14 मई 2012

डायरी जो चुपके से बैठी थी...

वो डायरी जो चुपके से बैठी थी मेरी अलमारीमें 
दुबक कर छिपकर जैसे वो अँधेरेमें ही रहना चाहती हो ,
उसके पीले पन्नोमें कुछ खुश्बू आज भी ताजा थी ,
जैसे ये कलकी ही बात हो ऐसी ही वो आज थी .....
उस डायरीमें वो चेहरे थे जिसे मैं भुला चुकी थी ,
वो चेहरे थे जिसे मैं भुलाना चाहती थी ,
वो चेहरे थे जिन पर जिन पर मेरे दिलका  इख्तियार न था ,
वो चेहरे थे जिन पर मेरे दिलको ऐतबार न था .......
वो चेहरे जिसमे मासूमियतके लिबासमें दरिंदगी छुपी थी ,
वो चेहरे थे जो पाक परवरदिगारकी ही तस्वीर थी ,
वो चेहरे थे जो डायरीकी गैर-मोजुदगीमें भी मिटाए नहीं जा सकते ,
मेरे वजूदके साथ जुड़े वो चेहरे 
जिससे ही तो मेरी भी पहचान पूरी नहीं हो सकती .......
चेहरे पर चेहरों का नकाब रोज बदलती दुनियामें ,
फिर भी एक चेहरा खास है जो कभी नहीं बदला .......
मेरी माँ का .....

1 टिप्पणी:

विशिष्ट पोस्ट

मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!

आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...