25 मार्च 2012

तुम्हारा अफसाना

तेरा लौटकर आना मुझे गंवारा न हुआ ,
डर है की आकर फिर तुम न लौट जाओ .....
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कुछ लम्हे थे फुरकतके कुछ लम्हे थे फुर्सदके ,
फिर भी उनमे शायद जिन्दा होनेका एहसास न था ....
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लौटी हूँ  फिर तेरे पास  मेरी कलम और दवात,
ये जानती हूँ की मेरे दिलके सुकूनको तुममे ही पाया मैंने .....
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न वो दिन था ,न रात थी ,
बस एक ख़ामोशी कुछ कहती रही सहमीसी.....
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उन पुरानी तस्वीरोंमें क्यों खोज रहे हो ????
ये देखो हर सफे पर हम तुम्हारा अफसाना लिखते रहे अर्सेसे ...

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