8 सितंबर 2025

रस्म निभाते

रस्में निभाते ज़िन्दगी की
हम हो गये हैं चूर चूर ,
खुशी से डर लगने लगा ,
ग़म झेले हैं भरपूर।
वजह नहीं थी पास गैरों के,
हमें अश्कों से नहलाने की,
वो तो सारे अपने निकले,
ज़हर घोलते रहे ,
दुआ देते हुए जीए जाने की ......

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

विशिष्ट पोस्ट

मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!

आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...