19 जनवरी 2012

एक ख्वाबोंकी चिड़िया

आज फिर एक ख्वाबोंकी चिड़िया
उड़ने को बेक़रार है
अपनी परवाजों पर लिखके अनगिनत अल्फाज़ ...
उसके ख्वाबोंका काजल उसकी आँखोंमें तैरता है
उसकी कथ्थई आँखें बिजुरी को समाकर मूंद लेती है
कांचसी पलकें
जिसमेंसे छन छन कर वो चमक कौंध जाती है
एक आगकी चिनगारीसी ...
उसमे वो इश्कको पानेकी तड़प नज़र आती है ....
बस वो है ...
वो एक है ...
कथ्थई आँखों वाली एक लड़की
जो झांकती है  खिड़कीसे
अनकहे ख्वाबोंके अफसानोको
जो आज सड़कों पर टहलने के लिए निकले है शायद ...

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