5 सितंबर 2009

चोरी हो गई

कल लगा जैसे मेरी कलमसे किसीने स्याही चुरा ली ,

दावत घिस रही थी कोरे कागज़ पर

और कागज़ भी कोरा रह जाता था कुछ निशान सा बनाकर ,

भेज दिया उसे वैसे ही ,पढने वाला मेरे जज्बात को पढ़ ही लेगा .....

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गममें डूबा था दिल और शाम भी उदास थी

दिल याद कर रहा था किसीको ,

बस फ़िर एक आवाज आई और फ़िर क्या ?

मैं तो नींदमें थी और सपने से जाग गई .....

3 टिप्‍पणियां:

  1. और कागज़ भी कोरा रह जाता था कुछ निशान सा बनाकर ,

    भेज दिया उसे वैसे ही ,पढने वाला मेरे जज्बात को पढ़ ही लेगा .....

    ..कितनी भी स्याही हो, लिखने से कुछ न कुछ छूट ही जाता है.
    खूबसूरत

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