तन्हाईमें कल घरके ऊपरवाले मजले पर चले गए ,
एक कमरा था जहाँ बरसोंसे एक ताला लगा था ,
उसके छेदमें जंग लग चुकी थी ,
चाबी भी कहीं खो चुकी थी .....
पर हाँ वो कमरा मेरे बचपनका सबसे प्रिय कमरा था ,
वहां बचपनके कई दोस्तोंके साथ गुजारी दोपहरके निशान थे ....
एक हथोड़ेसे ताला तोड़ दिया ....
वहां एक टूटी खाट पर एक धुल भरी चद्दर बिछी थी ,
कमरे की खिड़की खोलकर धुल झटक दी ....
चद्दरके नीचे टूटी खाट पर कुछ रिश्ते पड़े थे ......
पर वो अभी तरोताजा ही थे ....
मुझे गहरा आश्चर्य हुआ !!!!!!!!!!!!!
ये कैसे हुआ ??
ये कमरा तो बीस सालके बाद खोला !!!
ढेरो गर्दकी परतें और खिड़की भी बंद !!!!
फिर ये ताज़गी !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
तब हवाके झोंकेके साथ आई एक महक
और कानोमे मेरे कह गयी कि ,,,,,,
जब याद किया हमने एक भीगी बूंद आंसूकी
एक लहर याद की यहाँ आकर रूकती थी सबकी ,
और ये खारे पानीके अश्कसे सिंची हुई ये यादोंने
इन रिश्तोंको रखा तरोताज़ा .....!!!!!!
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