वक्तकी रेतघड़ीसे बह रहा है समय अपनी गतिसे ही ,
कभी वो तेज लगता है कभी रुका सा लगता है ,
रफ्तार वही है उसकी और रहेगी वही
बस नजरिया हमारा बदल गया लगता है .......
कभी किसीको चाहा बेपनाह और मिलने गए ,
तो लगता बस पल भर का फासला लगता है ,
एक पल का इंतज़ार करने पड़े अपने प्यार का
तो उम्रभर का इंतज़ार लगता है .......
किसीके पास बैठते है तो लगता है वक्त रुक क्यों गया है ?
उनके पास महसूस आने पर लगता है वक्त इसी पलमें रुकता क्यों नहीं ?
जिंदगीमें कभी मनचाही मंजिल मिले तो ये वक्त की वफ़ा लगती है ,
कभी जिंदगीकी राहमें चलते हार मिले तो वक्त की बेवफाई लगती है ....
कभी मिलते है किसीसे तो लगता है वक्त इस पलमें रुक क्यों नहीं जाता ?
वाह प्रीटी जी ..वक्त को परिभाषित करने की अच्छी काव्यात्मक कोशिश है..सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंवक्त की चाल को आपने बखूबी समझा है।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
वक्त की चाल को आपने बखूबी समझा है।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }