वाह क्या थी वाह पहली डांट अंकलकी ,
जब साइकिल चलाकर मैंने दो फीट की
रेलिंग कुदाकर उनके घरमें
क्रेश लेंडिंग कर दी थी .....
दूसरी डांट मुझे पड़ी पिताजीकी तब
जब शादीके सात दिन पहले
भैयाके साथ मैंने स्कूटर सीखते हुए
पूरी कोलोनीके खूब चक्कर लगाये थे .....
तीसरी डांट पड़ी सजन की
जब सिक्किममें १२५०० फीट पर
बर्फ की बारिशमें नहाने के लिए
सरे आम जीपमें से कूदकर मैं भागी थी .....
बिहारमें हर घरके सामने कमल से भरे तालाब देखे ,
गंगामैयाके ऊपरसे बिन नहाये पुल परसे गुजरना
उगता सूरज कभी दौड़ती खिड़कीसे कभी डूबती शामके नजारा था ...
वाह क्या वाह ट्रेनमें बैठकर ४ दिन के सफ़र भी सुहाना था .....
आज भी कितनोंसे टकरा जाती हूँ जब मोपेड चलाती हूँ ...
पुलिस की सिटी सुनकर भी सिग्नल तोड़कर भाग जाती हूँ ....
बिना साईड दिखाए अचानक ही मुड कर पीछेवाले की डांट खाती हूँ .....
और कभी बिना ब्रेककी गड्डी भी तीन महीने तक चलाती हूँ ..
जिंदगी मेरे लिए ख्वाबोंके बादल पर उड़नेवाली परी है .!! जो हर पल को जोड़ते हुए बनती है, और उन हर पलोंमें छुपी एक जिंदगी होती है ....
19 जून 2009
कभी दिल ऐसे भी बागी हो जाता है ....
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जवाब देंहटाएंkalam bhi talvar se kam nahin hoti sanjayji ,
जवाब देंहटाएंvo talvar chalati thi aur main kalam ...