9 दिसंबर 2009

शब्द ...

एक बीज ....

शब्द है वह ...

पनपता है ,धरती के दिल को चीरता हुआ दिख जाता है ,

कभी शब्दोंकी बेले झूल जाती है ,

कभी उस पर नज़्मके फूल खिल जाते है ....

कभी टूटे पत्ते पर बैठकर उड़ जाते है हवा की आवाज बन ,

कभी नावके पस्तुल पर बैठ लहरोंसे अठखेलियाँ कर लेते है ....

सागरकी मौजो पर सवार हो समुन्दरके सूर बन

एक नगमा गुनगुनाते है ....

कभी कोयल की हुक बन कभी

कुत्तेका दर्द बन सुनी रातमें भय घोल जाते है ...

कभी अल्लाह की आजान बन कभी मन्दिरमें आरती बन ,

कभी भक्तों के दोहोंमें निराकार दुआ बन नजर जाता है ...

कभी रुदालीके गान में करुनाकी दुहाई दे जाता है ....

शब्द शब्द जो आवाजसे जुड़ जाता है ,

दर्द कसक की अठखेलियों में या प्यार के गुलमें ...

कभी मौन बनकर भी निखर जाता है ....

3 टिप्‍पणियां:

  1. waah..........ek behtreen abhivyakti.........shabd ko bada hi vistaar de diya.

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  2. WAAH !!!! BAHUT HI SUNDAR ABHIVYAKTI....

    BACHCHE KI JO TASWEER AAPNE LAGAYI HAI,WAH TO BAS MAN HI MOH LE RAHI HAI...

    जवाब देंहटाएं
  3. इस कविता में प्रत्यक्ष अनुभव की बात की गई है, इसलिए सारे शब्द अर्थवान हो उठे हैं ।

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