोग तक पहुँच बढ़नी है , पार्टी अटेंड करनी है ...सोरी डार्लिंग आज हम थक गए है , आज हम आपके साथ शादी में शामिल नहीं हो पाएंगे ...मंत्रीजी से मीटिंग है ...

४= बुजुर्ग = हमारे एक सुज्ञ वाचकश्री ने अच्छा सुझाव दिया ...ये बुझुर्ग लोग क्या करें ? शायद इनके पास ऊपर के सभी स्तर से होकर अब शायद समय ही शेष बचा हुआ होता है ...लेकिन अब इनकी शारीरिक ताकत जवाब देने लगती है ..आँख ,नाक ,कान ,दिल यानी की पुरा शरीर अब उनका साथ नहीं दे रहा ...अब घर के बाकी सदस्यों के लिए ये सिर्फ़ जिम्मेदारी ही समजे जाते है ...आज भी उनके ज्ञान और अनुभव आज की पीढी को काम तो आ सकते है पर इनके पास बैठने की किसीको उनके बेटों ,बहुओं ,बेटियों को या दामाद या पोते नाती को शायद फुर्सद ही नहीं होती ...और ये लोग भूल चुके होते है की जिंदगी की संध्या का सामना उन्हें भी कल करना पड़ेगा ही ...एक फ़िल्म याद आ रही है न !!!बागबान ...!!! जब शरीर काम नहीं करता ,अपने परायों सा दुर्व्यवहार करने लगे तो ये समय के साथ आने वाले मौत की प्रतीक्षा ही करते है ...जिनके नाम जायदाद ,और सम्पदा कर दी हो ऐसे संतानों के पास अब उन्हें देने के लिए वृद्धाश्रम की फीस तो होती है पर प्यार से बात करने का समय नहीं ....

समय रहते हुए ही आप कोई ऐसी प्रवृति अपने निजानंद के लिए ही करो ,थोडी धनराशि को कुछ संस्थाओं के लिए रखो वहां पर जाकर उसे प्यार दो जो प्यार के दो पलों के लिए जिंदगी भर से तड़प रहा हो - अनाथश्रम हो या वो बच्चे जिसे मेंटली चेलेंजेद कहते है ...नि: स्वार्थ भावना के साथ गुजारा हुआ ये समय शायद आपकी असली पूंजी बन सकता है और आपके वक्त का सही इस्तमाल भी ....

या फ़िर ,,बच्चों की फीस ,छोटी की शादी के लिए पैसे , बेटे की पढाई के पैसे , शायद कभी दो जून की रोटी के लिए खून पसीना बहाने में ही पुरा समय निकल जाता है ..दो तार कभी मिल ही नहीं पाते ...यूँही जिंदगी ख़त्म हो जाती है ...दिन साल में और साल एक उम्र में तब्दील होकर समाप्त हो जाता है ...उनकी अंजलि समारोह होते है पर जीते जी उन लोगों के पास बैठने का समय नहीं होता हमें ....

क्या सचमुच ऐसा है या हमने इसे इस तरह का पेचीदा बनाकर रख दिया है ??? समय मिले तो सोचकर जरूर देखें ...फुर्सत में कभी ...

3 टिप्‍पणियां:

  1. प्रीटी जी,
    सच कहा आपने और बड़े सुन्दर ढंग से कहा ..जिन्दगी में भागमभाग कुछ ज्यादा ही बढ़ सी गयी है...मगर ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी काफी शान्ति है...और हाँ आपने अपनी बात सिर्फ युवाओं तक क्यूँ रोक दी ..भाई असली एकाकी जीवन तो बुजुर्गों को ही जीना पद रहा है..मगर उन्हें भागमभाग नहीं करनी पड़ती इसलिए.....

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  2. अच्छी चर्चा। अच्छा बिषय उठाया है आपने। कुमार विनोद की पंक्तियाँ हैं-

    दर हकीकत कुछ दिनों से सेल घड़ी का खत्म था।
    और मैं नादां ये था समझा वक्त है ठहरा हुआ।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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