मुझे एक आदत है ..सुबहमें जब छ: बजे के करीब आंखे खुलती है तो मैं सीधी अपने टेरेस पर जाकर बस थोड़ा टहलती हूँ ,रुकती हूँ , थोडी देर झूले पर बैठती हूँ ....
मेरी निगाहें हमेशा आकाश पर ठहरी होती है ...मैंने कभी भी इस आकाश को एक ही रूप में नही देखा ..और ये हाल बरसों से है ...न कभी सूरज एक पैटर्न में निकलता है न चाँद .....पंछियों का उड़ना भी सीज़न के ताल्लुकात रखता है ...जाड़ेमें छोटी छोटी चिडिया एक बड़े हुजूम में निकलती है ..इधर से उधर चक्कर लगाती है लेकिन जैसे ही सूर्योदय का वक्त होता है वे सब एक मकानके टेरेस पर या लंबे कोई केबल के वायर पर बैठ जाती है ...उस वक्त ऐसा लगता है की वो महाराजा सूरज के आगमन पर झुककर सलाम कर रही है ...जैसे ही सूरज महाशय बहार आ जाते है कुछ ही सेकंडमें वहां खाली वायर या टेरेस होता है .....गर्मी में लंबे और धीरी उड़ानवाले पंछी देखने मिलते है ...एक लम्बी कभी तिकोनी कतारमें हमेशा बारी बारीसे आगे पीछे होकर उड़ते है ...सबसे आगे वाला पंछी हवाओं को काटकर पीछे वाले पंछी के लिए रास्ता आसां बनाता है ...और थोडी थोडी देर मैं पोजीशन बदलते चलते है ...ताकि कोई ज्यादा न थके ॥
उनको घड़ी देखनी तो नहीं आती पर उनका अपने स्थान पर जाने का या लौटनेके वक्त में कोई फर्क नहीं पाया जाता है ..और हम !!!!!!!!घड़ी का उपयोग हम कितने देरी से या जल्दी चलते है ये देखने को करते है ...
अब बारिश शुरू हो चुकी होती है तो कोयल की कुक या मोर के गहेंकका भी समय एक सा रहता है ...बस लगता है हम मनुष्य ही प्राकृतिक तरीके से जीना भूल रहे है ....एक चिडिया दूसरी चिडिया को अलग अलग आवाज देकर किसी सुचना देती है ...उनके भी सांकेतिक शब्द होते है ....
हमें स्कुल में पढाया गया है की सूरज कर्क वृत से मकर वृत तक गति करता है ...२२ सितम्बर से २१ जून तक उसकी उत्तर की गति होती है ..हर रोज थोड़ा खिसकता नज़र आता है ...और फ़िर दोबारा दक्षिण की गति करता है ..ये सब मैं ख़ुद इतने सालसे देखती हूँ ...हाँ अब बारिश के दिनोंमें बादल के कारण देख पाना सम्भव नहीं हो सकता ......
सुबह से शाम तक रोज प्रकृति अपना रंग हरदम बदलती है पर हमने इस प्रकृति के साथ इतना खिलवाड़ किया है की अब शाम ढलने के बाद ऊँचे आकाशमें धुएँका होना साफ़ दीखता है ....
यहाँ पर मैंने जो कहा है वह हमारी जिंदगी में कितना उल्टा है ...शायद इसी लिए कोई पंछी या पशु हार्ट एतेक से नहीं मरता होगा या बी पि का या मधुमेह का प्रॉब्लम भी नहीं होता होगा ...
अरे हम मनुष्य है ...इस भ्रमांड का सबसे बुध्धिशाली जिव ....हमें भला इनसे क्या सिखने की जरूरत है ? हमें बीमारी के साथ दवाई बनाना आता है ...हम सर्वोच्च है ......पुरे आलोक और परलोक में छाये हुए ....हम चाँद पर जा सकते है ,मंगल पर आशियाँ भी बना सकते है ...पर हम एक और इंसान के लिए वक्त नहीं निकाल सकते ...बहुत बिजी है .....हाँ हमें फुर्सत नहीं है .....
प्रकृति से ही जीवन जीना सीखना होता है सफल जीवन के लिए. अच्छा आलेख.
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