11 नवंबर 2009

शोर ....

भाषा पर लड़ लेने वालों

आज मुझे तुम पर लाज आती है ,

शूक्रिया अय उपरवाले

तुने मुझे गूंगा बनाया है ....

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बोल बोल कर तुम क्यों इतना शोर मचाते हो ?

शब्दों की अहमियत को यूँ जाया करे जाते हो ....

कुछ पल चुप कर देख भी लो , तुम जो सुनाना चाहते हो ,

खामोशी की सदायें ख़ुद ही ये बता देती है .....

3 टिप्‍पणियां:

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