17 अप्रैल 2018

जिंदगी

कभी खिड़की से झांखती ,
कभी पलकें बिछाएं करती मेरा इंतज़ार ,
मुझे तेरी तलाश थी ,
तेरा दिल भी था मेरे लिए बेकरार ....
पर नही मिलना था मुझे ,
तुझसे जो किये थे
वादे नही कर पाई पूरे ,
तू समझती बिन पूछे मुझे .....
पर मैं खुद से शर्मिंदा नही हो पाती ....
चल आज गले लग जाए ,
न मुझे कोई गिला तुझसे ,
न कोई शिकवा तुझे भी होगा ,
अधूरे अधूरे से हम फिर भी पूरे पूरे से हो जाए....

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