4 जून 2012

एक सीधीसी बात थी .....

लगा था तुम्हे समजनेमें एक उम्र गुजर जायेगी ,
जब समज लिया तुम्हें तो जाना एक सीधीसी बात थी .....
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राधा बनकर प्यार जताना शायद हो आसान ये सोचा था ,
वहाँ तो सिर्फ बिछोहका दर्द लिए चले जाना देखा हमने ,
मीरा बनकर श्यामको पानेकी चाहत की तो जाना ,
एक दरसकी दीवानीको ज़हरके घूंटको पचाना था ...
प्यारको पाना ये दर्दको सहलाकर मिलने वाली राहतें थी ,
ये दर्दको सहते तुम्हें याद करना मुमकिन न था कभी ,
क्योंकि ये कसकने भुलाने न दिया तेरा नाम कभी .....
बस ये ढाई अक्षरका एहसास अधुरा फिर भी 
खुदको पूरा करनेकी यहाँ रहती है हरदम एक तलाश ....

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