5 नवंबर 2011

सिर्फ हम और हम .....

वो बीते दिन वो गुजरे पल वो प्यारी बातें 
कुछ मायने नहीं थे जिसमे 
उन बातोंमें रहे अर्थ अब समज में आये है ,
तुमसे होते थे दिनके आगाज़ सारे 
दिन तुमसे होते थे ख़त्म सारे ,
वो लड़ना वो झगड़ना 
फिर दूसरी सुबह तेरी खिड़की पर लटककर 
तुझे ही पुकारना ...
और वो तेरा ही आना तुरंत तेरा बल्ला और मेरी गेंद ......
इमली के पेड़से इमली गिराना 
और वो टिल्लीके हाथमें थमाना...
धुलसे सने पैर और बहती नाकको कमीजकी बाहोंसे पोछना .........
वो मेरी जिंदगीकी पहचान थी ....
आज वही दोस्त मेरे सामने थे ....
अरमानीके सूटमें ,डिजाइनर गोगल्समें ,मर्सिडीज़ कारमें ,
बहुत अजनबी लगे ...
हम तीनो कारमें बैठकर गए फिर उसी गाँव में ....
पेड़ के तने के पीछे पुराने कपडे पहने ..बूट रख दिए ....
और फिर वही राजा,मुन्ना और मुस्तफा ....
दौड़ पड़े जंगलकी और ....
वो पल ढूँढने के लिए ....
हाथमे हाथ थाम कर ......
सिर्फ हम और हम .....
वो ख़ुशी जो कोई बाज़ारमें नहीं मिली थी ....

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