28 नवंबर 2011

हाँ हाँ वो शाम थी एक खास ..

हाँ हाँ वो शाम थी एक खास
लिए तेरा हाथोंमें हाथ
भीड़ में भी खुदमे मस्त हो कर चले जा रहे थे ,
मंजिलोंकी तलाश न थी ,
बस तेरे साथ की एक प्यास लिए
हर लम्हों पर तुम्हारा नाम लिखे जा रहे थे ......
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एक बच्चा सो रहा था कबका भीतर ,
कल वो खिड़की खोलकर देख रहा था ,
नाप रहा था आसमानकी ऊंचाई
और पंछीकी उडानको भांप रहा था ....
कूदा वो खिड़की को लांघकर ,
चला गया वो बाग़में तितलीके पीछे ,
दौड़ता हुआ फांदता हुआ ...
यहाँ पर ही तो थी वो वाली आसमानकी ऊंचाई
यहाँ पर ही तो थी वो पंछी की उड़ान !!!
वो बच्चा आज उम्रके बंधन तोड़ कंचा खेल रहा था !!!!
वो बच्चा बस आज खुलकर हंस रहा था !!!!
वो खिड़की को बंद नहीं करता कभी ,
क्योंकि आसमान पर लिखे अफसाने पढनेकी आदत है उसे !!!!

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