ये कविता मेरी नहीं पर ये मेरे ईमेल के इनबोक्समें आई किसी की बेहतरीन रचना है ....मूलतः ये गुजराती रचना है जिसका हिंदी अनुवाद प्रस्तुत है ....
दिल पूछे है मेरा
अरे कहाँ जा रही है तेरी डगर ????
ज़रा देख तु सामने नजर आ रही कबर !!!!!!!!!!!!
ना संभलता है कोई व्यवहार ,ना याद आता है कोई त्यौहार !!!
हो होली या दीपावली ,सब ऑफिसमें मनाया जाता है ....
ये सब तो ठीक है पर हद हो जाती है जब
मिलता है किसीकी शादी का न्यौता तो वहां पर
गोद्द भराईकी रस्म तक जाने का वक्त मिल पाता है ....
दिल पूछे है मेरा ,अय दोस्त तु कहाँ जाता है ??????
पांच आंकड़ेकी पाते हो पगार
पर पांच मिनट फुर्सतके अपने लिए कहाँ निकाल पाते हो ???
पत्नी का फोन तो काट देते हो दो ही मिनटमें ...
पर क्लायंट के फोन को कहाँ काटा जाता है ???
फोन बुक भरी है दोस्तोंकी लिस्ट से
पर किसीके घर कौन जा पाता है ???
अब तो घरमें आये ख़ुशी के मौकेको भी हाफ डे में मनाया जाता है ......
दिल पूछे है मेरा ,अय दोस्त तु कहाँ जाता है ???
कोई ना जाने ये रस्ते कहाँ तक जाते है ??
थके हारे है सभी फिर भी उस पर ये लोग बस चलते चले जाते है .....
किसीको सामने रुपैया तो किसीको डॉलर दिख जाते है ...
अब आप ही कहो दोस्त क्या इसे जिंदगी कहा जाता है ?????
दिल पूछे है मेरा ,अय दोस्त तु कहाँ जाता है ???
बदलते इस प्रवाहमें हमारे संस्कारकी गरिमा भी धुले जाती है ,
आने वाली पीढ़िया पूछेगी हमें
क्या येही संस्कृति कहलाती है ??????
एक बार तो दिल की सुन लो कभी
वर्ना ये मन तो हमेशा से दुविधामें घिरे रहता है
चलो जल्दी फैसला कर लो क्योंकि
मुझे तो अभी कुछ वक्त बाकी नजर आता है .....
दिल पूछे है मेरा
अरे कहाँ जा रही है तेरी डगर ???
जरा देख तु सामने नजर आ रही है कबर !!!!!
बेहतरीन। लाजवाब। आपको नए साल की मुबारकबाद।
जवाब देंहटाएंजिसकी भी है, है बढ़िया.
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