6 दिसंबर 2011

खुदके साएको हमसफ़र बनाकर.....

लगता था आगे एक मजबूत दीवार है ,
देखा तो कोहरेका कमाल था धुपके आने से ढह गयी ......
न नज़र आये आगेकी राहें तो रुकना मेरी फितरत नहीं ,
दीवार होगी तो टकराकर लौट जायेंगे ,
कोहरा होगा तो चीरकर राहोसे गुजर जायेंगे ......
मंज़र चलते हुए नहीं बदलते कभी
बदलती गयी सोचने नज़र बदल दी ,
देखो हम अच्छेसे बेहतर बनते चले जायेंगे .....
गहरी खाई इस बातकी गवाह है ,
कल जहाँ थे कदम हमारे
आज तो हम उससे भी ऊंचाई पर है ....
ऊपर दिखते हुए हर शिखर पर है लिखा हुआ
देखो रुक मत जाना थोडा ठहर भी लो तो ,
मंजिल तुम्हारी तो इस ऊंचाईओ पर है ...........
राहें थकती नहीं ,कदम थक जाते है ,
वो हौसलोंकी हवाएं छूकर गुजर रही है ,
खुदके साएको हमसफ़र बनाकर हम गुजर जाते है ........

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