जिंदगी एक अजीब दास्ताँ है ...कब कहाँ किस मोड़ पर लेकर जाए पता ही नहीं चलता ......जब सब कुछ मनमुताबिक ठीकठाक चल रहा हो तो एक छुपा हुआ डर सामने आता है ,कहीं कुछ बुरा तो नहीं होगा न ??!! ये शंका बहुत ही गहरी चीज है ..और कभी सच हो तो ये वहम हो जाती है ....एक जैसी गुजरती जिंदगीसे बोर हो जाना भी लाज़मी है ...परिवर्तन उस वक्त हमें चाहिए होता है जो मिलता नहीं ..और जब कोई परिवर्तन होता है तो हम तैयार नहीं होते उसके लिए .....
जब अचानक कुछ बड़ा बदलाव आये तो मैं उसे हंसकर स्वीकार करती हूँ ....मुझे शंका कम ही होती है ...स्थिति नयी होती है इस लिए सफलता और विफलताका डर भी नहीं होता ....प्रवाह से अलग पगडण्डी पर चलना मेरा एक शौक है ...क्योंकि वहां पर एक नयापन होता है ....
हम मनुष्य पहले हमें हर बातमे कुछ मुनाफा है या नहीं ये पहले सोचते है उसके बाद हम देखते है की इस राह पर कितनी कम मुश्किल आएगी ...उसके बाद निरिक्षण करेंगे की उस राह पर चलने वालोंके साथ क्या क्या होता है ??? उनकी राय भी जानेंगे ...फिर कदम बढ़ाएंगे .....इतनी देर लगानेमें उस चीजमें जो आकर्षण होता है वो समाप्त हो जाता है ...जिंदगी का साहससे जूझनेकी ताकतका ह्रास हो जाता है ....फिर भी एक चैन की सांस लेते है हाश हमने कुछ खोया नहीं ......
किसीभी जाने पहचाने रस्तेमें भी अनजान और आकस्मिक मुश्किलें भी तो आती है पर उन्हें औरोंके अनुभव और सलाहसे दूर करने की कोशिश करते है ...
कभी कभी हमारी पसंदकी राह हमारे परिवार को पसंद नहीं आती ...एक प्रचंड विरोध भी उठता है ...और हमारा परिवारके प्रति प्रेम और उनसे जुडी संवेदना के कारण हम किसी भी बड़े बलिदान देते हुए नहीं हिचकिचाते ...हमें एक संतुष्टि मिलती है की हमने हमारा कर्तव्य अच्छी तरह निभाया ....
पर यहाँ पर एक सवाल आता है मेरे जहनमें :
क्या हम बिना बलिदान दिए सबको भी राजी करके अपनी इच्छा पूरी हो इस तरह कोई प्रयत्न क्यों नहीं कर सकते ??क्यों ऐसा नहीं सोच सकते ??? क्यों हम किसीकी सोच बदलकर उसे अपनी सोच समजानेकी कोशिश क्यों नहीं करते ??? हम भी इस दुनियामें एक अलग व्यक्ति है और ये जरुरी नहीं की हर बार हमारी सही बातको भी दबा दिया जाय तो हम झुक ही जाए !!!! ये सब हम पर निर्भर करता है ...और यहीं पर इंसान की काबिलियतकी परीक्षा होती है .....
हमारे आइन्स्टाइन ,न्यूटन जैसे वैज्ञानिक , खलील जिब्रान और सोक्रेटिस जैसे महान चिंतकोको उनके युगके लोगोने पहले गलत ही करार दिया था ...पर गुजरते हुए वक्तने ये साबित किया की हां वो सही थे ......ट्रेनके डिब्बे से एक सुनसान स्टेशन पर सामानके साथ मिस्टर गाँधी को दक्षिण आफ्रिकामें बहार फेंका गया था ...पर उनकी हिम्मतने पुरे गुलाम भारतको आज़ाद करवाया और आज भी लोगोके उनकी निति और विचारधारामें अपार श्रध्दा है ........क्योंकि अपनी सही बात साबित करनेके लिए उन्होंने कौन साथ है या नहीं उसकी परवाह नहीं की ...एक अकेला आगे बढ़ा नयी सोच के साथ और कारवां बनता चला गया ............
बस मुझे गूंगे समर्पणमें विश्वास नहीं जब हमारी बात सही हो ...मैं कभी डिगनेमें विश्वास नहीं करती ...जहाँ तक हो सके अपनी स्थितिसे लडती हूँ बिना घुटने टेके ...और इसी लिए मेरे साथ वाले लोग भी जानते है की सोच समजकर जो कुछ करती हूँ इसके लिए मैं हार नहीं मानूंगी और विरोधकी मात्रा कम होने लगती है ...कभी आज़माकर देखना ...सफलता आपके कदम चूमेगी ...
जब अचानक कुछ बड़ा बदलाव आये तो मैं उसे हंसकर स्वीकार करती हूँ ....मुझे शंका कम ही होती है ...स्थिति नयी होती है इस लिए सफलता और विफलताका डर भी नहीं होता ....प्रवाह से अलग पगडण्डी पर चलना मेरा एक शौक है ...क्योंकि वहां पर एक नयापन होता है ....
हम मनुष्य पहले हमें हर बातमे कुछ मुनाफा है या नहीं ये पहले सोचते है उसके बाद हम देखते है की इस राह पर कितनी कम मुश्किल आएगी ...उसके बाद निरिक्षण करेंगे की उस राह पर चलने वालोंके साथ क्या क्या होता है ??? उनकी राय भी जानेंगे ...फिर कदम बढ़ाएंगे .....इतनी देर लगानेमें उस चीजमें जो आकर्षण होता है वो समाप्त हो जाता है ...जिंदगी का साहससे जूझनेकी ताकतका ह्रास हो जाता है ....फिर भी एक चैन की सांस लेते है हाश हमने कुछ खोया नहीं ......
किसीभी जाने पहचाने रस्तेमें भी अनजान और आकस्मिक मुश्किलें भी तो आती है पर उन्हें औरोंके अनुभव और सलाहसे दूर करने की कोशिश करते है ...
कभी कभी हमारी पसंदकी राह हमारे परिवार को पसंद नहीं आती ...एक प्रचंड विरोध भी उठता है ...और हमारा परिवारके प्रति प्रेम और उनसे जुडी संवेदना के कारण हम किसी भी बड़े बलिदान देते हुए नहीं हिचकिचाते ...हमें एक संतुष्टि मिलती है की हमने हमारा कर्तव्य अच्छी तरह निभाया ....
पर यहाँ पर एक सवाल आता है मेरे जहनमें :
क्या हम बिना बलिदान दिए सबको भी राजी करके अपनी इच्छा पूरी हो इस तरह कोई प्रयत्न क्यों नहीं कर सकते ??क्यों ऐसा नहीं सोच सकते ??? क्यों हम किसीकी सोच बदलकर उसे अपनी सोच समजानेकी कोशिश क्यों नहीं करते ??? हम भी इस दुनियामें एक अलग व्यक्ति है और ये जरुरी नहीं की हर बार हमारी सही बातको भी दबा दिया जाय तो हम झुक ही जाए !!!! ये सब हम पर निर्भर करता है ...और यहीं पर इंसान की काबिलियतकी परीक्षा होती है .....
हमारे आइन्स्टाइन ,न्यूटन जैसे वैज्ञानिक , खलील जिब्रान और सोक्रेटिस जैसे महान चिंतकोको उनके युगके लोगोने पहले गलत ही करार दिया था ...पर गुजरते हुए वक्तने ये साबित किया की हां वो सही थे ......ट्रेनके डिब्बे से एक सुनसान स्टेशन पर सामानके साथ मिस्टर गाँधी को दक्षिण आफ्रिकामें बहार फेंका गया था ...पर उनकी हिम्मतने पुरे गुलाम भारतको आज़ाद करवाया और आज भी लोगोके उनकी निति और विचारधारामें अपार श्रध्दा है ........क्योंकि अपनी सही बात साबित करनेके लिए उन्होंने कौन साथ है या नहीं उसकी परवाह नहीं की ...एक अकेला आगे बढ़ा नयी सोच के साथ और कारवां बनता चला गया ............
बस मुझे गूंगे समर्पणमें विश्वास नहीं जब हमारी बात सही हो ...मैं कभी डिगनेमें विश्वास नहीं करती ...जहाँ तक हो सके अपनी स्थितिसे लडती हूँ बिना घुटने टेके ...और इसी लिए मेरे साथ वाले लोग भी जानते है की सोच समजकर जो कुछ करती हूँ इसके लिए मैं हार नहीं मानूंगी और विरोधकी मात्रा कम होने लगती है ...कभी आज़माकर देखना ...सफलता आपके कदम चूमेगी ...
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