21 जुलाई 2011

ये भी रस्मे होगी वफ़ाकी ये मालूम ना था ...!!!!

आज जाने हमने जाने क्या है जिंदगीके मायने ,

अजनबी लगते है अक्स खुदके है फिर भी अपने ही आयने ......

एक हलकीसी दरार बना देती है एक खाई ,

अपनी थी कल तक वो हर चीज़ हो चुकी पराई .......

वफ़ादारीकी हर रस्म निभाने की खाई थी जिसने कस्म,

आज वही भूलने लगे है वफ़ा की हर रस्म ......

न किया था दावा की जिंदगीभर का है हमारा साथ ,

फिर भी ये वादा करके थामा था हमारा हाथ ,

न बदले हम , न हमारी रस्म ,न टूटी कोई कस्म ,

फिर भी लग रहे है आज वादाखिलाफी के हम पर न जाने इलजाम ...

ये नया जमाना है ,इस दिखावे नए है रंग ढंग ,

यूज एंड थ्रो का जमाना है , चाहे चीजें हो या इंसान ....

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