मेरे मिलनेकी जुत्सजू ना कर
मैं तो हवामें घुली हुई हूँ हर सांस के पहर ....
मेरी चाहतकी आरजू ना कर
दिलोंकी चारदीवारी मुझे रास नहीं आती ....
मुझे सपनोंमें बुलानेकी गुस्ताखियाँ ना कर
बहुत फासले है तुमसे मुझ तकके दरम्यां .....
मुझे तेरी नज्मोंमें बयाँ ना कर इस कदर
तेरे हर अल्फाज़ पुरे फिर भी अधूरी सी रह जाती हूँ ....
मेरी तारीफोंके कसीदे ना पढ़ कभी
इस नाचीज़ को रुसवाई नागवारा गुजरेगी बेरहम दुनियामें ...
तेरी हर यादमें तेरी हर सोचमे हर नफ़समें
तेरा वजूद कर रहा है बयाँ मुझे ही हर पल पर लिखे सफे पर
मुझे खुदा समजकर अपना बंदगी ना कर एय बेखबर
खुशनसीबी तो मेरी है की एक दुआ से तुम मुझे मिल गए ........
ना ख़याल में , ना सोच में , ना तहरीर में
जवाब देंहटाएंबस रखो तो रखो अपनी दुआओं में
कुछ ऐसा ही पैगाम दे रही है
आपकी यह शानदार नज़्म ... !!