22 जनवरी 2009

वो सदा खामोशीकी थी ......


शब्बे हिजर का कैसे बयां करे हम आपसे ?
ख्वाबोंमें तुम्हारा तसव्वुर किया हमने ,
इकरारे मोहब्बत कर बैठे हम शायद गुस्ताखी कर गए हम ,
गुफ्तगू ख्वाबोंमें की जो तो ये गुस्ताखी का होना लाज़मी था ....

सहरको जब खुली आँखें हमारी ,
खुली खिड़कीसे चिलमनके पीछे छुपकर ,
झांखता हुआ तुम्हारा रोशन चेहरा देखकर ,
हमारा होश खोना और दिल का खो जाना लाज़मी था ......

और बयां कैसे करें हम ये इश्क की दास्तां तुमसे ???

आगाज़ पर खड़ी थी खामोशी ,अंजाम पर खामोशी रुक गई ,
इब्तदा चली इश्कमें खामोशीसे अगले मकाम तक ,इन्तेहाँ खामोशी बन थमी ,
आगाज़से अंजाम तक , इब्तदासे इन्तेहाँ तक ,
हमसफ़र बनकर चलती रही इश्कमे हमारे वो सदाकी जुबान खामोशी थी ....

3 टिप्‍पणियां:

  1. प्रीति जी, बहुत सुन्दर!


    ---आपका हार्दिक स्वागत है
    चाँद, बादल और शाम

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  2. saari post hi khubsurat hai....??? lakin mujhe pasand aayi....antim panktiya....आगाज़ पर खड़ी थी खामोशी ,अंजाम पर खामोशी रुक गई ,
    इब्तदा चली इश्कमें खामोशीसे अगले मकाम तक ,इन्तेहाँ खामोशी बन थमी ,
    आगाज़से अंजाम तक , इब्तदासे इन्तेहाँ तक ,
    हमसफ़र बनकर चलती रही इश्कमे हमारे वो सदाकी जुबान खामोशी थी ....

    hey look i wana more abt u and ur life....aap itna achha ahsaso ko kise likh pate hoo????

    Jai Ho Mangalmay HO

    जवाब देंहटाएं
  3. PREETI JI BAHOT HI BADHIYA LIKHA HAI AAPNE BEHAD UMDA...
    AAPSE EK GUJARISH HAI KE AAP FONTSIZE THODA BADA KARDE AAPNE BLOG KA ..



    ARSG

    जवाब देंहटाएं

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