21 मार्च 2012

जिंदगी तू एक कविता है

खाली खाली लेकर पयमाना लेकर बैठे है
बालकनीमें बैठकर जिन्दगीकी !!
सोचा तू क्या है जिंदगी ????
जिंदगी तू एक कविता है ,
तेरे हर पल एक पत्तेकी तरह कभी सूखे कभी हरे ,
हर दिन बनता रहा हर शाख ,
ये शाख पर बैठते उड़ते परिंदे अनेक ...
फिर भी तू खामोश ,
हवाएं तेरे कानमे सरसराहट भरकर चली जाती है ,
और तने में जिन्दगीका हर साल एक वलय छोड़ जाता है ....
तू चलती मेरे साथ बचपनकी सखा बन ,
जवानीकी संगिनी बनकर ..
पर मुझे वक्त नहीं तेरे सामने देखने भरका ,
ये किश्तें चुकानी घर मकान और गाड़ीकी ,
ये फीस बच्चेकी ट्यूशन और पब्लिक  स्कुलकी ,
बहुत बड़ा आदमी बननेकी चाहत हो जिसमे
वो हर चीज़ ऊँचे मोल पर ख़रीदा करते है ,
और तू तो दिलमे बस यूँही मुफ्त मिल जाया करती है !!!
लेकिन ....
एक दिन जब इन सबका अंत आता है 
तब हर तरफ तन्हाई हो जाती है ,
बालकनीमें नींदके इंतज़ारमें तारे गिनते है
तब ...तब 
तू आकर मेरे कंधो पर हाथ रखकर कहेती है 
मैं अभी भी यहीं पर हूँ ..तुम्हारे साथ ..तुम्हारे पास ...

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