25 अगस्त 2012

वो सोई नहीं है ....

कहीं दूर जब रात छलकती है
दिन के पयमानेसे ..
तो बुँदे उड़कर जाती है आसमानोंमें
सितारे बनकर चमकती है रातोंमे ...तेरा चेहरा बनकर ...
सड़क चलती है तनहा तनहा
रात भी काला कम्बल ओढ़कर पीछा करती है ....
टिमटिमाते बिजलीके दीयोंको
अचंभित होकर तकती रहती है ....
खम्भोंकी लम्बी लम्बी परछाई
रोशनीकी आहटे  डराती है ...
रात ढूंढ रही है कोई अनजाना कोना
निंदको सिरहाने रख सुस्ताना है उसे
कई महीनोसे वो सोई नहीं है ....

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