11 अप्रैल 2012

उस गलीसे होकर गुजरी

क्यों हर नयी राह उस गलीसे होकर गुजरी,
जिस गलीमें हमने शामो सहर गुजारी थी साथ ???
बस ये यादोंके काफिले भी साथ चल पड़ते है ,
जब हमें कोई ख़ुशीकी जरुरत महसूस होती है !!!!
हर ख़ुशीमें तुम्हारा साथ तुम्हारा साथ 
कुछ भी बेवजह तो न है ,
शायद इसे कहते है हम की
किस्मतकी लकीरोंको कोई कहाँ हाथोंमें पढ़ सके है ????
वो दिन थे जब तुम करीब थे ,
लेकिन आज इकरार ये करना है की अब तुम और भी करीब हो ,
दुनियाकी आँखोंसे ओज़ल पर मेरे दिल में 
मेरी धड़कन बनकर 
मेरी सांस बनकर सिर्फ मेरे लिए जीकर ....

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