21 नवंबर 2011

सिर्फ सुनना लाज़मी है....

बिना कुछ कहे सिर्फ सुनना लाज़मी है ,
बिना कुछ सुने सिर्फ  कहना लाज़मी है ,
तुम थे तो जिंदगीमें बहार खिलती थी वीरानेमें भी ,
तुम बिन  बहारोंमें भी हंसते नहीं गुल फिज़ाओंके ...
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कुछ तुम न समजे ,
कुछ मेरी भी खता रही है ,
एक तुमसे जुदा क्या हुए ...
जाना की अब जिंदगी भी सजा हो चुकी है .......
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जब चाहा है तुम्हे दिलो जान से
नफ़रतको जताना मुमकिन नहीं
होठो पर तेरा नाम न हो भले मेरे
दिलसे तुझे निकालना मुमकिन नहीं मेरे लिए ......

7 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ...बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  2. जब चाहा है तुम्हे दिलो जान से
    नफ़रतको जताना मुमकिन नहीं
    होठो पर तेरा नाम न हो भले मेरे
    दिलसे तुझे निकालना मुमकिन नहीं मेरे लिए
    . न भुलाने की मज़बूरी का सुखद अनुभव.
    बहुत सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रभावशाली रचना ...
    शुभकामनायें आपको !

    जवाब देंहटाएं
  4. बिना कुछ कहे सिर्फ सुनना लाज़मी है ,

    जवाब देंहटाएं

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