कल लगा जैसे मेरी कलमसे किसीने स्याही चुरा ली ,
दावत घिस रही थी कोरे कागज़ पर
और कागज़ भी कोरा रह जाता था कुछ निशान सा बनाकर ,
भेज दिया उसे वैसे ही ,पढने वाला मेरे जज्बात को पढ़ ही लेगा .....
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गममें डूबा था दिल और शाम भी उदास थी
दिल याद कर रहा था किसीको ,
बस फ़िर एक आवाज आई और फ़िर क्या ?
मैं तो नींदमें थी और सपने से जाग गई .....
और कागज़ भी कोरा रह जाता था कुछ निशान सा बनाकर ,
जवाब देंहटाएंभेज दिया उसे वैसे ही ,पढने वाला मेरे जज्बात को पढ़ ही लेगा .....
..कितनी भी स्याही हो, लिखने से कुछ न कुछ छूट ही जाता है.
खूबसूरत
अच्छी रचनाएँ...बधाई
जवाब देंहटाएंनीरज
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
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