आज रोजकी तरह फ़िर सुबहमें उस दोस्त के घर गया ,
खुली खिड़कीसे झाँखा अन्दर तो कुछ बदला सा पाया .....
खुली आँखोंसे वह छतको था ताक रहा ,
वह था तो जागा फ़िर भी दिल उसका था कहीं खोया सा ......
दो पल के लिए जब आँखें मूंदता तो लब जैसे यूँही उसके मुस्कुरा जाते ,
कोई ख़याल प्यारा सा नाम बनकर किसीका दिल के दरवाजे पर दस्तक दे जाते ....
अकेला था घरमें पर महसूस हुआ तनहा नहीं वह आज ,
ख्वाब वह सजा रहा था प्यारा सा ,चलो आज उसे बुलाना नहीं .......
उसे उसके सपनोंकी दुनिया के साथ बस यूँही तनहा ही छोड़ दिया ,
मैं भी हलके से मुस्कुराकर आज उसके घरके दहलीजसे ही मूड गया........
प्रीटी जी ..सुन्दर शैली में ..और जुदा अंदाज में लिखी रचना अच्छी lagee....
जवाब देंहटाएंkhubsurat shaili
जवाब देंहटाएं