15 मई 2012

दस्तूर है

वायदे हमेशा कांचके टुकडोमें मिलते है ,
जिसे संभालकर जीना पड़ता है ,
एक ठोकरसे भले खुद गिर पड़े ,
उस वादेको संभालना पड़ता है .......
कांचका है तो कोई ऐतबार कैसे कर दे उस पर ,
बस इस ऐतबारका न करना ही है ,
की वो कांच टूट कर रह जाता है ,
किरचें बिखर जाती है रस्तेमें हमारे ,
उस चुभ जाती है पैरोंमें खुदके ,
उस लहूको देखकर भी वो पत्थरदिल महबूब ,
मुस्कुराता है और कहता है :
ये वफ़ाके रस्ते पर चलनेका दस्तूर है ,
खुदका दिल हमारे नाम कर दिया तुमने ,
बस तुम्हारा ये ही तो कसूर है !!!!11

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