बरसात मुझे भाती हरदम ,
जभी आए लगे सुहानी हरदम ,
पर अब के ना जाने क्या बात हो गई ,
भरी सर्दीमें बरसात हो गई .........
ठण्डसे काँप रहे थे वैसे ही ,
और ये बादल मंडराने लगे ,
स्वेटर पर रैनकोट पहनकर
सब लोग बाहर आने लगे .....
कागज़की नाव कहीं खो गई ,
अभी तो उठे थे नींदसे सुबह ,
मौसम देखकर यूँ लगा फ़िरसे शाम हो गई ....
फ़िर जम्हाई आने लगी ,
और हमें कम्बलमें लिपटकर बिस्तरकी याद आने लगी ....
ये सर्दीकी बरसात साथमें मेथी ताज़ी लायी थी ,
अब क्या करें चाय के साथ
मेथीके गरमागरम पकोडे खाकर ही सुस्ती उडानी थी ....
शानदार और मनमोहक।
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