दीवारों पर जम रही थी दिमतकी लकीरें !!!!
क्या घर मेरा इतना पुराना होने लगा है ?
या लगता है इसे मेरी जरूरत नहीं लग रही है ,
या फ़िर मेरे लिए ये ठिकाना ना रहा है !!!!
दुनियाभर की ख्वाहिशो के पोटले को लाद कर पीठ पर ,
दर ब दर घुमने से फुर्सत कहाँ हुई है हासिल दो पल की कभी !!!
ये घर कहाँ रहा है मेरा ये तो रैन बसेरा हो कर रह गया है ......
बच्चे तो सोये से ही मिलते है हरदम ,बीबी का चेहरा भी थका सा देखा है ......
तलाश तो करनी है उन फुर्सत के लम्हों की
चाह भी है दिमत से दीवार को आजाद करने की ,
बच्चोको खिलौने और बीबी को साड़ी दिलवानी है ...
कल फुर्सत नहीं मिलेगी मुझे अब तो अगले रविवार का इंतज़ार रहा है .....
bahut gahri baat kahti rachna
जवाब देंहटाएंhaan man ko kabhi tanha lamho ki khwahish bhi hoti hai,magar duniyadari mein mil nahi paate.sunder rachana.
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