23 अगस्त 2012

एहसान फरामोश हो गया .....

दबे हुए अरमानोंको कल पंख निकल आये है ,
उड़नेको बेताब है ये पर आसमांका रास्ता भूल आये है ....
खुदको भूल जाना ये मुमकिन है इस दुनियामें
पर ये दुनिया ही है जो हमें खुदको भूलने नहीं देती ...
हमारी खुशियाँ होती है तो चारो और उमड़कर आते है लोग ,
दस्तूर दुनिया का है की गममें तनहा छोड़ जाते है लोग ....
झख्म भरने लगता है वक्तके मरहमके साथ हमारा तो
बस कुरेदनेको बेताब नजर आते है लोग .......
बस एक दिन ये हो गया जो होना लाज़मी न था ....
मैंने दिल उखाड़कर फेंक दिया सागरमें ,
न ये दिल रहेगा ,
न कोई एहसास ...
न ये दिल रहेगा ,
न इसे टूटने का कोई डर  ....
न ये दिल रहेगा ,
न झख्म नासूर बनेंगे ....
न ये दिल रहेगा ,
न कोई इश्क करेगा ...
न ये दिल रहेगा
न कोई बेवफा कहलायेगा ....
बस बहुत हल्का हल्का महसूस होने लगा ....
कल तक औरोंके एहसानके बोज़से बोजिल मैं
आखरीबार एहसान फरामोश हो गया .....

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