20 जनवरी 2009

मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!



आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी थी । तब मेरे एक अच्छे दोस्तने मुझे एक ऐसा लेख पढने दिया की मैं उसी वजह से ये लिख पायी ..............

मैं यशोमी हूं. उम्र है २२ साल . लेकिन उम्रका १६वा साल जैसे मुज पर रुक सा गया है. वह सपने देखनेकी उम्र थी. और यह उम्र है सपनोंको साकार करने की.मेरे साहित्यके शौकने मुझे एम. ए. करने को मजबूर कर दिया था. शेक्सपियरसे लेकर मुन्शी प्रेमचन्द तकका अद्भूत सफर.... उर्दू सीखने का जूनुन अब मुझ पर सवार है लेकिन कुछ अल्फाजभर ही समेट पायी हूं अपने दामनमें. लेकिन मैं यशोमी हूं अपनी तदबीरसे लकीरें खींच ली है चाकूसे अपनी हथेलियों पर कतरा ए लहू तकदीर ले आयेगा भले ही अश्कोंकी शरीके हयात बनना पडे मुझे.

अरे मैं यशोमी ऐसी ही हूं मैं ....कलमबंद कर लेती हूं अपने जजबातोंको सूर्ख स्याहीसे कागजों पर जो आसमान पर मेरी दास्तां लिख जायेंगे. ख्वाबोंकी तस्वीरमें उभर रहा है एक अक्स धूंधला सा अभी ,जिसका इंतजार अभी है और बाकी..खयालोंकी बगीयामें एक अधखीली कली सा....

हां मैं यशोमी हूं . ऐसी ही हूं मैं... आप मुझे देखने बेताब हैं ना ? ये देखो आयना है. देखलो इसमें अक्स मेरा...ये मेरी मोटी मोटी कंवलसी आंखे खुदमें एक नीली झीलको छुपाये हुए हैं...मेरे होठोंको कमलकी पत्तियां कहते हैं सभी.. तीखी नाक और ऐसा ही मिर्ची जैसा मिजाज है मेरा. .. मेरा हल्कासा सांवरा रंग लाल बिंदीसे और भी खील जाता है..मेरी ये नाजुक गरदन जैसे एक सुराही ऐसा मैं नहीं लोग कहते हैं..मेरे दुबले पतले छरहरे बदन पर एक करिश्मायी असर तब होता है जब काजलकी लकीर आंखोके समुन्दरमें हजारो बल खाती है और तब ये लगता है जैसे आंखे एक दर्दीली गजल गाती है. मेरी जुल्फें काले बादलोंसे घीरी रातोंकी दास्तां दोहराती है. जब लट एक आकर रुकती है चेहरे पर तो शायरकी शायरी बन जाती है. ख्वाबोंकी दुनियामें परी बननेके एक अजीब से शौकको हवा दे चुकी हूं मैं... अब तो इंतजार है एक शहजादेका जो सफेद नहीं नहीं काले घोडे पर सवार होकर आयेगा उसीका................

मांको कल रात ही बाबुजीको ये कहते हुए सुना था. स्वर अब दो ही महिनेमें लौट रहे हैं अमेरिकासे. उनकी बहनके घर मैं एक जलसेमें शामिल होने गयी थी. तब वहां पर खींची गई गई कुछ तस्वीरे उनकी बहनने ई मेलसे स्वरको भेजी थी.फोन पर हुई बातोंसे ही उन्होंने मुझे अपने दिलमें बसा लिया था...
रुख कर चुकी थी मैं उस अनदेखे अनजाने चेहरेको एक शब्ददेह ओर जिसे मैने कभी देखा भी न था.

ऐसी ही हूं मैं यशोमी...ये सारे जजबातोंको मैं अपनी एक नीली डायरीमें कैद कर लेती हूं..५ फीट ११ इंच लम्बा कद, एक संपूर्ण कहा जा सके ऐसा डिल डौल ,कद काठी...चेहरे पर दो आंखे जो कभी होठोंको बोलने की जहेमत ही ना देती हो. एक नजर करारी वाबस्ता थी उनके चेहरे पर जिसके तीर सीधे दिल पर ही वार करते थे. पलभरके लिये भले रुके हम पर पर दिलमें रुक जाती थी उम्र भरके लिये... क्रीम कलरका सिल्कका कुरता और चुडीदार. एक उपवनमें बांससे बने झूले पर बैठकर गालिबकी रुबाईयां पढते हुए दिलकी नजरसे देख लेती हूं मैं उन्हें....मेरे कदमोंकी आहट सुनकर धीरेसे उन नजरोंका उठ्ना और मेरे चेहरे पर रुकना ...पूरे बदनसे जैसे बिजली दौड जाती है...माशाअल्लाह ... ऐसे ही खयालोंकी दुनियाको शब्ददेह दिये जाती हूं....

इंतजार होता है मुझे हर शबका.. छत पर झूले पर सोते हुए आसमानको निहारना.चांदकी डोलीमें सवार सितारोंकी कुछ नज्मों को सुनना...उस पलोंमें जीकर मिलती हूं मेरे ख्वाबोंके शहजादे को....
मैं उन्हें प्यारसे शृंगार कहती हूं..शृंगार.. ये वो नाम है जिससे मैं और सिर्फ मैं ही उन्हें पुकारुंगी..

अबतो मेरी डायरी भी भर चूकी थी उनके नाम शेरो शायरी लिखते हुए.उन्हें कभी न दिखा पाउंगी मैं ये जजबात क्योंकि शर्मोहया से दामन अभी छूटा नहीं मेरा.

खयालोंमें आते हो जब पलकें झूकती है हयासे,
लब कैसे पुकारें उन्हें नामसे, अल्फाज गलेमें ही रूक जाते हैं....

जब आयेंगे और हाले दिल अपना बयां करेंगे उनसे,
तब चांद सोयेगा नहीं और सूरज भी उगना भूल जायेगा....

इंतजार का लुत्फही कुछ ऐसा नशा लाया है,
डर है उनके आने पर ये नशा उतर ना जाये....

ये है मेरा शृंगार जो मेरे जहनमें बस चुका है....अब उनके आनेमें सिर्फ दो दिनका वक्त बाकी है जब विसाले यार होगा ...सपनोंके शहजादेका दिदार होगा...शृंगारसे यशोमी का सामना होगा...........

इन दिनों शहरमें एक प्रदर्शनी लगी हुई है. बडे चर्चे हैं इसके लोगोंकी जुबां पर. वैसे मेरा भी कुछ नाता रह चुका है इन रंगसे -केनवास से - ब्रश से. रश्माली मेरी छोटी बहन है. उसे लेकर मैं ये प्रदर्शनी देखनेके लिये जा पहुंची. पांच चित्रकारोंके ७५ चित्र प्रदर्शित किये जा रहे थे. बाहर बडे से बोर्ड पर सभी चित्रकारोंके बारेमें विस्तृत जानकारी लिखी हुई थी. आज ये प्रदर्शनीका आखरी दिन था. और आखरी घंटे में एक अनोखी स्पर्धाका आयोजन किया गया था. हर चित्रकार दो घंटेमें अपना एक और चित्र प्रेक्षकोंकी उपस्थितिमें बनाने वाला था. वहांके सारे चित्र उंचे दामों पर बिक चुके थे. पूरी जनता जनार्दन पहले मजले की प्रेक्षकदीर्घामें बैठ चूकी थी. नीचे पांच केनवास, रंगोकी पेलेट्स, और ब्रशोंके गुलदस्ते सजे थे....
अब हर कलाकारने अपने भीतरके अतिउत्तम स्पंदनको ब्रशके जरिये केनवास पर धडकाना शुरु कर दिया..पूरे हॉलमें नितान्त शान्तिका समां था. इस शहरकी कलाकी कदरदान जनताने अपने मोबाइल फॉनको स्वीच ऑफ कर दिया था. एक रंगोत्सवके सब मूक साक्षी बने थे.
दो घंटोके बाद जनताको नीचे आनेकी अनुमति दी गयी. ये पांचो कलाकृतियोंको सर्वोत्तम कहा जा सकता है.
जरा इधर थोडा गौर फरमाये ..ये कलाकार इस प्रदर्शनीमें शामिल होनेके लिये दक्षिण आफ्रिकाके डरबन शहरसे आया हुआ है. मूलतः भारतीय इस कलाकारके मां बाप भारतके ही है. तीन साल पहले अपनी कलाकी साधनाके अंतिम चरणमें भारतीय चित्रकला और उसकी विविध परंपराके अभ्यासको इसने अपने संशोधनका विषय चुना था. दिल्हीके एन आइ डी के प्रधानाचार्यकी सीधी निगरानीमें वह संशोधन कर रहा है...

एक कांचकी केबिनमें बैठकर सभी कलाकार जलपान कर रहे थे.वे बाहर लोगोंके हावभावोंको पढ सकते थे पर लोग उन्हें नहीं देख पाते थे. यशोमी थोडी देर वहां पर रुकी रही. जब भीड बिलकुल कम हो गयी तब वह सब चित्रोंको देखने आयी. जब वह पहले चित्रको देख रही थी तब वह कलाकार उसे देखकर उठकर बाहर आ गया और जोरसे उसने पुकारा...
" यशोमी......."
यशोमीने पीछे मुडकर आवाजकी दिशामें देखा.उस वक्त जिस अदासे उसने मुडकर देखा वही अदा आखरी चित्रमें हूबहू कैद हो चुकी थी उस कलाकार द्वारा और चेहरा भी वही था...
जब यशोमीने भी उसे देखा तो उसके नाजुक लबों से एक आवाज सरक कर बाहर आयी ...
"शृंगार....."

हां ,इस कलाकारका नाम था शृंगार चतुर्वेदी....
यशोमी उसके जहनमें उभरी प्रेरणा थी और यशोमीके रुबरु खडा था वही शब्दचित्र जिसे उसने अपनी डायरीमें सहेजके रखा था.......और दिलमें जिस तस्वीरको कैद कर रखा था.

उसी वक्त यशोमीके मोबाइलकी रींग बजी.
सामने स्वरका स्वर गूंज रहा था," हलो, यशोमी मैं एयर पोर्टसे बोल रहा हूं........."

=======================================================

3 टिप्‍पणियां:

विशिष्ट पोस्ट

मैं यशोमी हूँ बस यशोमी ...!!!!!

आज एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करने जा रही हूँ जो लिखना मेरे लिए अपने आपको ही चेलेंज बन गया था । चाह कर के भी मैं एक रोमांटिक कहानी लिख नहीं पायी ...