12 जनवरी 2012

एक अनजाना चेहरा ...

एक अनजाना चेहरा ...
पलक बंद होते है नज़र आता है ...
उसकी मुस्कानमाँ कहीं दिल खो जाता है ,
उसकी ख़ामोशी भी बहुत बतियाती है मुझसे ,
सिरहाने कुछ सवाल छोड़कर चला जाता है ...
एक अनजाना चेहरा रोज ख्वाबोमें आता है ......
न मुझे उससे कोई गीला
न उसे मुझसे शिकायत है ...
फिर भी इस दुरीसे
न जाने क्यों हम करीब होते जाते है ????
एक दिनकी बात है ...
बस एक किताब खोलकर
बैठी रही रात भर ,
निंदको देहलीजसे लौटा दिया ....
न पलक बंद की
न उसे ख्वाबोंमें आने दिया ......
और एक अनजान कदमोकी आहट
मेरी देहलीज पर आकर दस्तक दे रही थी !!!!
दिलने गवाही दे दी ...
आज ख्वाबोंमें नहीं खुद तुम ही आ गए तक़दीर लिखने ???!!!

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