मैं बूंद हूँ ...
बादलमें छुपी हुई ....
अरे तुम बेताब हो पर कोई मुझको तो पूछो !!!
मुझे पल दो पल बादलकी बाहोंमें सिमटने दो ....
ये पागल पवनकी चुनर ओढ़ बादलकी गोदमें सोने दो ना !!!
ये इश्क दो पल और फरमाने दो ....
थोडासा सूरजको भी हमें चिढाने दो ना ....
जिस पल हम बिछड़ जायेंगे ....
ये पल बहुत ही भारी गुजरेगा हम सब पर ...
मुझ पर ,बादल पर ,उन रंगों पर जो बादल रंगता है मेरे लिए ,
उन पवनके झोंको पर जिस पर हम सवार है ....
उन समंदर पर जिसने हमें उधार दिया है नदी के लिए ,
फिर पूरा आकाश रोयेगा मेरे बिरहा पर ....
थोड़ी और देर मुझे बादलसे इश्क फरमाने दो ...
थोडा मेरे सैयां बादल की बाहोंमें रहने दो ....
आउंगी मैं बूंद बूंद बरसाने तुमपर ....
मेरे वादे पर यकीं कर लो ....
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
विशिष्ट पोस्ट
मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!
आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...

-
रात आकर मरहम लगाती, फिर भी सुबह धरती जलन से कराहती , पानी भी उबलता मटके में ये धरती क्यों रोती दिनमें ??? मानव रोता , पंछी रोते, रोते प्...
-
खिड़की से झांका तो गीली सड़क नजर आई , बादलकी कालिमा थोड़ी सी कम नजर आई। गौरसे देखा उस बड़े दरख़्त को आईना बनाकर, कोमल शिशुसी बूंदों की बौछा...
जब तक बादल के आगोश मे हूं तब तक हूं। फिर पता नहीं क्या हश्र होना है, किसी की प्यास बुझाती हूं या खुद तृषित हो जाती हूं या सागर बन जाती हूं, कौन जानता है।
जवाब देंहटाएंबादल की ओट में छिपी रह जाने पर
जवाब देंहटाएंअपने हश्र से अनजान ही रही नन्ही बूँद
धरती पर गिरी,
तो इक अलग आकृति बना गयी ...
अच्छी रचना .
Fine & passionate poem heart touching . Thanks
जवाब देंहटाएं