25 मार्च 2009

एक नायाब दुआ ....

आरजूमें जिसकी एक सितारोंसे भरी शाम होती है ,
जलवे उनके दीदारके होने पर जैसे एक नायाब दुआ कुबूल होती है .....
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चलो आज हम ही चलकर उनसे मिलने चले जाते है ,
रूठे लगते है ,कुछ खफासे भी लगते है ,आज उन्हें मनाकर आते है ....
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मोमकी पिघलती बूंद बर्फसी जम गई शमा पर ही ,
पलकोंकी चिलमन उठते ही उनकी रोशन महफ़िल कर गई .....
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रेतके बादल बह कर हवामें समां ये धुआं धुआं कर चले ,
उभरी उसमें जो लकीरे कुछ जो हमें आपके चेहरे सी ही क्यों लगी ???
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2 टिप्‍पणियां:

  1. मोमकी पिघलती बूंद बर्फसी जम गई शमा पर ही ,
    पलकोंकी चिलमन उठते ही उनकी रोशन महफ़िल कर गई
    waah gazab ki baat kahi,saare sher bahut sunder.

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  2. very nice... i like poetry very much... visit my blog... u will like it.

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