22 सितंबर 2011

फाड़कर फेंक दिया एक कागजका टुकड़ा

फाड़कर फेंक दिया एक कागजका टुकड़ा 
जिस पर नाम लिखा था किसीका ,
वो महज नाम नहीं था एक वजूद था जिन्दा ,
एक वजूद जिन्दा एक नाम बनकर उभरता था ...
फाड़ कर फेंक दिया कागजका टुकड़ा ,
फिर भी वजूद क्या फेंक पाया कोई ,
नाम मिटा दिया हथेली पर 
स्पर्श कहाँ मिटा पाया ...
नाम मिटा दिया उस गली का जहाँ घर था उसका ,
दिलमें फिर धड़कन उठी उसको याद करके उसे कौन झुठला पाया ???
आँखें मूंद ली जब तस्वीर नज़र आई 
पर उसकी आवाज कहाँ मिटा पाया ???
एक नाम सिर्फ एक नाम नहीं होता दोस्त जिसे फाड़ कर फेंक दो ,
वो तो दोस्ती होती है वो तो दोस्त होता है ,
जब पास हो तो सारी बलाएँ ले ले तुम्हारी ,
जब उसे निकाल दिया अपनी गली से 
उसके बाद ही बहुत याद आता है ...
उसके बाद ही आंसू बनकर बहता जाता है ....
वो आवाज ,वो दोस्त और नहीं बस निकाल दो दिलसे ,
पर ये किसीके बस का नहीं ,वो और करीब हो जाएगा ....

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