21 जुलाई 2009

खुदाया .......

आज खुदासे कुछ दुआ मांगने को दिल हुआ मेरा ,

दर पर जाकर उसके सजदेमें सर झुका दिया ,

बंदगी को हाथ उठे जब मेरे तो ये क्या हुआ ,

तेरे प्यारमें ही मैंने खुदा पाया अय मेरी दिलनशीं ..........

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तपते शोलों परसे राख की परत फूंकसे उडाना चाहा ,

कुछ जर्रे उड़कर आँखमें गिरे ,बंद हो गई पल के लिए ,

लेकिन सर्द रातोंको अपनी तपिशसे गरमाने की ख्वाहिश ,

मेरी ये चंचल हरकतोंने पुरी कर दी अनजानेमें ......

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