6 अगस्त 2024

बारिशें

खिड़की से झांका तो गीली सड़क नजर आई ,
बादलकी कालिमा थोड़ी सी कम नजर आई।
गौरसे देखा उस बड़े दरख़्त को आईना बनाकर,
कोमल शिशुसी 
बूंदों की बौछार लजाकर
ज़मींकी आगोश में जाने को 
बेताब सरकती नज़र आई ।

10 जनवरी 2024

सफर

सफर में सन्नाटे थे,
सफर में शोर था,
सफर में साथ था,
सफर में हमसफर था,
सफर में एक मंजिल थी,
मंजिल के लिए वह सफर था,
मंजिल तक गुजरते गुजरते,
एक पहेली सा सफर था,
पहली की सुलजन की उलझन भी वह सफर था,
सफर में अंत के सन्नाटे में शोर था।

20 सितंबर 2023

अलविदा

 हमने कब कहा कि हम इस दुनिया के हैं,

गलतफहमी हमें ही तो थी कि हम इस दुनिया के हैं।

ना जमी एक सी थी ना आसमान एक सा था,

फिर क्यों हमारी उम्मीद एक सी बनी रही???

वफाएं हमारी भले शिद्दत से भरी रही,

राह तुम्हारी थी की ,

हमारी वफाए तुम्हें तुमसे मिली ही नहीं।

अब न मिलने की चाहत है,

चाहत बिछड़ने की तुम्हारी यादों से।

मखमली तकिये के सिरहाने सोकर,

चलो इस दुनिया को अलविदा कहा चले।

27 मई 2018

जलती धरती

रात आकर मरहम लगाती,
फिर भी सुबह धरती जलन से कराहती ,
पानी भी उबलता मटके में
ये धरती क्यों रोती दिनमें ???
मानव रोता , पंछी रोते, रोते प्राणी
ढूंढते छांव धूप के तीरो  से बचने को ,
पेडों से घिरी सड़कें अब तो कल की बात है ,
सीमेंट के जंगल मे पेड़ कहाँ मिलते???
वो हमारे ही कर्म थे जो लकड़ी के लिए
पेडों की बलि चढ़ाते रहे हम ,
पैरों से चलने की आदत छोड़ कर,
पेट्रोल के ईंधन के वाहन को अपनाते गए ,
अब फल मिलने लगे है भरपूर,
पारा उष्णता का नहीं उतरता नीचे
करता 40 और 45 सेल्सियस के पार
धरती के वस्त्र स्वरूप वृक्षों को
हम बेरहमी से काटते रहे ..
अब गर्मी से झुलसते हम बेहोश होकर
प्राण खोते रहने की शुरुआत हो रही है ...
वक्त रहे सम्भल जाओ..
पेट्रोल , पानी और पेड़ बचाओ ...
सायकल से सेहत बनाओ ,
सादगी से रहकर धरतीको बचाओ ....

2 मई 2018

आशाएं

कहीं धुंधली सी लकीरें सुनहरी
प्रकाश की आशाएं बिखेरती है ,
नन्हे बच्चे की मासूम मुस्कान
खुशी की लहर बिखेरती है ,
प्रकृति का रूप बदलता
अचंभित कर आश्चर्य की सीमाएं बिखेरती है.
कड़कती बिजली का बेखौफ नर्तन
भय का आवर्तन का सृजन कर
कपकपी फैलाती है .…
चाँद की चाँदनी में तकना आकाश को
मन मे सुकूनभरी स्निग्धताका लेपन करती है ....
पर कहाँ देख पाते है इसे हम वक्त के मारे
घंटो तक आभासी रिश्तों में व्यस्त एक डिबिया में भरे ,
ढूंढते रहते है सुकून का एहसास
जलजीवन से भरी गगरिया में भी हमें
कसकती प्यास ....

23 अप्रैल 2018

धूप

पहनकर धूप की पायल ,
अंगारोंकी तपिश में नाचती सड़कें ,
तन्हाई में बात कर रहे है सूरज से ....
तुम सुलगते रहे हो सालों से ,
पर राख न हुए कभी ,
तब हाले दिल बयाँ करते बोला सूरज ,
मेरी तनहाई का आलम कौसे करूँ बयाँ??
जो मेरे करीब आता है ,
सुलग जाता है तड़पकर ,
उन सुलगते साथी पर बरबस रोता रहा हूँ,
मेरे आँसू भी सुख जाते है मेरी तपिशसे ,
तकदीर में राख भी नही
मेरी गर्माहट से तो राख भी जल जाती है ,
मेरी राह  तकना तुम ,
बादलों की चुनर में
बूंदोके मोती की गठरिया बांध आऊंगा ,
इंतज़ार करना ...

21 अप्रैल 2018

सन्नाटा

दूर दूर तक भीड़ ही भीड़ है ,
पर कोई कुछ बोल नही रहा .

भीड़ को चीर कर बस बरबस दौड़ रहा सन्नाटा ...
खामोशी भी उसका हाथ थामे है चल रही,
सुनी आँखों में  कितने ही सवाल लिए ...
कोई कुछ बोलता नही ...
हजारों सवालों का समुन्दर लहरा रहा है ,
पर न कोई शोर न आवाज ,
भीड़ में खड़ी एक औरतकी कोख से एक आवाज सुनाई दी इस सन्नाटे में ,
माँ , मैं तेरी कोखसे बोल रही हूँ ,
पहले मैं तरस रही थी इस दुनिया में आने को , उसे देखने को , उसे प्यार करने को....
पर मुझे नही आना अब ,
खौफनाक दरिंदगी की दास्तानों से
डरा हुआ तेरा दिल मैं महसूस कर रही हुँ..
छोटी सी जान भी सलामत न रही
दरिंदगी और वहशत से अब ,
नहीं आना इस दुनिया मे अब इंसान के लिबास में मुझे अब ,
में जा रही हूं तुमसे दूर कहीं ,
कल तेरे गुलाब के पौधे में खिलूँगी
एक गुलाब की कली के रूपमे ,
तेरे आंगन को महकाने को ...
भीड़ से एक धक्का आया ,
वो औरत गिर गयी ,
थोड़े मानुष उस पर से गुजर भी गए ,
जब आँख खुली उसकी ,
उसकी बेटी ने बिदाई ले ली थी ,
एक गुलाब बनने के लिए ,
या शायद एक गोरैया बन चहकेगी ???!!!!! .....

18 अप्रैल 2018

लकीरें

हथेली से गुजरती हुई
वो पतली सी पानी की धार
पथ्थर की तरह
एक लकीर बनाकर चली गई .....
सहर में एक अक्स उभरकर निकला
उस लकीर की गहराई से
एक आवाज भी आई ...
वो आवाज में घुला था मेरा नाम ...
दौड़कर खिड़की खोली ,
एक सर्द हवा का झोंका
मेरे चेहरे को छूकर कमरे में आ गया...
मैं खामोश वो झोंके से उभरा वो
गीत सुनता रहा जो तुम गाती थी...
अक्सर मुझे बुलाने का इशारा देते हुए ,
जब उस झरने पर पानी भरने आती थी ...
लोग कहते है ये झरना नही सूखता
कड़ी धूपों में जुलसकर भी !!!!
कैसे सूखे ??
रातों को तन्हाई में झरने के किनारे
रोते है हम दोनों तुम्हारी यादों में भीगते है ....

17 अप्रैल 2018

जिंदगी

कभी खिड़की से झांखती ,
कभी पलकें बिछाएं करती मेरा इंतज़ार ,
मुझे तेरी तलाश थी ,
तेरा दिल भी था मेरे लिए बेकरार ....
पर नही मिलना था मुझे ,
तुझसे जो किये थे
वादे नही कर पाई पूरे ,
तू समझती बिन पूछे मुझे .....
पर मैं खुद से शर्मिंदा नही हो पाती ....
चल आज गले लग जाए ,
न मुझे कोई गिला तुझसे ,
न कोई शिकवा तुझे भी होगा ,
अधूरे अधूरे से हम फिर भी पूरे पूरे से हो जाए....

20 दिसंबर 2017

पतझर

पतझड़ मे गिरते पत्तों के साथ
मेरे अल्फाज भी गिरते रहे ....
चमन रो रहा था सिसकियों मे,
अल्फाज अश्क बनकर बहते रहे ....
सुनी डालियों पर सन्नाटे का है घरौंदा,
इन्तजार मे बहार की आहट मे
सरसराहट से टहनी से चिपका रहा वो पत्ता .

11 दिसंबर 2017

हमसफर

क्यों चाहूँ मैं तुम्हे , तुम भले मेरी तकदीर सही ,
क्यों सराहूं मैं तुम्हे, तुम चाहे मेरे करीब सही,
क्यों तेरे ख़याल मुझे रहने नहीं देते तन्हा ,
मेरी लिखावट में घुल जाती है तेरी बेवफाई सही,
तू कोई अपना तो नही था ,फिर भी तेरे लिए ये खलती है ये दूरियाँ भी कहीं ....
रिश्ता कुछ अपनों सा है ,
रिश्ता कुछ सपनों सा है,
थोड़ा अजनबी सा है,
थोड़ा पहचाना सा है....
तुम्हारा इन्तजार करूँ??
या आगे का सफर तय करूँ??
हर रास्ते पर मोड मिलते हो कहीं ना कहीं
तो मुस्कुरा देगें हमसफर रेलगाड़ी के हो जैसे.....

विशिष्ट पोस्ट

मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!

आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...