सूरज की लगाम होती है दिन की बेडियों के साथ
चाँद और सितारे गुलाम है रात के अंधेरोंके हाथ
आजाद है हमेशासे रौशनी जिसे बंधन नहीं कोई
वो रात हो या दिन सूरज- चाँद- सितारोंसे मिलती है ,
जो घने बादलोंको चीरकर भी हम तक पहुंचती है ....
रोशन शमाएँ होती है ख़ुद को जलाकर
अंधेरों को चीरकर जहाँको रोशन कर देती है .....
जो घने बादलोंको चीरकर भी हम तक पहुंचती है ....
जवाब देंहटाएंरोशन शमाएँ होती है ख़ुद को जलाकर
अंधेरों को चीरकर जहाँको रोशन कर देती है
baht khub
सटीक लेखन .. अच्छा लगा !!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना!
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चाँद, बादल और शाम
प्रिती जी आपकी रचनाओं में भाव बहुत सुन्दर होते हैं मगर लय की कमी खटकती हैं.. इस बात का मैने पहले भी जिक्र किया था. आप शायद लिखते ही पोस्ट कर देती हैं.. लिख कर उसे कुछ समय अपने पास रखे और उसमें सोच कर शब्दों को लय के हिसाब से बिठाने की कोशिश कीजिये.. आपकी रचना और निखर जायेगी..
जवाब देंहटाएंइसे आलोचना ना समझियेगा... सुझाव मात्र है.