कल भगवान एक हाथ में केमेरा
और दुसरे हाथ में ढोलक लेकर बैठे हमरे शहरमें ...
बिजली चमकती रही और बादल गरजते रहे ,
छ घंटे में सौ दिन का पानी का स्टोक भर गये .....
हर गली हर नुक्कड़ भर गया जैसे कोई नदी की नहर हो .....
कारे गराज में खड़ी रही ,स्कूटर ने फ़रमाया आराम ,
पैदल चलके मजे किये और सायकिल के पहिये आये काम ....
इंसान का सब गुमान सर्वशक्तिमान होने का
पल में चूर चूर कर गया ....
कल कुदरत हमरे शहर को कुछ यूँ घायल कर गया .....
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
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विशिष्ट पोस्ट
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आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...

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रात आकर मरहम लगाती, फिर भी सुबह धरती जलन से कराहती , पानी भी उबलता मटके में ये धरती क्यों रोती दिनमें ??? मानव रोता , पंछी रोते, रोते प्...
जो उपरवाला कुछ उदास हो जाए,
जवाब देंहटाएंन चमकाए कैमरा, न ढोलक बजाए ,
तो भी तो सूखा पड़ जाए,
आदमी की हस्ती ही क्या,
शेखी ही बस बघीरे है,
कुदरत के पास आदमी को
सीधा करने के कई तरीके है ..