ये ही तो गली थी
यहाँ की सड़क सदायें दे रही थी सपनेमें आकर ,
जैसे इसे इंतज़ार था उसको मेरा कई सदियोंसे
खिड़की खोलकर ........
नया समां था
धुपने बाहें फैलाई थी ,
और गुलमहोरकी शोख कलियाँ शरमा रही थी ,
सूरज आकर घूँघट खोलता था और
केसरिया गुलाल फिजाओंको भीगा रही थी .......
बस ऐसी ही कुछ अनकही जज्बाती पलोंकी लडिया लेकर
जिंदगी आती है देहलीज़ पर मेरे
और कानमे हौलेसे कहती है ,
मुझे तुमसे प्यार है !!
क्या मुझे उससे प्यार है ?????
बस सड़कके किनारे टहनीसे गिरी
एक पंखुड़ीको सहला दिया ,
और हवाके झोंकेसे पेड़ने अपना सर हिला दिया !!!!!
बहुत ही खुबसूरत...
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