कल रातको अनायास एक सुन्दर फिल्म देख ली ...दूरदर्शन पर रात साढ़े नौ बजे " आई एम् कलाम "....राजस्थान की पृष्ठभूमि पर बनी जहाँ लोकेशनकी कोई भरमार नहीं ...लगभग बीकानेरके आसपास का कोई स्थल हो सकता है क्योंकि रेगिस्तानका सौन्दर्य और वो चूहों वाला मंदिर जो बीकानेरमें है उस परसे एक अंदाज बनाया है .....कोई नामी हीरोमें तो अपने हिंदी फ़िल्मके जानेमाने विलन गुलशन ग्रोवर ..बाकी सब अनजान पात्र ...
एक गरीब बेवा माका बेटा छोटा सा साथ आठ सालका उसे गांवके कोई मददगार इंसानके ढाबे पर नौकरी पर रख देती है ...इतना होशियार बच्चा की पूछो मत ...एक बार प्रजासत्ताक दिनकी परेड देखकर एक सपना पाल लिया की मैं कलाम बनूँगा ..खूब पढूंगा ..गलेमें टाई बांधकर स्कुल जाऊँगा ..खूब पढूंगा .....ढाबे के सामने एक पुराने राजवीका महेल है जो हेरिटेज होटलमें बदल चूका है और वहां खूब विदेशी लोग आकर ठहरते है ...गुलशन ग्रोवरके ढाबे से वहां चाय और खाना पहुँचता है ...उन राजाका एक ये छोटू की हमउम्रका बेटा है जिसकी कोई कंपनी नहीं ...उसकी किसी तरहसे छोटूसे दोस्ती होती है ...वो छोटू को इंग्लिश पढना सिखाता है और छोटूसे हिंदी सीखता है ..छोटू अंग्रेजोसे अंग्रेजी और फ्रेंच लोगोसे थोड़ी बहुत फ्रेंच भी सीखता है ....सबका दिल जीतता है ....लेकिन उसकी दोस्ती का कैसे भी जब राजवी को पता चलता है तो वो छोटूको पुस्तकें और कपडे परसे चोर पुरवार कर देते है और वो मासूम बच्चा एक ट्रक वाले की ट्रक में बैठकर दिल्ही भाग जाता है ...
छोटू की लिखी स्पीच के कारन वो कुंवर स्कुल की वाक् प्रतियोगितामें अव्वल आता है और फिर सब ढूँढने निकलते है ..और छोटू को राजवी अपनाकर उसका दाखिला अपने बेटे की स्कुलमें करवा देता है ......
ये तो कहानी थी पर मुझे इस फिल्मकी सादगी छू गयी ...
एक राजा के बेटेमे भी एक आम बच्चा होता है ...वो गरीब आमिर का कोई भेद नहीं देखता ...और वो छोटूका काम तो कमाल का है ...सब दुःख दर्द से परे एक मौजसे जीता हुआ बच्चा !!!! एक दम वास्तविक लगता है उसका अभिनय !!!! वो दोनों बच्चे जो सब खेलते है तो हम जरुर अपने बचपनमें पहुँच जाते है ....राजस्थानी फोक म्युज़िक का एक मास्टर पिस भी इसमें है ..कोई गाना नहीं ..बस निर्दोष आँखोंमें पल रहा एक सपना ...गुलशन ग्रोवर का एक विदेशी महिलाका परिणित होनेके कारन टूटता दिल ....बहुत ही वास्तविक लगता है ....राजस्थानका कोई छोटा सा टुकड़ा पर बेहद खूबसूरतीसे फिल्माया गया !!!!!!
आजकलकी टेंशन को मुफ्तमें बांटने वाली फिल्मो में ये सचमुच एक कूल फिलिंग देनेवाली फिल्म ख़त्म हुए बारह घंटे हो गए पर दिलमें अभी भी चल रही है वो फिल्म ..वो बच्चा ....वो बचपन ..और वो लोकेशन ......
कभी कभी लगता है की सादगीभी खुदमें अदभुत सौन्दर्य होता है .....
एक गरीब बेवा माका बेटा छोटा सा साथ आठ सालका उसे गांवके कोई मददगार इंसानके ढाबे पर नौकरी पर रख देती है ...इतना होशियार बच्चा की पूछो मत ...एक बार प्रजासत्ताक दिनकी परेड देखकर एक सपना पाल लिया की मैं कलाम बनूँगा ..खूब पढूंगा ..गलेमें टाई बांधकर स्कुल जाऊँगा ..खूब पढूंगा .....ढाबे के सामने एक पुराने राजवीका महेल है जो हेरिटेज होटलमें बदल चूका है और वहां खूब विदेशी लोग आकर ठहरते है ...गुलशन ग्रोवरके ढाबे से वहां चाय और खाना पहुँचता है ...उन राजाका एक ये छोटू की हमउम्रका बेटा है जिसकी कोई कंपनी नहीं ...उसकी किसी तरहसे छोटूसे दोस्ती होती है ...वो छोटू को इंग्लिश पढना सिखाता है और छोटूसे हिंदी सीखता है ..छोटू अंग्रेजोसे अंग्रेजी और फ्रेंच लोगोसे थोड़ी बहुत फ्रेंच भी सीखता है ....सबका दिल जीतता है ....लेकिन उसकी दोस्ती का कैसे भी जब राजवी को पता चलता है तो वो छोटूको पुस्तकें और कपडे परसे चोर पुरवार कर देते है और वो मासूम बच्चा एक ट्रक वाले की ट्रक में बैठकर दिल्ही भाग जाता है ...
छोटू की लिखी स्पीच के कारन वो कुंवर स्कुल की वाक् प्रतियोगितामें अव्वल आता है और फिर सब ढूँढने निकलते है ..और छोटू को राजवी अपनाकर उसका दाखिला अपने बेटे की स्कुलमें करवा देता है ......
ये तो कहानी थी पर मुझे इस फिल्मकी सादगी छू गयी ...
एक राजा के बेटेमे भी एक आम बच्चा होता है ...वो गरीब आमिर का कोई भेद नहीं देखता ...और वो छोटूका काम तो कमाल का है ...सब दुःख दर्द से परे एक मौजसे जीता हुआ बच्चा !!!! एक दम वास्तविक लगता है उसका अभिनय !!!! वो दोनों बच्चे जो सब खेलते है तो हम जरुर अपने बचपनमें पहुँच जाते है ....राजस्थानी फोक म्युज़िक का एक मास्टर पिस भी इसमें है ..कोई गाना नहीं ..बस निर्दोष आँखोंमें पल रहा एक सपना ...गुलशन ग्रोवर का एक विदेशी महिलाका परिणित होनेके कारन टूटता दिल ....बहुत ही वास्तविक लगता है ....राजस्थानका कोई छोटा सा टुकड़ा पर बेहद खूबसूरतीसे फिल्माया गया !!!!!!
आजकलकी टेंशन को मुफ्तमें बांटने वाली फिल्मो में ये सचमुच एक कूल फिलिंग देनेवाली फिल्म ख़त्म हुए बारह घंटे हो गए पर दिलमें अभी भी चल रही है वो फिल्म ..वो बच्चा ....वो बचपन ..और वो लोकेशन ......
कभी कभी लगता है की सादगीभी खुदमें अदभुत सौन्दर्य होता है .....
बेहतरीन अभिव्यक्ति.....
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