मैं हूँ धरती ...
थक गयी पक गयी मैं भी एक से जीवन से ,
मैंने भी कमाल किया ,
कुछ अलग सा श्रृंगार किया ...
ओढ़ ली धुंधकी ओढ़नी और बादल का लहंगा पहना ,
बर्फकी कढाई किये दुशाले से अपना सर ढंका .....
और देखो मुझे भी कुछ दिन का सुकून तो मिला ....
ठण्डसे सिकुड़ते ये मानवका वाहन अब कुछ देर मौन हुआ ,
हवा में काले धुंएका फ़ैल जाना भी बंद हुआ ....
ठण्डमें सिकुड़ते मानव और जिव ठहर के बैठे अपने आशियाने में
चलो लम्बे अरसे के बाद अपनों के बीच कुछ चाय की चुस्की
उसके साथ खट्टी मीठी गपशप और प्यारी नोक झोक तो हुई .....
मैं भी खुश हूँ ...तुम भी खुश हुए ...
इस ठन्डे ठन्डे मौसममें चलो एक बार हम तुम और तुम हम हुए .....
waah ...........bahut hi gahan aur umda baat kahi.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना है\बधाई।
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता
जवाब देंहटाएंpreeti ji sabse pahle to shubham varsh par hardik shubhkamnayen.....
जवाब देंहटाएंkafi dino baad aapke lekh pade achha laga ...
Jai HO Mangalmay HO