मुद्दतें गुजर गयी
एक शाम सुकूनकी देखी थी ,
गहरी ख़ामोशीको ओढ़
मैं छतको ताककर सोई थी .....
न गर्दिश थी न रंजो गम कोई ,
बस चुपचाप तकती मेरी दो आँखें
एक ख्याल ....एक नर्म हंसी ...
सब कुछ तो है पर फिर भी कुछ नहीं पास है ,
न जाने जिंदगी को अब फिर न जाने किसकी तलाश है ????
सब कुछ तो है पर फिर भी कुछ नहीं पास है ,
जवाब देंहटाएंन जाने जिंदगी को अब फिर न जाने किसकी तलाश है ????
....बहुत संवेदनशील और मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति..
बहुत ही सुन्दर रचना....
जवाब देंहटाएंवाह ! यह जिन्दगी ........कैसा फलसफा है इसका ...!
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