13 दिसंबर 2008

नैनों के झरोखे पर प्रतीक्षा की झालर ....

आँखें हमारे शरीर का एक ऐसा अदभूत अंग है जो हमें ईश्वर की बनाई इस सुंदर दुनिया का दर्शन कराती है . साहित्य पर्व के जो नौ रस है उसका आचमन कराती है . भारत वर्ष के शास्त्रीय नृत्यकार इन नौ रस : शांत रस, श्रृंगाररस , बीभत्सरस ,करुणरस ,रौद्ररस , अदभूतरस ,भयानक रस, हास्यरस ,और वीररस की कितनी सुंदर अभिव्यक्ति इन मदभरी आंखो के द्वारा कर सकते है !!! अपनी छोटी सी संतान को प्यार की अमिवर्षामें नहलाती हुई ममता से छलकती आँखों में आप प्रेम की सर्वोत्कृष्ट अभिव्यक्ति देख सकते है !
और दूर सुदूर परदेश में जा बसे अपने पियु की प्रतीक्षा करनेवाली मुग्धा के नयनों में विरह्व्यथा का उत्कृष्ट चित्रांकन होता है . नीले ,भूरे ,काले रंग की आँखें या फिर मृगनयनी ,कमल नयनी या इलाक्षी नयन कविहृदय के लिए अभिव्यक्ति का सुन्दरतम मध्यम होते है .....
तुम्हारे नयनों की जवानिका खुलते मेरी सहर ,उसके झुकते मेरी साँझ होती है ............

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